विरह का गीत (वक्रतुण्डोपनिषद )


अतिथि लगे अपना ही मन /


जब देह भवन सुनसान लगे 


साधन से ही सुख उकताएँ /


अंतर्व्यथा अज़ान लगे 


प्रेम आत्म-व्याख्याएं ढूंढे /


मन उच्चाटन समय हरे 


प्राण-व्यग्रता, श्वास उग्रता /


दिनचर्या विद्रोह करे


प्राणसखी की विरह वेदना /


भाग्य रिक्त स्थान लगे


सच कहता हूँ मंगलपति जी ! /


जीवन ही व्यवधान लगे