नक्शबंदी मुस्लिम आगू अहमद सरहन्दी की पुस्तक ‘मख्तूबात-ए-इमाम-रब्बानी-हसरत मुज्जददीद-अल्फ-ए-सानी” में गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का वर्णन है।
पुस्तक ‘मख्तूबात-ए-इमाम-रब्बानी-हसरत मुज्जददीद-अल्फ-ए-सानी’ कट्टरपंथी नक्शबंदी मुस्लिम मज़हबी आगू अहमद सरहन्दी ने लिखी है। कितना ज़हर भरना है इसके अंतर्मन में, उतना उतना ज़हर बेचता है महाशरे में। अहमद सरहन्दी जैसा ज़हरीला ताजर पंचम गुरु अर्जन देव के महान बलिदान पर कुछ कहे तो उसे पढ़ने की उत्सुकता तो रहनी स्वाभाविक है।
पुस्तक ‘मख्तूबात-ए-इमाम-रब्बानी-हसरत मुज्जददीद-अल्फ-ए-सानी’ के खंड १, उप-खंड २, पृष्ठ 95-96, पत्रांक संख्या 193 में पंचम गुरु अर्जनदेव जी की शहादत के संदर्भ में लिखा है। यह पुस्तक फ़ारसी भाषा में है। जोकि इस प्रकार है-
“इस बार गोइंदवाल के काफिर को मृत्युदंड का दिया जाना महान सफलता थी। हिंदियों की हार का सबसे प्रमुख कारक भी। उसकी मृत्यु का कुछ भी लक्ष्य रहा हो, यह इस्लाम के लिए लाभप्रद था। मैंने इस काफिर (गुरु अर्जन देव जी) को अपने स्वप्न में देखा था। समय के इस्लामी राजा ने उस काफिर के सिर का ताज ध्वस्त कर दिया। वह काफिर ही उन सभी काफिरों का आगू था। उन पर जज़िया काफिरों का सामाजिक मान-मर्दन है।उनके विरुद्ध जिहाद और वैमनस्यता मुहम्मदी मत के लिए हितकर है।”
जहाँगीर की दरबारी पुस्तक ‘तुज़क-ए-जहाँगीरी’ में इस बात की स्वीकारोक्ति है कि किस प्रकार से जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी की शहादत के मूल कारक थे। मुग़ल जहाँगीर के सहयोगी थे नक्शबंदी। लाहौर का प्रशासक मुर्तजा खान नक्शबंदी था । इस नाते अहमद सरहन्दी का शिष्य था।
१९४७ के बाद से लगभग सभी तबकों को जिहाद पढ़ने में शर्म महसूस होती है। जबरन यह धारणा थोपी गई कि जिहाद को पढ़ना, समझना फिरका परस्ती है। जिहाद तो एक विशिष्ट लोगों का व्यक्तिगत मत या मज़हब है। उससे आपको क्या, उससे किसी को क्या लेना देना ? भाई, ऊपर लिखे विषय को पढ़, समझकर यह बात सामने आई कि जिहाद से मेरे सरोकार जुड़े है। यह मेरे अस्तित्व से मुझे सचेत करने वाला विषय है। आप कहते रहिए फिरका परस्त। मेरी अगली पीढ़ी को सीख देने के लिए मुझे ‘जिहाद’ भी सीखना होगा। हिब्रू भाषियों ने जिहाद सीखा। आज शोध कार्यों में यहूदी अव्वल हैं।
ज़िंदा रहना है तो जिहाद पढ़िए …. समझिए।