योग जीवन जीने का नियम और संयम

(योग मन की शान्ति, धैर्य, संयम का प्रतीक)

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन है,योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है।

योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक ऐसा अमूल्य उपहार है,जो कर्मेन्द्रिया और ज्ञानेन्द्रियाओं में एकता, विचार,संयम एवं मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।योग स्वास्थ्य और विश्व कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह व्यायाम के साथ अपनी इन्द्रियों में एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति में बदलती जीवन-शैली में नव चेतना बनकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में हमारी मदद करता है। 

  21 जून को योग विद्या का धरती पर अवतरण हुआ था।

योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि यदि आदि काल में इसकी रचना और वर्तमान समय में इसका ज्ञान के प्रसार को स्वहित से अधिक सर्वहित  हित को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। तो श्री कृष्ण के गीता के उपदेश में योग स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुंचने की एक सफल यात्रा है।

 अगर हम योग को स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए करते हैं, तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर हम योग को केवल एक प्रकार का व्यायाम मानते हैं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है। आज जब 21 जून को भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में योग दिवस को बहुत ही जोर शोर से मनाया जा रहा है।

तब योग के विषय में यह जानना आवश्यक हो जाता है, कि हम योग की सीमाओं को कुछ विशेष प्रकार से शरीर को झुकाने और मोड़ने के अंदाज़ ,यानी कुछ शारीरिक आसनों तक सीमित नहीं है।  योग केवल शरीर को स्वस्थ रखने का साधन न होकर यह जीवन जीने की कला है, अर्थात योग पूर्ण चिकित्सा पद्धति है ,हमारे शास्त्रों में इसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष है , और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह एक पूर्ण मार्ग है , 

 योग सम्पूर्ण मानवता को भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य तोहफा है जो शरीर, मन,बुद्धि, धैर्य,संयम, कार्य एवं विचार को समन्वय और संतुष्टि के साथ मनुष्य को प्रकृति के बीच एक सामंजस्य स्थापित कराता है। 

  2015 से भारत सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष विश्व के हर कोने में योग दिवस जोर शोर से मनाया जाता है। ब्रिटेन की संसद में भारत की ओर से योग दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रारूप प्रस्तुत किया गया था। 

 नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने प्रतिवर्ष 21 जून को इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए एक विशेष स्थान हासिल कर लिया। लेकिन हम क्या जानते हैं कि भारतीय योग की पताका सम्पूर्ण विश्व में फैलाने के लिए 21 जून को ही क्यों चुना गया ? यह महज़ एक इत्तेफ़ाक़ है या फिर इसके पीछे कोई वैज्ञानिकता नहीं है ? तो यह जानना दिलचस्प होगा कि 21 जून को चुनने के पीछे कई ठोस कारण हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि उत्तरी गोलार्ध पर यह पृथ्वी का सबसे बड़ा दिन होता है , और इसी दिन से सूर्य अपनी स्थिति बदल कर दक्षिणायन होता है।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात , यह वही दिन था जब आदि गुरु भगवान शिव ने योग का ज्ञान सप्तऋषियों को दिया था। कहा जा सकता है कि इस दिन योग विद्या का धरती पर अवतरण हुआ था, इसीलिए विश्व योग दिवस मनाने के लिए इससे बेहतर कोई और दिन हो भी नहीं सकता था। 

 लेकिन इन सभी चीजों के बीच हमें यह नहीं भूलना होगा कि योग हमें केवल शरीर ही नहीं बल्कि मन और आत्मा के शुद्धिकरण द्वारा  प्रकृति , ईश्वर एवं स्वयं अपने निकट भी लाता है , तो यह भी जान लें कि योगासन अष्टांग "योग" का एक आसान उच्चारण है। वह योग जो शरीर के भीतर प्रवेश द्वारा मन और आत्मा का स्पर्श कराता है।इसमें यम और नियम का पालन , प्राणायाम के द्वारा सांसों यानी जीवन शक्ति पर नियंत्रण , बाहरी वस्तुओं के प्रति बलिदान,धारण यानी एकाग्रता,ध्यान अर्थात चिंतन और अंतर में समाधि द्वारा योग से मोक्ष प्राप्ति तक के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो देश सदियों से योग विद्या का साक्षी रहा है।

उस देश के अधिकांश युवा आज की आधुनिक जीवन शैली और खान पान की खराब आदतों के कारण कम उम्र में ही डाय और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। अगर हम योग को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करके, अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाकर, बहुसंख्यक बीमारियों को जीत सकते हैं।बल्कि स्वयं को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप में स्वस्थ भी रख सकते हैं। किसी भी देश के लिए इससे बेहतर कोई सौगात नहीं हो सकती कि उसके युवा स्वास्थ्य,स्फूर्ति , जोश और उत्साह से भरे हों। तो आगे बढ़िए , योग को अपने जीवन में निरन्तर शामिल करिए जिससे "एक स्वस्थ भारत श्रेष्ठ भारत" का निर्माण हो सकें।