जाने कहाँ गए वो दिन
[28/05 5:54 am] : आठवीं किश्त

हास्टल वार्डन ने सख्त लहजे में गुड मार्निंग कहते हुए सवाल दागा कल रात यंहा हास्टल में दंगा किया तुम लोगों ने?दंगा गुरु जी !यंहा इस हास्टल में !ना ना प्रश्न ही नहीं होता। असंभव गुरदेव।इस बीच कुछ सीनिअर छात्र नेता सच्चा बच्चा को कमरे से लगभग धकियाते हुए बाहर बरामदे तक ले आए।तीन चार उसे साहस बंधाने के बाद उसके अगल बगल खड़े होकर वार्डन सर से बोले,सर इसे हास्टल व कैम्पस में  सब सच्चा बच्चा कहकर पुकारते हैं।यह हमेशा सच कहता है सर,इसके बारे में विख्यात है यह कभी झूठ नहीं बोलता।आप इससे पूछ लीजिए।वार्डन ने सच्चा बच्चा की ओर गरदन घुमायी,हां,हमने भी सुना है कि तुम नित्य नियम पूजा पाठ वाले आदर्श विद्यार्थी हो।जी श्रीमान,आह्वानम ना जानामि ना जानामि विसर्जन पूजां चैव ना जानामि क्षम्यताम परमेश्वर:।कल रात तुम कंहा थे?टीम के एक सीनिअर लेक्चरर ने कड़कदार आवाज में पूछा।जी श्रीमान ,कल देर रात्रि प्रहर तक कालिदास कृत अभिज्ञान शांकुतलम के चतुर्थ अंक को कंठस्थ कर रहा था।क्या घपला हुआ कल रात यहां?आदरणीय मैं रात्रिकालीन नीरवता में ध्यानमग्न होकर स्वाध्याय में तल्लीन रहा।वातावरण में यदा कदा झींगुरों की टीं टीं धवनि गुंजित हो रही थी अन्यथा सर्वत्र निस्तब्धता व्याप्त थी।तभी तीसरे सीनिअर लेक्चरर ने दूसरे छात्र से पूछा तुम थे घपले में शामिल?सर मैं तो  मेअर आफ कास्टर ब्रिज पढ़ता रहा कल रात एक बजे तक।और तुम, तुम कहां थे एक और से पूछा गया,सर मैं मैं तो जूलोजी की फाइल बना रहा था गांव गया था बहुत काम छूटा हुआ था सर उसे कम्पलीट किया।इसी बीच मैस संचालक बुढ्ढा आ टपका।उसे अचानक आया देखकर हमारे हाथ पांव ढीले हो गए।हम उसे समझाना भूल गए थे।ना जाने यह क्या जवाब दे।कई लड़कों ने उसका पिछले दो तीन महीने का हिसाब चुकता नहीं किया था।वह रोज खाने की मेज पर झींकता था बेटा पिछला पेमेंट कर दो।जब तुम दोगे तभी तो मैं बाजार से कुछ लाकर तुम्हें खिला पाऊंगा।फिर मेरे भी घर पर बाल बच्चे हैं।मैंने अपने परिवार का भी पेट पालना है।कुछ ढीट किस्म के लड़के दे देंगे,बोडा ,सब दिया जायेगा,इस बार मनीआर्डर आने पर सबसे पहले आपका पेमेंट करेंगे।ऐसा,कहते कहते टालते जा रहे थे।कुछ लड़के रोटियां छिपाकर जेब में भर लेते सुबह कमरे में हीटर में चाय बनाकर खाते थे।बुढ्ढे को सब पता था ।आज उसके पाले में गेंद आ गयी थी।हम सब उसे कातर दृष्टि से देख रहे थे।अब क्या होगा,ऐसा सोचकर हम निराश होने लगे।हास्टल वार्डन ने पूछा, हां भई पंडित जी,आप तो मेस में रहे  ही होंगे कल रात।आपने देखा कौन कौन लड़के हुड़दंग कर रहे थे यंहा।हुड़दंग?यहां,ना,ना आपको शायद किसी ने गलत सूचना दे दी।बोडा ने पूर्ण आत्मविश्वास भरे लहजे में उत्तर दिया।रात दस बजे तक तो मैंने बच्चों को खाना ही खिलाया।फिर जब सोने लगा तो देखा एक दो कमरों से टेबल लैम्प की रोशनी आ रही है।पढ़ाई करने वाले बच्चे हैं,देर रात तक पढ़ते हैं।सुबह देर तक सोये रहते हैं।कुछ सुबह जल्दी उठ जाते हैं,ग्राउण्ड खेलने जाते हैं,कुछ यहीं मैदान में बैडमिंटन खेलते हैं।कुछ सुबह सुबह योगासन भी करते हैं।नहाना,धोना,पूजा पाठ,अरे आप सुबह सुबह आओ ,तो यहां आपको बिल्कुल किसी मंदिर जैसा वातावरण मिलेगा।हां,वह तो हमने खैर,देख लिया।तुम सही कह रहे हो।एक लेक्चरर ने कहा।यह सुनकर बोडा का साहस बढ़ गया,यहां तो साहब,सारे बच्चे बहुत अच्छे हैं।लड़ाई झगड़े का तो मतलब ही नहीं होता।तभी एक घाघ छात्र नेता बोला,सर हो सकता है वो दूसरे हास्टल के बिगड़े लड़के हों,या पालीटेक्नीक के या डी के बी के लड़ाकू।हम तो सर पढ़ने में व्यस्त रहते है।कभी कभार मूड फ्रेश करने के लिए स्पोर्ट्स एक्टिविटी में भाग लेने चलें जांय तो बात दूसरी है,बस यही लाइफ है हमारी।हुंह,हुंह जैसी धीमी आवाज लगाते हुए हास्टल वार्डन ने अपने साथ आए अन्य लेक्चरर से कहा,चलो चला जाए।शायद उस लड़के को गलतफहमी हुयी है।यहां देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि इन सीधे सादे बच्चों ने मार पिटाई की होगी।ऐसा विचार विमर्श करते हुए टीम वापस चली गयी।उनके जाते ही घाघ छात्र नेताओं ने मेस वाले बोडा को उठाकर कंधों पर बैठा लिया।कुछ मुंह से सीटी की आवाज निकालने लगे।बाकी जोर से चिल्लाए हिप हिप हुर्रे।हिप हिप हुर्रे।हिप हिप हुर्रे।बोडा को कंधे पे बिठाए सब डाइनिंग हाल में आ गए छोटे से जुलूस की शक्ल में।एक ने गाना शुरु कर दिया-   डम डम डिगा डिगा,मौसम भीगा भीगा।बिन पिए मैं तो गिरा,  मैं तो गिरा,  हाय अल्ला।कोई चम्मच से थाली बजाने लगा,कोई मुंह में कटोरी गिलास लगाए भोंपू बजाने लगा तो कोई टिन की मेज पर हाथ से तबला बजाने लगा।फिर तो एक के बाद दूसरा रम्मा वस्ता वैय्या,,रम्मा वस्ता वैय्या,,मैंने दिल तुझको दिया तूने दिल मुझको दिया,गाना चला फिर तीसरा व चौथा गाने पर गाने चले व गानों के साथ ठुमके भी खूब चले।

 हम बहुत देर तक अपने झूठे नाटक की सफलता का जश्न मनाते रहे।थक जाने पर बोडा ने कहा,अब बहुत हो गया मुझे नीचे उतारो।सुनों तुम सब मेरे बच्चों जैसे हो।मुझे सब पता है कि तुमने उस लड़के की बहुत पिटाई की है।मेरे सामने ही तो तुम हाकी,डण्डा,सरिया लेकर गये थे।अगर मैं तुम्हारे खिलाफ गवाही दे देता तो तुम्हें हास्टल से निकाल दिया जाता,तुम्हारा युनिवर्सिटी से रिस्टीकेशन भी होता।शायद एक आध को जेल भी होती।कहने का मतलब तुम्हारा भविष्य चौपट हो जाता।इस लिए बेटा आगे से लड़ाई झगड़ा,मारपीट कतई ना करना।मां बाप ने तुम्हें पढ़ने भेजा है,जमकर पढ़ाई करो।कुछ बनकर दिखा दोगे तो मुझे झूठ बोलने का पाप भी नहीं लगेगा।दोस्त ,आज स्टूडेंट लाइफ की वो बातें याद आती हैं तो अपने ऊपर गुस्सा भी आता है,हसीं भी आती है व आंख में आंसू भी।

नीरज नैथानी

[28/05 5:55 am] : नौंवी किस्त 


वह इंगलिश लिटरेचर से एम ए फाइनल कर रहा था।साढ़े पांच फुट से कुछ अधिक ही रही होगी उसकी हाइट।दुबला पतला बदन।सिर पर घुंघराले बाल।हल्की खिचड़ीनुमा दाढ़ी।आंखों पर पावर का मोटे लेंस वाला चश्मा।पुतलियां अंदर की ओर गढ्ढे में धसीं हुयीं।मानो वह पक्का नशेड़ी हो या दिन रात पढ़कर आंखें घिस दी हों।अंग्रेजी फर्राटेदार बोलता था,धाराप्रवाह और वह भी हाई क्लास एक्सेंट के साथ।यूनिवर्सिटी में सब उसे कामरेड कहकर पुकारते थे।सच्चाई यह थी कि कइयों को उसका असली नाम बहुत बाद तक पता ना चला।वह हमेशा  लाल सलाम  कहकर अभिवादन किया करता था।मैंने उसके हाथ में हर दूसरे तीसरे दिन कभी मैक्सिम गोर्की की ' मदर ' तो कभी कार्ल माक्स की दास कैपिटल,या लेनिन,टालस्टाय की या फिर सब्य सांची की कोई नई किताब देखी होगी।नक्सलबाड़ी आंदोलन के किस्से वह ऐसे जीवंतता से सुनाता,मानों पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में 1967 में सत्ता के विरोध में शुरु हुआ यह शस्त्र आंदोलन तथा उसमें चारू मजूमदार व कानू सान्याल की भागीदारी स्वयं उसने आपनी आंखों से देखी हो।मैं दावे से कह सकता हूं कि कुछ शब्द जो मेरे लिए सर्वथा नए होते थे मैंने पहली बार उसके मुंह से ही सुनकर अपनी जानकारी में इजाफा किया होगा।वह अपनी बातचीत में बुर्जुवा,सर्वहारा,इजारेदारी,भू माफिया,वर्ग संघर्ष,प्रतिक्रियावादी ,शोषणकर्ता,शोषित,वंचित,दबे कुचले,मजदूर,श्रमिक जैसे शब्दों का ज्यादातर इस्तेमाल करता था।उसके किस्सों में अधिकतर रूस मास्को,लेनिनग्राद,जार,माउत्स तुंग,लांग मार्च या पoबंगाल,केरल,त्रपुरा की कम्यूनिस्ट पार्टियों का जिक्र हुआ करता था।जनसत्ता व ब्लिट्ज उसके प्रिय अखबार थे।वह प्राय:  कहा करता होकर रहेगी,क्रांती होकर रहेगी।सड़ी गली भ्रष्ट व्यवस्था बदलेगी जरूर बदलेगी। चेखव,बर्तोल ब्रेख्त,पाब्ले नारदो की जीवनी ना जाने उसने कितनी बार सुनायी होगी।मुझे याद है एक बार छात्र संघ चुनाव के बाद छात्र संघ भवन ठसाठस लड़कों से भरा हुआ था।वहां विभिन्न पदों पर जीते हुए छात्र प्रतिनिधि एकमत नहीं हो पा रहे थे कि शपथ ग्रहण समारोह में किस पार्टी के बड़े राष्ट्रीय नेता को आमंत्रित किया जाय।तभी ना जाने कामरेड कहां से आ टपका।जिज्ञासावश उसने अंदर झांकते हुए पूछा किस बात पे बहस चल रही है।विषय व प्रकरण पता चलते ही उसने लगभग हीस्टीरिया अंदाज में आवेशित होकर चिल्लाते हुए कहा।दोस्तों मानसिक दीवालिये पन से बाहर निकलना होगा।समाज में गंदगी फैलाने वाले तलुआ चाटू मक्कार टटपूंजिये को बुलाने से बेहतर है अपने विश्वविद्यालय के किसी सफाई कर्मचारी से छात्र संघ के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन व शपथ ग्रहण समारोह करवाओ।जो हमारे कैम्पस की मन लगाकर सफाई करता है।कूड़ाकरकट व गंदगी नहीं होने देता।जिसके कारण हम स्वच्छ माहौल में पढ़ पाते हैं।कम वेतनभोगी वह गरीब कर्मचारी मुख्य अतिथि होने का असल हकदार है।उसकी ऊटपटांग बात सुनकर कई सारे एक साथ  बोले ये पगला कौन है।यंहा मुख्य मंत्री,केंद्रीय मंत्री व सांसद को एप्रोच करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं और ये झांझी !पागल अपनी अनर्गल हांके जा रहा है।बाहर करो इसे।