प्रकृति से छेड़छाड़ और आपदा

आज मानव ने अपने जीवन पर अपनी सुख सुविधाओं के लिए अपने ही कर्मों से एक संकट मोल ले लिया है।

 आज जहां सारा विश्व पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या से ग्रसित है,वहीं इस समस्या से बाहर आने का रास्ता भी भारतीय हिन्दू चिंतन में ही मिलता है।भारतीय मान्यता रही है,कि सम्पूर्ण सृष्टि मानव जगत,जीव-जन्तु, पशु-प्राणी एवं वनस्पति जगत की निर्मिति पंचमहाभूतों तत्वों से मिलकर हुई है। भारतीय संस्कृति, परम्परा, हिन्दू चिन्तन यह बताता है,कि जिन पंचतत्वों से मिलकर इस सृष्टि मानव जगत का निर्माण हुआ है उसके साथ तालमेल करके ही उन पंचमहाभूत तत्वों से  मानव चलने वाली जीवनशैली की सब प्रकार से रक्षा हो सकती है। आज मानव किसी न किसी कारण प्रकृति से तालमेल की जगह प्रतिस्पर्धा के भाव से देख रहा है। साथ ही मानव की अपनी आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर विजय प्राप्त की  आसूरी आकांक्षा जगी है।

  मानव का शरीर एवं वनस्पति जगत पंचमहाभूतों से बनकर पंचमहाभूतों में ही मिलकर समाप्त होना है, ऐसे पंचतत्वों के प्रति मानव के अन्त:करण में देवता जैसा भाव होना चाहिए।आज मन्दिरों के पास जल,वृक्षों का अभाव होता जा रहा है,जिस कारण जलाशयों के अभाव से वनस्पति जगत,जीव-जन्तुओं, प्राणी जगत में स्वाइन फ्लू, कोरोना वायरस जैसी संक्रमण बीमारियाँ जन्म ले रही है। पर्यावरणीय प्रदूषण से  आकाश,पृथ्वी, जल,वायु,अग्नि(पंचमहाभूत तत्वों से समन्वय स्थापित करना वर्तमान वैश्वीकरण में एकमेव मार्ग है।