जाने कहाँ गए वो दिन (तीसरी किश्त)

 

हां,हल्लो।क्या कर रहा है?कुछ नहीं लंच टाइम है,खाली बैठा फेसबुक देख रहा था।कल रात फोन क्यों काट दिया?फोन नहीं काटा बे,बैटरी डाउन हो गयी थी।अच्छा अच्छा,वैसे भी रात बहुत हो गयी थी।फिर मैं भी सो गया था रास्ते की थकान थी ही,जल्दी नींद आ गयी।पर मेरे सर पे तो हास्टल का ही भूत सवार रहा।सो सपने भी वहीं के आए।अच्छा!हां यार।तुझे याद है शिवरात्री को शिवालय में महंत ने लोटा भर के भंग दे दी थी।अपन भी शिव जी का प्रसाद समझ कर गटक गए थे।हां,हां याद है एक गिलास मैंने भी उतारी थी हलक में।अबे पहले एक आध घण्टे तो कुछ भी नहीं हुआ।रत्ती भर नशा नहीं लगा।पर हास्टल आते आते।होश गुम हो गए।याद है तू गेट पर डर के मारे रोने लगा,मेरा पैर-------,फिर थोड़ी देर बाद तू ने सहमी आवाज में कहा मेरे हाथ----------,अबे तू तो कह रहा था मैं उड़ने वाला हूं,और वह मोटू,वह तो कह रहा था आसमान घूम रहा है।कमरे में कई बार लगा कि चारपाई तिरछी हो रही है,अगले दिन सुबह तक नशा तारी रहा था।अब क्या बताऊं कि मजा आया या दहशत लगी रही।यार वो ठिगना कहां होगा ?वो बीड़ी बाज।सोट्टे पे सोट्टा खींचता रहता था।सुना है किसी गांव के प्राइमरी स्कूल में मास्टर हो गया है।फिर तो उस स्कूल का बण्टाधार समझो।बच्चों का भविष्य चौपट कर रहा होगा।और वो तेरे बगल के कमरे वाला अंग्रेज।स्साला सुल्फा पी के अंग्रेजी झाड़ता रहता था।यार अंग्रेजी तो धड़ाधड़ बोलता था।तो क्या हुआ एम ए भी तो अंग्रेजी लिटरेचर से कर रहा था।बोल तो हम भी लेते थे उल्टी सीधी।हांलाकि कभी कभी अटकते थे।पर दो पैग के बाद तो हमेशा धुंआधार ही बोली ।अच्छा वो सबसे किनारे कमरे वाला।रात को माउथ आर्गन बजाता था वो आशिक मिजाज।हां,सोचता था धुन गर्लहास्टल तक गूंज जा रही है।सुन रही होगी गर्ल फ्रैण्ड।अबे गर्ल हास्टल के नाम पर याद आया।एक दिन मैं किताब लेने के बहाने धड़कते दिल से अपनी उससे मिलने जा पंहुचा गर्ल हास्टल।वहां मेन गेट के बगल में बने केबिन में मुटल्ली हास्टल वार्डन बैठी स्वेटर बुन रही थी।मुझे देखते ही ऊन का पल्ला व सलाइयों को मेज पर रखते हुए नाक से बोली,कंहिये, मैंने गला‌ खंखारते हुए कहा आंटी।बस्स आंटी सुनते ही वह उखड़ गयी।आंटी,आंटीं लगतीं हूं मैं।आंटीं जैसीं दिखतीं हूं मैं।मैं मैंडम हूं ,मैंडम।मैंडम करके बात करों।मैंने घबराते हुए धीरे से कहा मैडम सारी।वो वो वो-------।क्या वों वों वों लगां रखीं हैं,किंससें मिलनां हैं,क्यां नाम हैं तुम्हारां,क्यों मिलनां है,पहले मैं उसके लोकल गांर्जन कों  फोंन कर पूंछती हूं ,नांम बताओं अपनां, यह कहते हुए उसने लैण्ड लाइन वाले फोन का रिसीवर उठाकर कान में लगा लिया व नबंर डायल करने की मुद्रा अख्तियार कर ली।यार इतने सवाल तो तिहाड़ जेल में बंद मुजरिमों से मिलने वाले मुलाकातियों से भी क्या ही पूछे जाते होंगे, मैंने आगे देखा ना पीछे व मुठ्ठी थूक लगाकर दौड़ लिया।क्या दिन थे यार।एक बार दरोगा पुण्डीर ने भी तो दौड़ाया था।दोस्तों के कहने पर डण्डा सिंह रावत के खिलाफ बैठ गए धरने पर।वी सी हटाओ आंदोलन।लेना एक ना देना दो वी सी हटाओ।अगले ने पुचकार कर बहुत समझाया बेटा पढ़ाई कर लो,पढ़ने आए हो।हमने कहा कोई क्लास नहीं चलेगी।ना पढ़ेंगे , ना पढ़ने देंगे।उन्ने पूछा , क्यों क्या मांग है तुम्हारी।अब , हमारी कोई मांग होती तो हम बताते।कुछ ना सूझा बोल दिया हमारी एक ही मांग है वी सी हटाओ।वी सी  हटाओ।उन्ने का बेटा ये दरी टैण्ट उठाओ नहीं तो फोन कर बुलाता हूं पुण्डीर को।अब सोचते हैं यार क्या विजन था बंदे का।उस समय उसने एन एस एस का चौरास में कैम्प‌ लगवाकर झाड़ियां साफ करवांई।तब लोगों ने कहा पागल है।पल्ली पार क्यों काम करवा रहा है कैम्पस तो इधर है।फिर जब उन्ने कहा चौरास नया कैम्पस बनेगा।तो लोग फिर बोले पूरा पागल है ये मुहम्मद तुगलक की औलाद।आज देखो यार क्या चमाचम हो गया है चौरास कैम्पस।अब तो असली युनिर्वसिटी उधर ही लगती है।सच में यार डी एस रावत जैसा बंदा ना पहले कभी आया और ना अब कभी आएगा।विश्वविद्यालय में क्या कर्मचारी,क्या लेक्चरर,क्या रीडर,क्या प्रोफेसर,और छात्र नेता तो--------।सब सुधार दिए।ईमानदार,कर्मठ,मेहनती,लगनशीलअपना एक आदमी नौकरी पर नहीं लगाया,एक बिस्तरबंद लेकर आया था टर्म पूरा हुआ बिस्तर बंद उठाया चल दिए।किसी नियुक्ती में कोई नेतागिरी नहीं,कोई सिफारिश नहीं,कोई दबाव नहीं।अड़ गए तो अड़ गए।काम शीशे की तरह साफ।यार जमाना सदियों याद करेगा बंदे को।इसे कहते हैं पैसा नहीं कमाया नाम खूब कमाया।यार आज बहुत बातें हो गयीं तू भी कै रा होगा बौत चाट लिया।बाकी फिर ओ के।

नीरज नैथानी