दान एक दैवीय गुण                                                    

       अनुकुले विधौ देयं एतः पूरयिता हरि|

       प्रतिकूले विधौ देयं यतः सर्वहरिष्यति ||

भाग्य अनुकूल हो तब दान देना चाहिये ,क्योँकि सब देने वाला भगवान है | भाग्य प्रतिकूल हो तो तब भी दान देना चाहिये, क्योंकि सब हरण करने वाला भी ईश्वर ही है |

दान एक ईश्वरीय गुण है क्योंकि दान करने की भावना अन्तर्मन से आती है ,जो कि सत्कर्मों द्वारा ही ही आती है | न कि किसी के बताने या संस्कार से ही |


ज्योतिष और दान - ज्योतिष मे दान का खास महत्व है ग्रहों की दशा ठीक न होने पर हर एक ग्रह के लिए अलग अलग तरह के  दान का विधान है | प्रकृति भी प्राणियों को दान करने की प्रेरणा देती है| 

 कालीदास ने कहा है :- "अदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव |"

जैंसे बादल पृथ्वी से जल लेकर पृथ्वी पर ही वर्षा कर देते हैं ,उसी तरह सज्जन जिस वस्तु को ग्रहण करते हैं उसी तरह सहज भाव से त्याग भी कर देते हैं |             

पवित्र ह्रदय से तथा गुप्त रुप से किया गया दान ही सार्वोच्य माना गया है | 

न्यूटन के नियामानुसार पृथ्वी मे गुरूत्वाकर्षण के कारण कोई भी वस्तु ऊपर से नीचे की तरफ आती है , ठीक वही नियम हमारे द्वारा किये गये हर एक कर्म पर लागू होता है , क्योंकि हम भी  पृथ्वी पर ही हैं | दिया हुआ किसी न किसी रुप मे किसी न किसी के द्वारा वापस मिल जाता है |