!!समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी महाराज!!

(शिवाजी को जानों पखवाड़ा)

समर्थ रामदास (१६०६ - १६८२) महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध सन्त व छत्रपति शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु थे।

 उन्होंने अपनी साधना,भक्ति और चिंतन के द्वारा महाराष्ट्र में आध्यात्मिकता का निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में अभूतपूर्व समन्वय स्थापित किया।

उन्होंने अपने संदेशों के माध्यम से संत सम्मत शासन-परम्परा का शुद्ध तथा परम निर्मल स्वरूप द्वारा प्राणिमात्र को परमात्मा की ओर उन्मुख किया। समाज में फैलाई जा रही वैमनस्यता का उन्होंने हमेशा विरोध किया। तथा राजसत्ता द्वारा उत्पन्न की जा रही सामाजिक-आध्यात्मिक दूरियों को पैदा होने से रोका।

मुगल शासनकाल में समर्थ गुरु रामदास मुगलों के अत्याचार, अनाचार और अराजकता से आहत थे। जब वे चौबीस वर्ष के थे,वे भारत भ्रमण पर निकले। उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी एवं लंका तक 1632 से 1644 के बीच भारत भ्रमण किया।

उस समय पूरा उत्तर भारत औरंगजेब के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें यह एहसास हुआ कि 'धर्म-संघटन और लोक-संघटन' तब ही राष्ट्र परतंत्रता से मुकाबला कर सकता है। जब धर्म-संघटन के लिए ईश्वर संकीर्तन और श्रद्धा अटूट रखनी होगी एवं लोकसंघटन द्वारा लोकशक्ति जाग्रत् करनी होगी। समर्थ गुरु रामदास जब भारत भ्रमण करके महाराष्ट्र पहुँचे तो उन्हें सुखद समाचार मिला। शाहजी राजा और जीजाबाई के सुपुत्र शिवाजी ने महाराष्ट्र में दो-चार किले दक्षिणिमों से जीतकर स्वनाम का उद्घाटन किया था। समर्थ गुरु रामदास  राजकुमार संन्यासी एवं प्रभु श्रीराम के परम भक्त थे। उन्होंने राम-राज्य की कल्पना मन में ठान ली थी। शिवाजी महाराज के रूप में वह कल्पना सत्य हुई। लोक जागृति करने के लिए उन्होंने राष्ट्रधर्म, हिंदूधर्म और स्वराज्य की भावना लोगों में जाग्रत् की। उन्होंने सौ मठों की स्थापना एवं चौदह सौ महंतों को दीक्षा दी। समर्थ गुरु रामदास के त्यागमय, प्रेरणाप्रद, तपस्वी जीवन  हमारी सुप्त सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समर्थ होगा।