आचार्य चक्रधर जोशी


15 अगस्त1980 को देवप्रयाग वासियों ने आजादी का पर्व मनायाऔर दूसरे दिन16 अगस्त 1980 को एक बड़े आघात ने पूरे नगर को एक तरह से निस्तेज कर दिया ,जब यह समाचार आया कि उसने अपने एक संस्कृत के कवि, लेखक,भाष्यकार, साधक, समाजसेवी,शिक्षाप्रेमी आध्यात्मिक पुरुष और सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद मनो विनोदी लक्ष्मीधर विद्यामन्दिर,प्राच्य विद्या एकेडमी,एस्ट्रोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नक्षत्र वेधशाला के संस्थापक,इन्टरकोलेज के विज्ञान भवन और डिग्री कालेज के भवन निर्माताऔर संथापक अध्यक्षआचार्य पं चक्रधर जोशी  को खो दिया है।16 आगत को उनकी पुण्यतिथ उन्हेँ नमनकरते है विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है। इस अवसरपर यदि हम उनकेजन्म और मृत्युके विषय मे कुछ प्रकांड विद्वानों के शब्दों का अगर उल्लेख  नही करें तो जोशी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ताजा नही होगी और यह उन विद्वानों और जोशी जी के साथ भी अन्याय ही होगा। जोशी के शिष्य प्रेमी परिवारजन और परिचित मुझे माफ करेंगे कि आज मैं आचार्य जी को श्रद्धाजंलि स्वरूप अपने सामने घटित घटना कोप्रस्तुत कर रहा हूँ,उससे पहलेउनके जन्म और मृत्य पर विद्वानों ने क्या कहा बतादें।
पं मुरलीधर शास्त्री कहते हैंः---
''लक्ष्मीधरस्येव कनिष्ट पत्नी
श्री रत्नदेवी स्व नाम धन्या
 भद्रे शुभे''वामन''जन्मकाले
सुतं सु रत्नं सुसुवे सुधन्यम''यह श्लोक बताता है कि जोशी जी का जन्म पं लक्ष्मी धर जोशी को द्वितीय पत्नी श्रीमती रत्न देवी के गर्भ से वामन द्वादशी को हुआ था अर्थात जिस दिन विष्णु के अवतार वामन भगवान का जन्म हुआ था इसपर संस्कृत साहित्य और व्याकरण के प्रकांड विद्वान पं नरहरि शास्त्री का कहना हैकि ''यह चक्रधर त्रिविक्रम का अवतार होगा और कुछ विलक्षण करेगा''भारतवर्ष में संस्कृत साहित्य में अपार ख्याति प्राप्त विद्वान डॉ, शशिधर शर्मा ने कहाः-
'' प्रकाशपिंडोपनिष्त्प्रकाशे
 निनाय यावज्जीवितमेव
प्रकीर्य लोके सततं प्रकाशं
प्रकाश धामा$धिरोह तत्सघ्ः''अर्थात् वे एक प्रकाश पिंड की तरह आये और अपना प्रकाश छोफकर संसार से चले गएडॉ,योगेंद्र शर्मा ''अरुण''ने उन्हें'',ध्रुवतारा''बताया। जोशी की असामयिक मृत्य पर पं मुरलीधर शास्त्री का कहना है किः
''सप्त त्रिशून्ये नयने(2037सम्वत) च वर्षे
 पाठ्यां शिते श्रावण के च मासे
हृदरोग वेगात सहसाह्य काले
 दिवंगतं चक्रधरःदयालुः''
जैसा कि पं मुरलीधर शास्त्री ने जोशी नई के लिए दयालु शब्द का प्रयोग किया है,सचमुच में वे दयालु ही थे।इस अवसर पर अब मैंपुनः श्रद्धांजलि स्वरूप एक प्रत्यक्ष घटना का उल्लेख करता हूँः-
आचार्य जी जब देव प्रयाग में रहते थे तब से याने बचपन से ही मेरा उनके निवास पर बराबर आना जाना रहता था  मेरा जन्म भी देवप्रयाग में ही हुआ था और मेरी दादी कलावती देवी आचार्य जी की बहिन थी इस बजह से हम बेरोकटोक जोशी के घर जाते रहते थे।  मेरा परिवार एक कट्टर सनातनी श्री वैष्णव दक्षिण भारतीय परम्परा से है ।वैसे देवप्रयागी सारे दक्षिण भारत से ही है इसी लिए इनकी पूजा  पद्धति शेष गढ़वाल से भिन्न है ।पारिवारिक परम्पराओं का मुझ पर लंबे समय तक असर रहा जिस कारण मेरी अभिरुचि धर्म कर्म ज्योतिष तंत्र मंत्र आदि में खूब रही।और मेरा संपर्क संस्कृत के विद्वानों ,ज्योतिषियों,तांत्रिकों,सिद्धों, अघोरियों आदि से खूब रहा ।यह तब छूटा जब मैने द्वंदात्मक भौतिक वाद को समझा मार्क्सवाद लेनिनवाद के अध्ययन से जुड़ा।
  जब जोशी जी ने तुणगी ग्राम में नक्षत्र वेध शाला की स्थापना की तब भी मेरा उनके पास जाना बना रहा।
वैसे मेरा देवप्रयाग के लगभग सभी लोगों से संपर्क रहा पर मुझे अच्छी तरह याद हैकि जोशी जी जैसा विनम्र अहंकार शून्य और  क्रोध परे मेरे संज्ञान में आज तक नही आया। मेरा यह हाल रहा कि जब भी मैं वेध शाला जाता और आचार्य जी को थोड़ी देर के लिए खाली पाता तरन्त अपनी जन्म कुंडली उनका रजिस्टर खोलकर उनके सामने रख देता था पर उन्होंने न तो कभी मुझे डांटा, न टालाऔर न ही कभी यह कहा कि-कितनी बार देखूं बल्कि ध्यान पूर्वक ज्योतिष शास्त्र का कोई श्लोक गुनगुनाते बताने कहते थे पर मुझमें उस समय इतनी जिज्ञासा रहती थी मैं बिना जाने उन सवाल करने लगता था वे भी बिना ऊबे मुस्कराकर एक एक बात समझाते रहते थे। 
  इस बीच यकायक वे शूगर बी पी के मरीज को गए अबडाक्टरों ने उनकी दिनचर्या का एक निश्चित शिड्यूल बना दिया खासकर कहने सोने ।फिर भी वे आगंतुमकों को कभी निराश नही करते थे।मैन उन्हें कभी भी छोटे बड़े, अमीर गरीब में फर्क करते नही देखा।
      एक दिन मैं घर से नाश्ता करके रात्रि विश्राम के लिए वेध शाला पहुंच गया जैसे ही पहुंचा आचार्य जी मे प्रसन्न मुद्रा में कहा ''आ नाती आ''।अपनी पत्नी( बूढ़ीजी याने पिता  जी मामी)से कहा:-''सुधाकर की माँ नाती भी यहीं जीमेगा याने भोजन करेगा 'मैंने कहा मैं तो कल जाऊंगा''बोले'''अति उत्तम''संयोग से खाली थे मैन पूर्वकी तरह जन्म कुंडली थमा दी कछु देर बाद बोले अभी समय लगेगा फिर नहाने मध्यान्ह संध्या में व्यस्त हो गए कीचन से आवाज आई खाना तैयार हैआने साथ जोशी जी मुझी भी ले गए बूढ़ी जी से बोले ओनके नाती को दो  कहने के बाद जैसे ही हम बाहर आये  एक बूढ़ा गरीब किसान फटे मैले कुचैले कपड़ो में पसीने से लथ पथ वहां पहुंचा और सिर झुका'' पायलागूँ गुरु जी''गुरु जी ने आशीर्वाद कहा ।वह बोला गुरुजी बहुत ही कष्ट में हूँ कृपा चाहिए ।इतने में मुझे ठीक2 याद नही हाकिवक व्यक्ति शायद रघुनाथु बूढ़ा जी थे या करणीदान चाचा जी कहने लगे-ःअब गुरु जी का  सोने का समय है 5 बजे बाद मिलेंगे।''जोशी ने उसकी तरफ ध्यान देकर उसे कमरे में ले गए कहने लगें सचमुच टीम कष्ट में हो।एक के बाद एक जन्म पत्री देखते रहे बताते रहे सबका अलग2 उपाय ।अंत में उसनेजेब झाड़ झपोड कर5 रुपये निकले उसनेजोशी जी के आगे रख कर कहा'' गुरुजी यही है बहुत शर्म लग रही है ''जोशी ने कहाः-''बहुत है।उत्तम'आज मुझे मुरलीधरशास्री जी के शब्द सही लग रहे हैं कि वे दयालु थे सच मुच।जोशी जी आरामकरने चले गए।
  शाम को उठे तोमैने एक सवाल दाग ही दिया कि बूढ़ाजी अगर ज आपको कुछ हो जाता तो?कहने लगे मैं बीमारी के बाद भी अगर जिंदा हूँ तो दवाईयों से ज्यादा ऐसे लोगो के सच्चे आशीर्वाद से जो मेरेयहाँ इनके भोजन या नाश्ता करने के बाद जो डकार निकलती है उसके साथ आने वाली दुआओं से। म
मुझे यह सुनकर बहूत शांति और रास्ता मिल गया कि गरीबों के लिए जीना मरना सबसे बड़ा धर्म है ।उस दिन से मैंने कम्युनिज्म का रास्ता पकड़ लियाक्योकि जब वह किसान वेधशाला आया तब जोशी जी का आर्थिक और सामाजिक स्तर काफी ऊंचा हो गया था उनके बडे बडे राजनेताओं और उद्योगपतियों से संपर्क हो चुके थे पर फिर भी उनका व्यवहार सबके प्रति समान रहा ।सोने जाने से पहले उन्होंने घर वालो को कहा इस आदमी को बिना कुछ खाये जाने मत देना।  मुझे नरहरिशास्री जी का कथन याद आरहा है कि यह विलक्षणहोगा सचमुच ही ।आज जोशी जी हमारे बीच नही है पर उनके द्वारा स्थापित आतिथ्य सत्कार की परंपरा कायम है।कोई भी वहां से खाली हाथ नही लौटता।
   उनके रूप में उनके कार्य आज भी सामने है ।ऐसी महान विभूति को कोटि कोटि नमन।इसविवरण के बाद जिस घटना का जोशी जी वर्णन किया वह और भी रोचक  है फिर कभी।सम्भव हुआ तो कल पुण्यतिथि पर।(नोटःइसमें दिए गए श्लोक आचार्य चक्रधर जोशी स्मृति ग्रंथ से लिये गए हैं  मय तस्वीर के)