सूर्य नमस्कार का वैज्ञानिक महत्व

 संसार में दिखाई देने वाली सभी वस्तुओं का मूल आधार सूर्य ही है। सभी ग्रह, उपग्रह और नक्षत्र सूर्य की आकर्षण शक्ति के द्वारा ही अपने निश्चित आधार पर घूम रहे हैं। विश्व का ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है और सूर्य के द्वारा ही संसार की गतिविधियों का संचालन होता है। सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के कारण ही प्रकृति में परिवर्तन आता है इसलिए योगशास्त्रों में सूर्य नमस्कार आसन का वर्णन किया गया है। सूर्य नमस्कार आसन से मिलने वाले लाभों को विज्ञान भी मानता है। सूर्य नमस्कार महायोग के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होता है।

आयुर्वेद शास्त्र में तो अपने जन्मकाल से ही सूर्य को आरोग्य का देवता मानता आ रहा हैं। विश्व के सभी विख्यात पुरुषों ने भी हाईजीनिया की जगह सूर्य को ही आरोग्य का देवता स्वीकार कर लिया हैं

सूर्य नमस्कार एक ऐसा व्यायाम हैं, जिसके शारीरिक बल बढ़ने के साथ मानसिक उन्नति भी होती है, क्योंकि कसेरू-संकोच तथा कसेरू-विकसन से स्नायु मंडल का व्यायाम होता हैं, जिससे स्नायु मंडल सशक्त होकर मानसिक बल प्राप्त करता हैं। हिन्दू सूर्य को ईश्वर का प्रतिक मानते हैं एवं उसकी उपासना द्वारा निश्चित रूप में अध्यात्मिक उन्नति करते हैं। इस प्रकार सूर्य-नमस्कार से सर्वांगीण विकास और अध्यात्मिक उन्नति होती हैं।  नित्य प्रति सूर्य नमस्कार करने वाले  अनायाम ही प्राकृतिक व्यायाम होकर शारीरिक अंग-प्रत्यंग सुदृढ़ व बलवान होता है और किसी प्रकार के रोगशोकादी पास नहीं फटकते। सूर्य नमस्कार में सूर्य भगवान जैसे भौतिक जगत में अंधकार मिटा प्रकाश फैलाते है, वैसे ही आन्तरिक-जगत में भी उसके प्रकाश-प्रसार से अशुभ और असुखमयी अंधकार की शक्तियों का नाश होता है।

प्रात: काल जब तक सूर्य का रंग लाला रहता हैं, तब तक उसमें से अल्ट्रा वायलेट रेज़ नाम की किरणें निकलती है। आज-कल कृत्रिम अल्ट्रा वायलेट रेज़ द्वारा कई दु:साध्य रोगों को दूर किया किया जा रहा है। प्राकृतिक अल्ट्रा वायलेट रेज़ में सूर्य नमस्कार व्यायाम किया जाय तो कितना लाभ होगा, यह प्रत्येक विचारशील मनुष्य स्वयं समझ सकता हैं।

वैसे तो सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए उम्र का कोई संबंध नहीं है। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इसे कर सकते हैं। फिर भी इसकी कुछ सावधानियां भी है।

शरीर में अधिक मादक या विषैले पदार्थ होने से सूर्य नमस्कार के अभ्यास के दौरान यदि बुखार की दशा उत्पन हो तो सूर्य नमस्कार का अभ्यास रोक देना चाहिए।बिना किसी थकान के अभ्यासी जितने चक्रों का अभ्यास कर सकता है उसे उतना ही करना चाहिए। शरीर पर व्यर्थ जोर न डालना चाहिए। महिलाओं को अस्वस्थता एवं आम जन में उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी तथा अन्य किसी भी प्रकार के लोग की स्थिति में सूर्य नमस्कार का अभ्यास योग्य विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।