गिर रहे पत्ते चिनारों के, छतों पर
सेब के बागान की किस्मत जगेगी
लौट आओ,जंग से भागे परेबो
मंदिरों की मूरतें हँसने लगेंगी।
लौट आओ,तुम जहाँ भी हो, तुम्हारी
है जरूरत आज फिर से वादियों को
याद करती हैं सुबक कर रोज केसर
क्यारियाँ अपने पुराने साथियों को
काँच के बिखरे हुए टुकड़े सहेजो
गीत की फसलें नयी इनसे उगेंगी।
जेब में बीरान घर की चाभियाँ ले
तुम चले थे जंगखोरों को हराने
याद करती आज भी भुतहा हवेली
जीतकर भी हारते क्यों, राम जाने
लौट आओ,सब्ज बचपन को दुलारो
खाइयाँ मन और मौसम की भरेंगी।
जो गढे सूरज सुबह से शाम तक, क्यों
एक अँजुरी धूप को वह नस्ल तरसे!
सोखकर पानी सभी बूढ़ी नदी का
व्योमवासी मेघ पर्वत पार बरसे
लौट आओ तुम कि फिर सीली हवाएँ
चोटियों पर बर्फ के फाहे धरेंगी