नन्हीं सी गौरेया
मुस्कुरायी
आज बरखा आयी
उसके फड़फड़ाने पर
जगता हूँ मैं
बेफिक्र सोने के लिए
बोलती है गौरेया
कोई नहीं सुनता
सिवा बसन्त के।
समझाती है गौरेया-
मुझे दान नहीं
सिर्फ दाना चाहिए
आज गौरेया ने
गीत नहीं गाया
पतझड़ फिर आया
रूठती है गौरेया
बसन्त को कोई
मनाता क्यों नहीं?
उसके आंगन से
गौरेया के गुजरते ही
झाग में बदला फाग!
मुस्कुराया योगी
जब गौरेया ने गाया-
जाग रे जोगी!
सकपकाया बादल
जब गौरेया चिल्लाई
भाग रे जोगी!
हवा हूँ मैं-
जिन्दगी से गौरेया ने कहा
और तुम?
जिन्दगी हवा हो गई
गौरेया से पहले
गुस्से में हैं गौरेया
समय क्यों नहीं आया
खुशी साथ लेकर!
रूआँसे समय से
गौरेया ने पूछा
मैं फिर आऊँगी
क्या तुम ठहरोगे,?
उस डाल पर कभी
पतझड़ नहीं आया
जहां बैठ पलभर
गौरेया ने गाया।