हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी 

कभी अंत नहीं होता इनका। जितना है उससे अधिक पाने की चाहत और तड़प हमेशा बरकरार रहती है। ये भी तो सपनों का ही प्रतिरूप है। पर कुछ ख्वाहिशें ऐसी होती हैं जो आपको तसल्ली नहीं देती। खुद से सवाल पूछना कि क्या चाहिए? कौन सी ख्वाहिश लिए हो। जब तक सवाल नहीं ढूंढ पाएंगे, जवाब के लिए सिरे नहीं मिल पाएंगे। मैं हमेशा से ऐसे रिश्ते बनाने की ख्वाहिश करती थी, जो मुझे और भी बेहतर बनाने में मदद करे। ऐसे रिश्तों में रहकर निभाना चाहा जहाँ मुझे खुद के स्व को न मारना पड़े। मैं चाहती हूँ मुझे जानने वाले मेरे हुनर को पहचानने मेरे साथ खड़े हों, मेरा उत्साह बढ़ाएं। और शायद ऐसी सबकी ख्वाहिश हो। जहाँ तक मैं समझती हूँ किसी को बेहतर महसूस करवाने के लिए मैं खुद को कमजोर या अयोग्य न दिखाऊं। मुझे शौक है अपने सपने सच करने का। नहीं चाहती कि किसी भी वजह से मेरे सपने अधूरे रहें। जीवन की कोई भी चुनौती मेरे हौंसलों के आगे आये। जब तक मैं अपने अंदर कई तरह के सवालों का जवाब न ढूंढ लूँ मुझे सुकूँ नहीं मिलता।। 

जब भी हम अपने मन के भावों को अपने अंदर ही छुपा लेते हैं तो हमारा विकास रुकने लगता है। शायद एक समय सबके साथ ऐसा होता होगा, परंतु जिस पल से आप स्वछंद होकर अपने अंदर उठे अनगिनत सवाल और भावों को जाहिर करने लगते हैं आपके अंदर आत्मविश्वास बढ़ने लगता है।  अक्सर देखा है मैंने जो लोग खुद को दूसरों के सामने खुश और बिंदास दिखाते है, अंदर से खोखले होते हैं। हर किसी के लिए जरूरी है कि बस खुद के अंदर की बेचैनी को पहचानते हुए अपनी ख्वाहिशों को जानते हुए, अपने सम्मान के लिए अपनी क्षमताओं को बाहर लाए, उनका इस्तेमाल करे। जब दिल अंदर से खुश होता है हमारे चेहरे पर झलकता है और हमारी क्षमताएं कई गुना बढ़ जाती हैं। मेरा हर दिन यही प्रयास रहता है कि खुद को और निखारुं, वही रहूं जो मैं अंदर से हूं। ऐसा करके मैं खुद के साथ भी इंसाफ करूंगी और मेरे आसपास और मुझसे जुड़े लोगों को भी खुशी दे पाऊंगी।