फुटपाथ पर दिवाली

फुटपाथ है अपना बिछौना,खुला आसमा है ओढ़नाआई दीवाली हमें हरसा गई । हमारी  बेबसी पर हमें तरसा गई ।काश!होती हमारी भी क़िस्मत ऐसी ,रहने को घर और सोने को  होती चारपाई।
     


जब हम सब अपने -अपने घरों में उत्सव मना रहें  होते हैं ,तब ये लोग अपनी बेबसी पर आँसू बहा रहे  होते हैं।कितना सही है कथन इनका ,हमारे लिए तो क्या होली, क्या दीवाली !क्या फ़र्क पड़ता है आए ईद या फिर क्रिसमस,हमें तो हर रोज़ कचरे के ढेर से  ही अपने पेट के लिए सौगातें  हैं चुननी ।जिस दिन कचरे के ढेर से कुछ ज़्यादा मात्रा में या कुछ ढंग का कचरा मिल जाता है हमारे लिए तो उसी दिन त्योहार होता है। उसे बेचकर भर पेट भोजन मिल जाय तो पूरे कुनबे की ख़ुशी देखते ही बनती है।
       
कितनी बड़ी विडम्बना है कि समाज का एक तबका खाने की मेज पर तरह -तरह के लज़ीज़ व्यंजनों का लुत्फ उठा रहा होता है और दूसरा वर्ग  सड़े हुए  बदबूदार कचड़े  से चुन चुनकर अपने पेट भरने की व्यवस्था करता है। वाह रे आज़ाद भारत! क्या हमारे पदासीन नेताओं की नज़र इन तक नहीं पहुँचती? पहुँचेगी भी कैसे ...सड़क पर जब नेताओं की सवारी चलती है तब  आम  जनता को  आसपास रहने  तक का अधिकार नहीं होता है। सड़कें खाली करवा दी जाती हैं कि नेता जी की सवारी आने वाली है। समझ में नहीं आता किआज़ाद भारत में ये कैसी आज़ादी है! ऐसे में इन बेचारों की क्या बिसात कि ये कहीं नज़र आ जाएँ!
  
सरकार दावे तो इतने बड़े -बड़े करती है ।चुनाव के समय जितने वादे  नेताओं के द्वारा किए जाते हैं उनमें से  पच्चीस प्रतिशत भी यदि ईमानदारी से निभा लिए जाएँ तो समाज की तस्वीर ही बदल जाए। चुनाव के समय किए जा रहे वायदों को सुनते हुए लगता है कि अमुक नेता को कुर्सी मिलते ही  उस क्षेत्र की काया पलट  होने वाली है लेकिन चुनी गई सरकार क्या कभी यह जानने की कोशिश करती है कि जितनी योजनाओं का बखान किया गया है उनका कितना प्रतिशत उन ज़रूरत मन्दों तक पहुँच रहा है जो सही में इसके हक़दार हैं या फिर उन योजनाओं का पूरा लाभ समाज के वे ही ठेकेदार उठा रहे हैं जो पहले से ही मखमल के गद्दों में सो रहे हैं और काजू -बादाम डकार कर  बढ़ी हुई तोंद को घटाने के लिए आलीशान वातानुकूलित शरीरिक गठन के लिए बने जिम का  आनंद ले रहे हैं।आम जनता में से यदि कोई आवाज़ उठाने की कोशिश करता भी है तो उसकी आवाज़ को बाहर आने से पहले ही दफ़ना दिया जाता है।क्या इसी को प्रजातंत्र कहते हैं? न जाने जनता कब जागरूक हो पाएगी!कब अपना भला -बुरा सोचने समझने की ईश्वरीय प्रदत्त बुद्धि को जगा पाएगी।
        
    आने वाले नव वर्ष में ईश्वर से है ये प्रार्थना कि सरकार कुछ ऐसा कर जाए कि  आनेवाला  समय इन लोगों के लिए ज़िन्दगी का वरदान बन जाए।