वक्रतुण्डोपनिषद


वर्षा  ऋतु 


 


मेघ वस्त्र  हैं ,तड़ित अस्त्र हैं / जलधार तेरा सम्भाषण  है


बूँद  पृष्ठ पर नियमावलियां / सागर का जल शासन है 


बीज बाढ़  के बोये हमने / प्रकृति फसल को खायेगी 


शोषणकर्ता के लालच का / दण्ड झोपडी पायेगी


स्वर  उफान, उत्तुंग तरंगें / एकदन्त कुछ बोल रहे 


राम -रसायन , मेल घाट के /गठरी सबकी खोल रहे