गुप्तकाशी में होगी विश्वनाथ पूजा


कथा वाचक आचार्य ममगाईं 


गुप्तकाशी। निजि प्रतिनिधि । पौराणिक पंरपराओं को रीति रिवाजों का निर्वहन करते हुये कल (आज) केदारनाथ तथा विष्वनाथ मंदिर में भतूज मेला धूमधाम से मनाया जायेगा, इसके लिये मंदिर समिति तथा स्थानीय भक्तों द्वारा तैयारियां पूर्ण कर दी गयी हैं। प्रतिवर्श श्रावण षुक्ल की चतुर्दषी तिथि को रात्रि के चार पहर की पूजा वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा पूर्ण की जाती हैं। नये अन्न का भोग भगवान षंकर को लगाने की परंपरा को भतूज कहा जाता है। सैकड़ो तीर्थ पुरोहित तथा स्थानीय भक्तों ने केदारनाथ धाम के लिये प्रस्थान कर दिया है। प्रेम, समर्पण तथा आपसी भाईचारे को इंगित करता यह मेला उत्साह तथा उल्लास का भी प्रतीक है।


मंदिरो के अस्तित्व में आने के बाद से लेकर केदारनाथ धाम तथा विष्वनाथ मंदिर  गुप्तकाषी में भतूज मेले को देखने के लिये सैकड़ो तादात में भक्त पहुंचते हैं। इस दौरान षिवलिंग की चार पहर की विषेश पूजा की जाती है। मेले का समापन रात्रि के चौथे पहर में सम्पूर्ण की जाती है, जिसके अन्तर्गत स्थानीय भक्त तथा हकहकूकधारी नये अन्न चावलों से बने भात का  भोग लगाते हैं। प्रभु की आरती उतारकर कीर्तन मंडली तथा षिवभक्त रात भर जागरण  करके वेदपाठियों द्वारा रूद्राश्टध्यायी के सभी अध्यायों का पाठ किया जाता है। रात के तीन पहर की तक की पूजाओं में भक्त पंचामृत से षिवार्चन करता है, साथ ही तेलाभिशेक, दुग्धाभिशेक तथा जलाभिशेक करके प्रभु से मनौतियां मांगते हैं। मान्यता है, कि इन षिवालयों में भतूज के दिन रात्रि चार पहर की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है। चौथे पहर के समाप्ति के बाद ही भगवान षंकर के त्रिकोणीय लिंग पर लेपा गया भात प्रसाद रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।गुप्तकाषी। निजी प्रतिनिधि। पित्रों के उद्धार तथा क्षेत्र की सुख सम्पन्नता की कामना के लिये देवली भणिग्राम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे चौथे दिन श्रीकृश्ण जन्म का वृतांत सुनाया गया, इस दौरान भगवान श्रीकृश्ण की झांकी भी निकाली गयी। चार धाम विकास परिशद के उपाध्यक्ष और प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य षिव प्रसाद ममगाई ने भगवान श्रीकृश्ण की बाललीलाओं का वर्णन किया। उन्होने कहा कि ठुमक चलत कृश्ण चन्द्र नाचत पैजनियां को इंगित करता हुआ भगवान कृश्ण का बाल्यकाल कटा है । माता देवकी तथा नंद बाबा के घर अर्थात कैदखाने में ज्यों ही भगवान का जन्म हुआ, तो प्रभु के चमत्कार के  कारण उनकी बेड़ियां स्वयंम खुल गयी, साथ ही कैद खाने को प्रवेष द्वार जो वर्शों से बंद था, खुल गया। नंद बाबा ने उस नन्हे प्राणी को उफनती यमुना नदी को पार किया। भयंकर बरसात से   प्रभु का सुरक्षित रखने  के लिये खुद कालिया नाग ने अपने फन से उनकी रक्षा की। श्री ममगांई ने कहा कि अयोध्या मथुरा माई, पुरी द्वारावती चैव , सप्तैते मोक्षदायक। कहा कि इस तरह के अनुश्ठान, यज्ञ या कथाओं का स्मरण, वाचन तथा श्रवण जहां भी होता है, उस क्षेत्र की पवित्रता बरकरार रहती है, इसके साथ ही पितरों को भी मोक्ष का मार्ग प्रषस्त होता है। इस दौरान राजेष बगवाड़ी, दिनेष, केषव तिवाड़ी, सुबोध बगवाड़ी, गणेष तिवाड़ी, श्रीकृश्ण , ंसुभाश पुरोहित सुरेन्द्र बगवाड़ी, तीर्थेस्वरी बगवाडी समेत सैकड़ो भक्त मौजूद थे।