वासुकीताल में हुयी भगवान श्रीकृष्ण की पूजा।

    वासुकीताल और निकट खिले ब्रम्हकमल।


 भगवान श्रीकृष्ण और वासुकी नाग को आत्मसात करना है, तो चले आइये,केदारनाथ के निकट वासुकीताल। यहां पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ना केवल इन्द्र की अप्सरायें धरती के स्वर्ग वासुकीताल पर प्रवास करने के लिये आती हैं, बल्कि ऐसे आध्यात्मिक और नैसर्गिक दृश्य को निहारने के लिये तीर्थयात्री तथा पुरोहित समाज के लोग केदारनाथ धाम से आठ किमी की दूरी पर स्थित वासुकीताल आकर श्रीकृष्ण के गुण गाते हैं।


   समुद्रतल से लगभग 11300 फीट की उंचाई पर स्थित केदारनाथ से आठ किमी की दूरी पर स्थित वासुकीताल जाते ही व्यक्ति अपनी सारी थकान मिटा देता है, इसके साथ ही इस परिक्षेत्र के चारों ओर खिले ब्रम्हकमल की महक भी मानव मन को असीम सकून तथा शांति भी देता है। स्कंदपुराण के अनुसार इसी स्थान पर स्वयं इन्द्र अपनी अप्सराओ के साथ आकर स्नान करते थे, लेकिन ज्यों ज्यों इस स्थान पर मानवों की चहलकदमी शुरू हुयी , ये अदृश्य रूप में आकर ताल स्नान करते हैं।  यहीं से सोन नदी का उद्गम स्थल है।  गंगा की सहायक नदियां का एक रूप कालिका नदी का अंश भी इस ताल को माना जाता है।



दि लैंड आंफ ब्रम्हकमल के नाम से विख्यात वासुकीताल सात सौ की परिधि के अन्तर्गत आता है। केदारनाथ निकट घोड़ा पड़ाव से दूध गंगा के उद्गम स्थल की ओर चलना पड़ता है, पुनः चार किमी दूरी पर स्थित खिरगोड़ धार से दो किमी की समतल भूमि थकान से राहत दिलाता है। यह स्थान इतना सुंदर है, कि थका देने वाली इस यात्रा के बाद भी यहां पहुचंने पर व्यक्ति राहत और शांति की सांस लेता है। श्रावण माह की पूर्णमासी के दिन वासुकीताल के निकट से श्रद्धालु केदारनाथ धाम से नंगे पांव आकर ब्रम्हकमल ले जाकर भगवान के श्रीचरणों में अर्पित करता है। नागांे के राजा वासुकी का यह निवास स्थल भी माना जाता है। कई श्रद्धालु देर शाम तक वासुकीताल पहुंचे, और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करके वासुकीताल          में स्नान करके पुण्य अर्जित किया।