साधारण शब्दों मे पितृ दोष को हमारे पूर्वजों द्वारा दिया गया / श्राप माना जाता है | जो हमारे जीवन मे बाधाएं उत्पन्न करता है, पर एक ज्योतिष होने के नाते मै ऐसा कदापि नही मानती भला पूर्वज श्राप क्यूँ देंगे ? आपने क्या बुरा किया है उनका ? जो आपको श्राप देंगे | पहले तो मै आपको ये बतादूँ कि कई कुण्डलियों मे ये दोष जन्म से ही होता है | जो जातक के हर कार्य में बाधा डालता है | ऐसा जातक धन के अभाव से ही नहीं अपितु मन से भी दुखी होता है | ऐसा जातक के प्रारब्ध कर्मों के कारण होता है | अब मैं आपको ये बतादूँ कि पित्र दोष होता क्या है ? जैंसे एक माँ गर्भ धारण करती है और फिर नौ महीने बाद संतान को जन्म देती है जो एक प्रक्रिया है शिशु के अंग बनने की जब ये प्रक्रिया पूरी हो जाती है तभी नौ महीने बाद शिशु का जन्म होता है | ठीक वैसे ही जब व्यक्ति अपनी देह त्याग करता है तो तेरहवे दिन के बाद से जीवात्मा की जन्म की प्रक्रिया शुरू हो जाती है अर्थात जीवात्मा नवीन देह को धारण करने की ओर अग्रसर होती है | विष्णु पुराण और गरूड पुराण मे इसका विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है | जिन घरों मे आध्यत्मिक ज्ञाँन का अभाव होता है वहाँ पित्र दोष पनपता है | जब आपका कोई सगासम्बंधी देह त्याग करता है तो उसके दूसरे जीवन की यात्रा के लिए घर के सभी लोगों को सम्मिलित होकर अपने प्रियजन को मन से ससम्मान विदा करना चाहिए |उसके न होने पर खुशी नहीं दुख प्रकट करना आवश्यक है ताकी उस आत्मा को भी ये लगे मेरे स्वजन मुझसे कितना प्रेम करते थे , मुझे कितना मान दे रहे हैं |फिर उसी खुशी ओर हर्ष की भावना के साथ जीवात्मा अपने नए जीवन की शुरूवात करती है | ये सब देखा जाए तो एक सकारात्माक ऊर्जा का आदान प्रदान ही तो है | आप जो दोगे वही पाओगे पृथ्वी मे रहने वाले सभी जीवों के कर्मों मे भी गुरूत्वाकर्षण का नियम लागू होता है |अलग अलग ग्रहों से अलग अलग रुप मे पित्रदोष कुंडली मे देखने को मिलता है | जब कुंडली मे शुक्र का पित्रदोष बनता है तो दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता पति पत्नी मे हमेशा कलेश की स्थिती बनी रहती है | ज्योतिष मे इसके अनेक उपाय हैं | ऐंसे पुरूषों को अपनी पत्नि का सम्मान अवश्य करना चाहिए , इसके अलावा विधवा स्त्रियों को सम्मान की दृष्टी से देखना चाहिए संभव हो तो उनकी मदद भी करनी चाहिए | इसके अलावा अपने पूर्वाजों का श्राध्ह कर्म शास्त्रानुसार करें | आयु: प्रज्ञां धनं वित्तं स्वर्ग मोक्षं सुखानि च।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृ पृजनात्।।
अर्थात् पितरों का श्राद्ध करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र, पौत्रदि, यश, स्वर्ग, मुक्ति, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख, साधन और धन-धान्यादि प्राप्त करता है। अपने दूसरे लेख मे आपको पित्र दोष की पहचान सम्बंधित जानकारी दूँगी |