जाने कहाँ गए वो दिन
नौंवी किश्त 


 

वह इंगलिश लिटरेचर से एम ए फाइनल कर रहा था।साढ़े पांच फुट से कुछ अधिक ही रही होगी उसकी हाइट।दुबला पतला बदन।सिर पर घुंघराले बाल।हल्की खिचड़ीनुमा दाढ़ी।आंखों पर पावर का मोटे लेंस वाला चश्मा।पुतलियां अंदर की ओर गढ्ढे में धसीं हुयीं।मानो वह पक्का नशेड़ी हो या दिन रात पढ़कर आंखें घिस दी हों।अंग्रेजी फर्राटेदार बोलता था,धाराप्रवाह और वह भी हाई क्लास एक्सेंट के साथ।यूनिवर्सिटी में सब उसे कामरेड कहकर पुकारते थे।सच्चाई यह थी कि कइयों को उसका असली नाम बहुत बाद तक पता ना चला।वह हमेशा  लाल सलाम  कहकर अभिवादन किया करता था।मैंने उसके हाथ में हर दूसरे तीसरे दिन कभी मैक्सिम गोर्की की ' मदर ' तो कभी कार्ल माक्स की दास कैपिटल,या लेनिन,टालस्टाय की या फिर सब्य सांची की कोई नई किताब देखी होगी।नक्सलबाड़ी आंदोलन के किस्से वह ऐसे जीवंतता से सुनाता,मानों पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में 1967 में सत्ता के विरोध में शुरु हुआ यह शस्त्र आंदोलन तथा उसमें चारू मजूमदार व कानू सान्याल की भागीदारी स्वयं उसने आपनी आंखों से देखी हो।मैं दावे से कह सकता हूं कि कुछ शब्द जो मेरे लिए सर्वथा नए होते थे मैंने पहली बार उसके मुंह से ही सुनकर अपनी जानकारी में इजाफा किया होगा।वह अपनी बातचीत में बुर्जुवा,सर्वहारा,इजारेदारी,भू माफिया,वर्ग संघर्ष,प्रतिक्रियावादी ,शोषणकर्ता,शोषित,वंचित,दबे कुचले,मजदूर,श्रमिक जैसे शब्दों का ज्यादातर इस्तेमाल करता था।उसके किस्सों में अधिकतर रूस मास्को,लेनिनग्राद,जार,माउत्स तुंग,लांग मार्च या पoबंगाल,केरल,त्रपुरा की कम्यूनिस्ट पार्टियों का जिक्र हुआ करता था।जनसत्ता व ब्लिट्ज उसके प्रिय अखबार थे।वह प्राय:  कहा करता होकर रहेगी,क्रांती होकर रहेगी।सड़ी गली भ्रष्ट व्यवस्था बदलेगी जरूर बदलेगी। चेखव,बर्तोल ब्रेख्त,पाब्ले नारदो की जीवनी ना जाने उसने कितनी बार सुनायी होगी।मुझे याद है एक बार छात्र संघ चुनाव के बाद छात्र संघ भवन ठसाठस लड़कों से भरा हुआ था।वहां विभिन्न पदों पर जीते हुए छात्र प्रतिनिधि एकमत नहीं हो पा रहे थे कि शपथ ग्रहण समारोह में किस पार्टी के बड़े राष्ट्रीय नेता को आमंत्रित किया जाय।तभी ना जाने कामरेड कहां से आ टपका।जिज्ञासावश उसने अंदर झांकते हुए पूछा किस बात पे बहस चल रही है।विषय व प्रकरण पता चलते ही उसने लगभग हीस्टीरिया अंदाज में आवेशित होकर चिल्लाते हुए कहा।दोस्तों मानसिक दीवालिये पन से बाहर निकलना होगा।समाज में गंदगी फैलाने वाले तलुआ चाटू मक्कार टटपूंजिये को बुलाने से बेहतर है अपने विश्वविद्यालय के किसी सफाई कर्मचारी से छात्र संघ के नवनिर्मित भवन का उद्घघाटन व शपथ ग्रहण समारोह करवाओ।जो हमारे कैम्पस की मन लगाकर सफाई करता है।कूड़ाकरकट व गंदगी नहीं होने देता।जिसके कारण हम स्वच्छ माहौल में पढ़ पाते हैं।कम वेतनभोगी वह गरीब कर्मचारी मुख्य अतिथि होने का असल हकदार है।उसकी ऊटपटांग बात सुनकर कई सारे एक साथ  बोले ये पगला कौन है।यंहा मुख्य मंत्री,केंद्रीय मंत्री व सांसद को एप्रोच करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं और ये झांझी !पागल अपनी अनर्गल हांके जा रहा है।बाहर करो इसे।


दसवीं कीश्त

जब वहां पर उपस्थित लड़के उस पर पागलपन का बिल्ला चस्पा करते हुए उसे छात्र संघ भवन से बाहर धकियाने लगे तो वह जाते जाते बहुत जोर से चिल्लाया था,मैं बताऊंगा तुम सबको कि मैं कितना बड़ा पागल हूं।मैं दिखाऊंगा तुम्हें अपना पागलपना।फिर कुछ दिनों तक वह  किसी को ना तो हास्टल में दिखा और ना ही कैम्पस में।इस बीच  सेंटर गवर्नमेंट के एक कबिनेट मिनिस्टर ने मुख्य अतिथि के रूप में पधारकर नव निर्वाचित छात्र संघ पदाधिकारियों को शपथ दिलवाई।प्रोटोकाल के तहत स्वागत सम्मान  के अतिरिक्त रेड कार्पेट वेलकम से वे इतना अभीभूत हुए कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से लाखों रुपए की ग्राण्ट दिलवाने की घोषणा भी कर गए।फिर कुछ दिन तक कैम्पस व हास्टल में कोई ऐसी खास गतिविधि नहीं हुयी कि उसका यहां पर जिक्र करना जरुरी हो।।लेकिन लगभग महीने भर बाद कामरेड अचानक प्रकट हुआ।आठ दस लड़कों का झुण्ड साथ लिए वह हर किसी को बताता  फिरता , हम अतुल अंजान की विशाल सभा आयोजित करने जा रहे हैं।लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष अतुल अंजान  इस छोटे से पर्वतीय कस्बे में आकर‌ विशाल सभा को संबोधित करने वाले हैं बड़ी खबर बन गयी।

उस समय हमारा एक यूनिवर्सिटी फेलो (जो लखनऊ से ग्रेजुएशन कर यहां पी जी करने आया था)ने बताया कि जब लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव हो रहे थे तो अतुल अंजान ने अध्यक्ष पद के लिए पर्चा भरा।लखनऊ के बाहुबली छात्र नेताओं ने उनसे नाम वापस लेने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाकर दबाव बनाये।पर अतुलअंजान चुनाव लड़ने के लिए अड़े रहे।अपनी हर चाल असफल होती देख विरोधियों ने बदमाशों से उन पर जानलेवा हमला करवा दिया।अगले दिन कैम्पस में जनरल गेदरिंग थी।उस गेदरिंग में स्पीच देने के लिए जब अतुल अंजान पंहुचे तो उनकी हालत देखकर हर कोई भौचक्का रह गया।ऊपर से नीचे तक प्लास्टर लगा हुआ।जहां प्लास्टर नहीं लगा था वहां पर तमाम पट्टियां बंधी थीं।दोनों आंखों के नीचे  चोट के गाढ़े नीले निशान।कई जख्मों से खून ने रिस रिसकर सफेद पट्टी को गाढ़ा लाल काला कर दिया था।उन्हें स्ट्रेचर पर मंच पर लाया गया।अपना नबंर आने पर बेइन्तिहां हो रहे दर्द को झेलते हुए जो उन्होंने जबरदस्त स्पीच दी तो स्पष्ट हो गया कि ऊंट किस करवट बैठने वाला है।छात्र छात्राओं की सहानुभूति व गड़़गड़ाती करतल ध्वनि की गूंज ने चुनाव से पूर्व ही परिणाम घोषित कर दिया।कहने की आवश्यकता नहीं कि वोटिंग से लेकर काउंटिंग तक हवा में यही खबर नुमाया थी कि कोई हरा ही नहीं सकता।फिर परिणाम तो सिर्फ औपचारिकता भर रह गए मालूम हो रहे थे।प्रचण्ड जीत से नया इतिहास लिखने वाले ऐसे छात्र नेता को लखनऊ से आकर गढ़वाल विश्वविद्यालय में  व्याख्यान देने के लिए राजी करना कामरेड की ऊंची पहुंच का ही कमाल था।कहना अतिश्योक्ति ना होगा कि कामरेड व उसके गिने चुने साथियों ने दिन रात प्रचार कर सभा में विद्यार्थियों की अच्छी खासी भीड़ भी जुटा ली।और जब मंच पर आकर अतुल अंजान ने संभाषण शुरु किया तो पिन ड्राप साइलेंस छा गया।अतुल मंच से आग उगल रहे थे।मेरे कामरेड भाइयों आपने कभी सोचा,दिल्ली,कलकत्ता,मुंबई में गगन चुंबी ईमारतें बनाने वाला मजदूर फुटपाथ पर क्यों सोता है?अहमदाबाद,सूरत,महाराष्ट्र की कपड़ा मिलों में हर दिन हजारों मीटर कपड़े बनाने वाले के बदन पर फटी चीर क्यों होती है?दवाई की फैक्ट्री में दिन रात कड़ी मेहनत करने वाले गरीब मजदूर का बूढ़ा बाप बिन दवाई ईलाज के क्यों मर जाता है?खेत में पसीना बहाने वाले किसान का चूल्हा सूना क्यों रहता है?ऐसे तमाम सारे जवलंत प्रश्न उछालते हुए अतुल अंजान ने उपस्थित छात्र समूह को आवेशित कर दिया।उत्तेजक सभा के बाद बाजार में जुलूस निकाला गया।उस दिन श्रीनगर का सारा बाजार लाल झण्डों से अटा पड़ा था।हवा में जोशीले नारे गूंज रहे थे-लाल किले पर लाल निशान,मांग रहा है हिंदुस्तान।बीस लाख हैं बेरोजगार,कौन है इसका जिम्मेवार?सड़ी गली सरकार को एक धक्का और दो।हर जोर जुल्म की टक्कर से संघर्ष हमारा नारा है।चमकेगा भई चमकेगा हंसिया हथौड़ा चमकेगा।इस पूरे प्रकरण ने हमारे कैम्पस के कामरेड को हीरो बना दिया।व उसके सफल अभियान से एकबारगी तो ऐसा लगने लगा कि पूरा कैम्पस ही साम्यवादी विचारधारा का गढ़  बन गया है।