कैसे पहचाने पुखराज

श्री हरि विष्णु को ह्रदय से बारंबार प्रणाम करते हुए आज मैं आपको पुखराज रत्न के विषय में जानकारी दूंगी I 

कई वेदों में पुखराज की जानकारी दी गई है l 

 

पुखराज या पुष्पक राज एक दैवीय रत्न- 

स्वर्णच्छवि : पुष्पकराग : पीत  वर्णोगुरूयिः । 

जो पुखराज पीली झलक देता है, वह गुरु का प्रिय है I 

ऋग्वेद से लेकर कौटिल्य के अर्थशास्त्र का कोषप्रवेश्यरत्न परीक्षा अध्याय रत्न शास्त्र की विशेष जानकारी रखता है I ऋग्वेद में पुखराज को पुष्पक राग नाम से पुकारा गया है I इसे गुरु का प्रिय रत्न बताया गया है I ज्योतिष में गुरु को ज्ञान, और प्राणवायु का ग्रह माना गया है I मैं पुखराज रत्न को वंदनीय मानती हूं lयह रत्न शरीर में अद्भुत ऊर्जा प्रदान करता है I शरीर को जब यह रत्न स्पर्श करता है तोशरीर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है I और इस रत्न की सकारात्मक ऊर्जा शरीर को आरोग्य प्रदान करती है I इसे शास्त्रों में जीवनदायी रत्न भी कहा गया है I  क्योंकि शरीर की प्राणवायु स्वयं गुरु ही हैं I श्री कृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता में स्वयं को ग्रहों में गुरु ग्रह कहा है I इसलिए इस रत्न को परमपिता परमात्मा का रत्न कहना कुछ गलत नहीं होगा I यह रोग नाशक, यश कीर्ति, संतान प्राप्ति, विवाह आदि में जो बाधाएं आती हैं उसके निवारण के लिए ज्योतिष कुंडली के लग्न अनुसार। यदि लग्न गुरु का हो या गुरु की मित्र राशि का तो इस रत्न को पहनने की सलाह देते हैं I ऋग्वेद, अथर्व वेद, गरुड़ पुराण आदि में रत्नों का वर्णन मिलता है I आचार्य वराह मिहिर ने अपने बृहद संहिता में रत्नाध्याय में रत्नों का वर्णन किया है I वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न रासायनिक द्रव्यो की क्रिया स्वरूप विभिन्न तापक्रम मिलने पर ही रत्नों का निर्माण होता है I कई रत्नों के उपरत्न भी होते हैं लेकिन ग्रंथों में भी इनकी उपयोगिता अलग है और वैज्ञानिक रूप   से भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं l इनकी कठोरता और घनत्व भी अलग-अलग होता है I  इसलिए मैं  इन्हें उपरत्न नहीं मानती l  उदाहरणार्थ पुखराज की जगह पर कई ज्योतिष सुनहला पहनने की सलाह देते हैं l पर रासायनिक दृष्टि से देखा जाए तो सुनहला पुखराज से बिल्कुल अलग होता है l सुनहला सस्ता होने के कारण लोग इसे पुखराज की जगह पहन भी लेते हैं l इसी का फायदा विक्रेता उठाता है हजार दो हजार के मामूली से रत्न सुनहला को पुखराज के दाम में बेच कर l                         

कुंडली में पुखराज कुंडली के 5 घरों को जागृत करने की क्षमता रखता है l अर्थात यह कुंडली के पांचो घरों के गुणों में वृद्धि करता है l


 

उत्तम पुखराज की पहचान - ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों का वर्णन मिलता है l 

ॐ अग्निमीले पुरोहितम यज्ञस्य 

देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम् l 

यह मंत्र अग्नि की पवित्रता और विशेषता बताने वाला मंत्र है ,इस मंत्र द्वारा स्पष्ट है कि अग्नि रत्नों में भी होती है lयह रत्नों में किरणों के रूप में होती है l इस  श्लोक  मे रत्नधातमम्  शब्द स्वयं परमात्मा के लिए आया है l इसका शाब्दिक अर्थ है रत्न धारण करने वाला  इसका अर्थ है ईश्वर स्वयं रत्न धारण करने वाले हैं l ईश्वर रत्न धारण करने से अभिप्राय है कि रत्नों में ईश्वरीय गुण होते हैं विशेष रूप से l  जैसा कि वेदों में पुखराज को हल्की आभा लिए हुए बताया गया है यह रत्न ठीक वैसे ही होता है l इसका रंग पीला नहीं होता है ,  इसमें पीली किरणें होती हैं l श्रीलंका का पुखराज उत्तम माना जाता है , आजकल बैंकॉक का पुखराज भी बाजार में बहुत चलन में है l इसका कारण भी इसका सस्ता होना ही है सस्ते के कारण लोग इसे खरीद भी लेते हैं l पर आपको बता दूं बैंकॉक के पुखराज में पुखराज के गुण खत्म हो जाते हैं इसका कारण इसकी रासायनिक प्रक्रिया द्वारा इसे पीला रंग देना है।इसलिए कठोरता और घनत्व की तुलना में बैंकॉक का पुखराज श्रीलंका के पुखराज के मुकाबले निम्न श्रेणी का होता है l श्रीलंका के पुखराज का मूल्य रत्न की पारदर्शिता पर निर्भर करता है l इसके आधार पर इसके मूल्य को तीन श्रेणियों में बांटा गया है l इस रत्न के मूल्य की शुरुआत ₹5000 प्रति कैरेट से लेकर 15000 रुपए प्रति कैरेट तक है l जब भी आप रत्न खरीदे इसे प्रमाण पत्र के साथ खरीदें क्योंकि प्रमाण पत्र में रत्न के विषय में पूर्ण जानकारी दी जाती है इसमें रत्न के घनत्व और कठोरता के विषय में बताया जाता है l असली रत्न पहनने से कार्य सिद्धि अवश्य होती है l असली पुखराज 30 दिन के अंदर अपना असर दिखाने लगता है l 

 

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