वक्रतुण्डोपनिषद


कांग्रेसी राजनीति 


राजनीति जब पांचाली सी / ऊरूभंग के सपने बोती है


हतगौरव से इन भीमों के / गदा ज्ञान पर रोती है 


फिर गांधारी तम उद्घाटन / फिर शकुनी उग आते हैं 


विवश हुए हैं सहस्त्रनेत्र / जन्मांध समर रच जाते  हैं 


श्याम सो गए एकार्णव में / धर्म अब क्रंदन करता है 


गणपति तुम ही शंख फूंक दो / कण कण वंदन करता है