अति निर्णायक मोड़ पर खड़ा देश


(पद्मश्री डॉ  मठपाल का हलन्त के लिए कुछ साल पूर्व लिखा एक विचारोत्तेजक  लेख )


पुण्य भूमि भारत एक हजार वर्षों के बाद आज एक अत्यन्त निर्णायक मोड़ पर आ खड़ी है। उसके पास मात्र चार वर्षों का समय बचा है, अपनी नियति निर्धारित करने के लिये। देश आज अपूर्णतः ही सही, भारतीय संस्कृति के विश्वासियों के हाथों में है। यदि वर्तमान की केन्द्रिय सत्ता अपनी स्वभावगत कमजोरियों को समझ कर उनको दूर नहीं करती है तो शायद सदा के लिये विश्व की सर्वोच्च मानवीय मूल्यों वाली प्राचीनतम संस्कृति को खो देगी। असके पास से मानवता को 'जीओ और जीने दो' की उद्घोषक अमृत धरोहर सदा के लिये विलुप्त हो जायेगी। भारत के पूर्व शासक, नेता तथा समाज सुधारक कई भ्रम पाले रहे, जो आज भी पूर्ववत् हैं। पहला भ्रम है-भारत एक बहुत बड़ा देश है इसलिये इसकी समस्यायें भी अनन्त हैं। दूसरा भ्रम है-यहां कई धर्मों के विश्वासी रहते हैं, इसलिये इसको धर्मनिरपेक्ष ही रहना होगा। एक भ्रम यह भी है कि कोई धर्म हिंसा नहीं सिखाता। आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता, सभी लोग शांति चाहते हैं। हिन्दुओं की बजाय अन्य अल्पसंख्यकों के कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। उन्हें भारतीय     संविधान की बजाय सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक मामलों में अपने ही व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार जीने की पूरी आजादी हो।
आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है। जिससे भारत को विशेष खतरा नहीं है। भारत में जो भी आतंकी घटनायें होती हैं, उनके लिये हमारे दो पड़ोसी चीन और पाकिस्तान ही उत्तरदायी हैं। ये पड़ोसी एक दिन स्वतः ही हमारी हड़पी गई जमीन को भी खाली कर देंगे। सबसे अच्छी नीति है-न बुरा देखो, न सुनो, और न ही कहो, इसीलिये पाकिस्तान में जहां भारत का सच्चा इतिहास पढ़ाया जाता है वहीं भारत में वामपंथियों की कृपा लेखनी से पूरी तरह झूठा इतिहास राष्ट्रीय पाठ्यक्रम द्वारा पढ़ाया जा रहा है। जो हिन्दु बच्चों को मध्यकालीन भारत की वास्तविकता से पूरी तरह अनभिज्ञ रखता है। भारतीय राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है कि देश ने गांधी-नेहरू के नेतृत्व में अहिंसा से आजादी प्राप्त की-खड्ग बिना ढ़ाल। अपने जीवन के सत्तरवें वर्ष में इस गांधी भक्त को यह बोध हो पाया कि गांधी जी की तुष्टिकरण की नीति ने इस देश का बेड़ा गर्क किया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम तीस वर्षों में अलगाववादियों के आगे घुटने टेक-टेक कर अपना सपना पूरा किया और अन्ततः बीस लाख लोगों की बलि देकर देश का एक तिहाई हिस्सा आदमखोरों को सौंप दिया। यदि गांधी जी 1948 में विदा नहीं होते तो दक्षिण भारत में निजाम का एक और पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया होता। स्वामी विवेकानन्द, गांधी जी से मात्र सात साल बड़े थे। वे यदि दीर्घायु पाकर सन् पचास तक जीवित रहते तो देश को एक देवदूत का मार्गदर्शन मिलता और गांधी जी यदि सन् तीस में ही चले गये होते तो देश को दूसरे देवदूत सुभाषचन्द्र बोस के ऊर्जावान नेतृत्व में आगे बढ़ने का मौका मिलता। खानदानी राजनीति की नींव डालने वाले शेखचिल्ली यदि सन् पचास में ही अदृश्य हो जाते तो तीसरे देवदूत लौहपुरूष के हाथ में भारत का भाग्य होता। किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि यहां देवदूत तो प्रायः अल्पायु वाले हुये और धूमकेतु दीर्घजीवी।
जिन भ्रमों का उपर उल्लेख हुआ है उनका निराकरण आसान है। भारत की सीमायें विगत पन्द्रह सौ वर्षों से घटती गईं। आजादी के बाद यह ह्रास और तेजी से हुआ। चीन भारत से बड़ा है किन्तु उसकी सीमायें विगत पांच सौ वर्षों से  अपार वृद्धि को प्राप्त हुईं। चीन की महादीवार एक समय चीनी राज्य की पश्चिमी सीमा में शत्रुओं से रक्षा हेतु निर्मित हईं थी किन्तु आज वह चीन के मध्यपूर्वी भाग में जा पहुंची हैं।  चीन, भारत से दो वर्ष बाद आजाद हुआ। सन् 1940 तक वह आलसी अफीमचियों का देश था, आज विश्व महाशक्ति बन चुका है। उसकी जनसंख्या भी भारत से अधिक थी, विगत पच्चीस वर्षों में उसने अपनी जनसंख्या चालीस करोड़ घटा दी है, जनसंख्या नियंत्रण द्वारा। कभी बृहत्तर भारत के रूप में पूरा दक्षिण पूर्व एशिया, मंगोलिया, जापान, चीन, तिब्बत, मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक भारत के सांस्कृतिक वर्चस्व में थे। ब्रह्मा, श्रीलंका आदि समीपवर्ती देश तो हमारी याददास्त में भी भारत के उपजीव्य थे। आज संसार का कोई देश ऐसा नहीं है जहां एक ही मजहब के लोग रहते हों, लंदन और सिंगापुर जैसे महानगर तो अपने आंचलों में मिनी इंडिया पाले हुये हैं। आस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीप में 600 सौ आदिवासी समुदाय और एक सौ बीस देशों के नागरिक रहते हैं किन्तु वहां का राजधर्म केथोलिक ईसाईयत है। विकसिततम अमरीका, ब्रिटेन व फ्रांस भी ईसाई देश हैं। लगभग पांच दर्जन देश इस्लामी हैं...केवल हिन्दुओं का यह प्राचीनतम देश ही धर्म निरपेक्षिता का तमगा लटकाये है। यदि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता है तो संसार में आज सर्वाधिक हिंसा खाड़ी देशों में ही क्यों हो रही है जहां एक ही मजहब के लोगों की सत्ता है।  यदि आतंकी का कोई मजहब नहीं होता तो 217 निरपराध लागों को मौत की नींद सुलाने का मुख्य साज़िशकर्ता के जनाजे में लगभग एक लाख एक ही समुदाय के लोग मातम क्यों मनाते हैं? लगभग नौ दशक पूर्व जब स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को अंग्रेजों ने फांसी दी तो देहली में उसके जनाजे में भी लगभग पचास हजार लोग उमड़े थे। भ्रष्ट कांग्रसियों ने अल्पसंख्यक शब्द का पूरी बेशर्मी से उपयोग किया है। संसार भर में सर्वत्र  अल्पसंख्यक वह समुदाय होता है जिसके सदस्य इतने कम होते हैं जैसे आज भारत में एंग्लो इण्डियन हैं। उनकी संख्या इतनी नगण्य होती है कि उनके संरक्षण के लिये विशेष प्रावधान बनाने पड़ते हैं। अट्ठारह-बीस करोड़ का समुदाय अल्प संख्यक कैसे हो सकता है? भारत के कर्णधार आतंकवाद को एक सुनियोजित विचारधारा न मानकर व्यक्तिगत जुनून मानते हैं। आज हमारा देश दो प्रकार के आतंकवाद के निशाने पर है, एक वामपंथी आतंकवाद जिसको चीन संरक्षण दे रहा है और दूसरा मजहबी आतंकवाद जिसका संचार केन्द्र पाकिस्तान है। भारत पूर्व की भांति इन दोनों पड़ोसियों को बिना उनके राजधर्म को समझते हुये क्षमादान देते आ रहा है। चीन और पाकिस्तान दोनों के राजधर्म में एक गजब की समानता है। दोनों की विदेश नीति झूठ और विश्वासघात पर आधारित है। दोनों ही राज्य प्रायोजित आतंकवाद के विश्वासी हंै। चीन ने विगत सात दशकों से बारह लाख निरपराध तिब्बतियों का कत्लेआम किया है। उनके समूल सांस्कृतिक विनाश के लिये 6200 मठों को धराशायी कर सैनिक घुड़सालों में बदल दिया है। धर्मग्रंथों, मूर्तियों कलाकृतियों को आग के हवाले कर दिया है। अब वह तिब्बत के पर्यावरण को भी आणविक कचरे से भर कर तथा प्राकृतिक संपदा को बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। चीन केवल पाकितान के आतंकियों को ही नहीं भारत के अलगाव वादियों को शस्त्रास्त्र व अन्य मदद दे रहा है। अतः चीन के प्रति किसी भी प्रकार की आत्मीयता या उदासीनता भारत के लिये घातक है। चीन की पाकिस्तान के साथ स्वाभाविक मित्रता समान दुष्टता पर आधारित है। जब से मोदी सरकार अस्तित्व मे आई है, पाकिस्तान की दहशतगर्दी और बढ़ गई है। हम यह बिल्कुल भूल गये हैं कि पाकिस्तान अस्तित्व में क्यों आया और आज तक वह हमें जो लहुलुहान करते आया है उसके पीछे उसका राजधर्म कैसा है? पाकिस्तान अस्तित्व में क्यों आया, इसका उत्तर 'मीनिंग आॅफ पाकिस्तान' के लेखक एम.के.दुर्रानी ने दिया। पाकिस्तान का निर्माण इसलिये जरूरी था कि उसे पड़ाव बनाकर पूरे भारत को इसलाम के लिये जीता जा सके। पूरे भारत के इस्लामीकरण का बेस कैम्प है पाकिस्तान। इस अस्थाई कैम्प की जरूरत एक रणनीति के तहत की गई। क्योंकि अंग्रेजी राज्य के विदाई के समय कत्लेआम की सीधी कार्यवाही के बावजूद पूरे भारत का इस्लामीकरण संभव न था। सन् 1857 से नब्बे वर्षों तक जो कुछ भारत की आजादी के लिये प्रयत्न किये गये, उसमें कुछ क्रांतकारियों को छोड़कर सारे मुस्लिम नेतृत्व का यह खुला एजेण्डा था कि अंग्रेजों के बाद भारत मुगलों के वशंजों को ही मिलना चाहिये। इन नेताओं में कांग्रेस के वे घोर सांप्रदायिक तथाकथित राष्ट्रीय नेता भी थे जो पाकिस्तान न जाकर भारत में ही सत्तारूढ़ हुये। कांग्रेस के मुकुटमणि व पूर्व अध्यक्ष मौलाना आजाद ने स्पष्ट कहा था....'भारत जैसे देश को, जो एक बार मुसलमानों के शासन में रह चुका है, कभी त्यागा नहीं जा सकता और प्रत्येक मुसलमान का यह फर्ज है कि उस खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिर से प्राप्त करने का प्रयत्न करे।' आजाद का संविधान के विपरीत यह भी कहना था कि कोई भी विचार जिसका स्रोत कुरान से बाहर है, नितांत कुफ्र है और मुसलमान के लिये कुफ्र से घृणित और कुछ भी नहीं है। इसीलिये दुखी एस.सी.छागला ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय संबन्धी एक विवाद में कहा था कि यह कष्टदायक और ज्ञानबर्द्धक अनुभव रहा है कि तथाकथित राष्ट्रीय मुसलमान बेनकाब हो गये। मेरा सदा से विश्वास रहा है कि कांग्रेस मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिये उन मुसलमानों का समर्थन करती रही है जो हृदय से घोर सांप्रदायिक हैं और उन्हें भोली जनता के सामने राष्ट्रीय मुसलमानों के रूप में प्रस्तुत करती रही है। इन कांग्रेसी राष्ट्रीय मुस्लिमों के बारे में हामिद दलवई की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि...'ये मुस्लिम नेता रोषपूर्वक अपने को सौ प्रतिशत भारतीय होने का दावा करते हैं, साथ ही साथ कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे के पक्ष में तर्क देते सुने जाते हैं। आसाम में पाकिस्तानी घुसपैठियों को 'भारतीय मुस्लिम' सिद्ध करते दिखाई देते हैं। कहने को उनका हिन्दुओं से कोई मनोमालिन्य नहीं है किन्तु साथ ही साथ यह फतवा भी जारी करते हैं कि नेहरू के मृत्योपरान्त उनके शव के पास कुरान का पाठ इस्लाम के विरूद्ध है। क्योंकि काफिर के शव पर कुरान नहीं पढ़ी जा सकती। वह जाकिर हुसैन को भारत का राष्ट्रपति तो देखना चाहते हैं किन्तु अच्छा मुसलमान होने के नाते उनके हिन्दी में शपथ और शंकराचार्य से आशीर्वाद लेने पर आपत्ति करते हैं...'(मुस्लिम पालिटिक्स इन सेकुलर इंडिया)। इस क्रम को आगे बढ़ाने से पूर्व हमें पाकिस्तान के राजधर्म का कुछ और खुलासा करना होगा ताकि हम उसको और उसके भारतीय अभिभावकों को यथार्थ समझा पायेंगे। निश्चय ही भावी मुस्लिम इंडिया के इस बेस कैम्प के राज धर्म का प्रमुख स्रोत वे 137 प्रमुख आयते हैं जिनका हिन्दी अनुवाद मुहम्मद फायख खां द्वारा रामपुर से प्रकाशित कुरान मजीद में किया है। इसके अलावा इस्लामी देशों में मान्य आम विचारधारा या नीतिशास्त्र को समझने का भी प्रयत्न करेंगे।
यद्यपि संसार में पांच दर्जन के लगभग मुसिलम मुल्क हैं किन्तु शरीय के पूर्ण पालन वाला यूएई के बाद पाकिस्तान प्रथम इस्लामी देश है। बाकी देशों में लम्बे समय तक सुलतानों, शेखों, खलीफाओं, और मौलवियों का खानदानी शासन रहा है। पाकिस्तान के इतिहास में बच्चों को पढ़ाया जाता है कि प्रागैतिहासिक काल से ही पाकिस्तान एक अलग देश रहा है। और सैंधव सभ्यता भी पाकिस्तान की ही देन है। सन् 1947 तक पाकिस्तान का विस्तार पूरे भारत तक था किन्तु हिन्दु गद्दारों ने 1947 में हमसे शेष भारत छीन लिया। एक सत्रह वर्षीय योद्धा मोहम्मद बिन कासिम ने सन् 712 में पहली बार इस्लाम का प्रकाश दक्षिण एशिया में फैलाया था। जब वह 7000 घुडसवारों के साथ कराची आ पहुंचा था। पूर्व पाकिस्तानी एयर मार्शल असगर खां के शब्दों में भारत का इस्लामी मुल्क बनाने के लिये लड़े गये युद्धों में देवल (कराची) का युद्ध प्रथम था। प्रो0 फजल अहमद लिखते हैं कि आज बारह सौ वर्ष बाद भी न केवल हम पाकिस्तानी अपितु विश्व के सभी मुसलमान मुहम्मद बिन कासिम पर गर्व करतंे हैं। वह पहला व्यक्ति था जो इसलाम का प्रकाश लेकर भारत आया। इस प्रकार हम उसे पाकिस्तान का पहला निर्माता कह सकते हैं। आज पाकिस्तान में मात्र बिन कासिम ही नहीं खालिद बिन रासिद, सुवुक्तगीन, महमूद गजनवी, गोरी, कुतुबुदीन, बख्तियार, अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, फिरोज शाह, तैमूर, बाबर, शेरशाह, अकबर, शाहजहां, औरंगजेब, अहमदशाह, नादिरशाह व टीपू का दिव्य चरित्र पढ़ाया जाता है...जिन्होंने करीब चालीस करोड़ हिन्दुओं का बध कर उनकी सारी सभ्यता -संस्कृति का समूल विनाश किया था। नई पीढ़ी को उसी श्रेणी का गाजी बनाने के लिये हजारोंझार मस्जिदों और मदरसों में केवल आतंकवाद की शिक्षा ही नहीं दी जाती है अपितु जांबाज फिदायीन भी तैयार किये जाते हैं। अकेले हाफिज सहीद के मदरसे ने लगभग पांच लाख बच्चों को आतंकवादी बनाया है। फिर भारत की सीमा में जो दर्जनों आतंकी श्वििर हैं उनका तो यदा-कदा उल्लेख होता ही रहता है। आश्चर्य तो तब होता है जब अपने देश में भी कम से कम चैदह लाख सुकुमार मति बालकों को मस्जिदों द्वारा संचालित मदरसों में प्रति वर्ष इसी उग्र इस्लामी संस्करण की शिक्षा दी जाती है। और बाल संस्कारी साहित्य के रूप में प्रो0 फजह अहमद की चार पुस्तकों को 'हीरोज आॅफ इस्लाम' द्वारा उन्हीं आततायी ग़ाजी शासकों का चरित्र परोसा जा रहा है। पाकिस्तान के घोर सांप्रदायिक नेता, आतंकी सरगना, सेना, खुफिया तंत्र तथा अन्यत्र के उन्मादी संगठन-अलकायदा, तालिबान, बोको हराम, और सर्वोपरि इस्लामी स्टेट जिस धर्म में विश्वास करते हैं उसका सार है-अल्लाह ने धरती को पैगम्बर और रसूल के लिये ही बनाया है अतः सारी धरती के एकमात्र हकदार मुसलमान ही हैं। अपने जन्मजात बाजिब हक के लिये उसे गैर काबिज विधर्मियों से छुड़ाना हर मुसलमान का धार्मिक कर्तव्य है। सारी आदमजात दो भागों में बंटी है- अल्लाह की पार्टी वाले और शैतान की पार्टी वाले। अतः शैतानों की पार्टी को समाप्त करना हर सच्चे मुसलमान का फर्ज है। जिन देशों पर मुस्लिमों का शासन है वे दारूल इस्लाम और जहां पापी मूर्तिपूजकों का हक है वे देश हैं दारूल हर्ब....दारूल हर्ब को दारूल इस्लाम बनाने के लिये हर मुस्लिम को आजीवन जिहाद लड़ना होगा। अल्लाह के मानने वालों की सर्वश्रेष्ठ प्रकाश वाली संस्कृति है और धर्मावलंबियों की जहीलिया या मूर्खता व अंधकार वाली संस्कृतियां। इस जहीलिया का सम्पूर्ण विनाश ही हर मुसलमान का कर्तव्य है। काफिर की सारी सम्पत्ति पर जिहादी का हक हो। काफिर को जिम्मी बना लो, उनकी औरतों को मुजाहिदीनों यानि योद्धओं में बोट दो, काफिर को मरना जुर्म नहीं है। कहना न होगा विगत आठवीं सदी से अठारहवीं सदी तक भारत के सारे मुस्लिम शासक इसी मत के अनुयायी थे, और पाकिस्तान बनाने वाले भारतीय मुसिलम नेता भी।
इसके बाद भी ऐसे घोर सांप्रदायिक मुस्लिम नेतृत्व की हमें सराहना करनी चाहिये जो सदैव स्पष्टवादी, जीवन्त और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहा। इन नेताओं ने अपने इरादे कभी नहीं छिपाये जब कि गांधी-नेहरू, कांग्रेस सदैव मुंगेरीलाल के सपने देखती रही। मालूम होते हुये भी कि इस्लाम राजनीति और धर्म में भेद नहीं करता तथा यह भी कि इस्लाम किसी दूसरे धर्म को न सत्य मानता है और न उनके अनुयायियों को समकक्ष मान देता है, कांग्रेस ने सर्वधर्म समभाव और धर्म निरपेक्ष राजनीति के ख्याली पुलाव पकाये। जिन्होंने पाकिस्तान बनाया उन्होंने साफ कह दिया कि वहां गैर मुस्लिम जिम्मी यानि गुलाम होगें। उन्हें सरकार प्रशासन में कोई स्थान नहीं मिलेगा। उनके अधिकार भी समान नहीं होंगे। बहुदेव वादियों के धर्म से अल्लाह को घृणा है अतः इस्लामी शासन में धर्मपालन की अनुमति नहीं दी जायेगी। इतना ही नहीं, लाहौर की मुस्लिम आउटलुक पत्रिका (1925) ने तो यहां तक लिखा कि हम गजनवी और औरंगजेब का अधूरा कार्य पूरा करना चाहते हैं। और हिन्दुओं से हमारा सीधा युद्ध होने पर यदि वे कोई बचेंगे तो इसे देखेंगे। इसी तरह प्रख्यात कांग्रेसी नेता डा0किचलू ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा था...'सुनों मेरे प्यारे हिन्दु भाईयों! ध्यान देकर सुनो! तुम यदि हमारी तंजीम में रोड़ा अटकाओगे और हमें हमारे अधिकार नहीं दोगे तो हम अफगानों अथवा किसी दूसरे मुस्लिम देश की सहायता से देश में अपना राज्य स्थापित कर लेंगें' भला हो जिन्ना का जिसने गांधी जी का यह प्रस्ताव कि आजादी के बाद कायदे आजम स्वयं  प्रधानमंत्री बन कर अपने लोगों की ही सरकार पूरे भारत में बनाये, ठुकरा दिया। जिन्ना का स्पष्ट मानना था कि एक दारूल हर्ब में वे तब तक कोई सरकार नहीं बना सकते जब तक इस मुल्क को पूरी तरह दारूल इस्लाम नहीं बनाया जाता। क्योंकि हिन्दू पूरी तरह शरीय का पालन नहीं कर सकते। हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं, दो पृथक कौमें हैं, दो संस्कृतियां हैं, जिनका आपस में कोई मेलजोल नहीं हो सकता और जब एक अलग दारूल इस्लाम बनना तय हो गया तो मुस्लिम नेताओं ने इस दारूल हर्व को हिन्दु राष्ट्र मानते हुये यहां के कांग्रेसी नेताओं को सलाह दी कि वे अपने वेद, पुराण, ऋषि-मुनि, राम-कृष्ण, बुद्ध व नानक की शिक्षाओं के अनुरूप अपना संविधान बनाये। ये तो कांग्रेस ही थी जिसने फिर भी धर्मनिरपेक्षिता का राग नहीं छोड़ा। मुसलमानों का यह अति विश्वास था कि हिन्दु को राज चलाना नहीं आता। 
बंटवारे के बाद यहंा बचे ढ़ाई करोड़ मुसलमानों को ध्यान में रखकर अन्तर्राष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी ने जो योजना तैयार की उसके अनुसार इतनी अल्पसंख्या में रहने से अच्छा होगा कि इन लोगों को तमाम मुस्लिम देशों में शरण दिलाई जायें या सीधे जिहाद की बजाये नसीहत, फहमायश (चेतावनी), तरगीव (प्रलोभन) और तवलीग (धर्म परिवर्तन) की नीतियों को अपनाया जाये फिर क्रमशः दंगे-फसाद, सशस्त्र क्रांति और पड़ोसी की मदद व गोरिल्ला युद्ध द्वारा भी जिहाद का दायरा बढ़ाया जाय। इसके अलावा ढ़ाई करोड़ की आबादी को शीघ्रातिशीघ्र बीस करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा जाय। इसके लिये लंदन स्थित इस्लामी संेटर ने खाड़ी देशों की मदद से बारह करोड़ निचले तबके के हिन्दुओं के धर्मान्तरण की योजना बनाई  और तमिलनाडु में 1981 तक 50 हजार और 1982 तक दो लाख हरिजनों का इस्लामीकरण पेट्रोडाॅलर व खाड़ी देशों में नौकरी का लालच देकर किया गया। पूर्व में स्वामी श्रद्धानंद और लेखराम जैसे दर्जनो आर्यसमाजी नेताओं की हत्या, शुद्धिकरण द्वारा धर्म परिवर्तन को रोकने के कारण की गई थी। जनसंख्या वृद्धि का सबसे निरापद स्वदेशी साधन अधिकतम बच्चे पैदा करना रखा गया। जो काम मुस्लिम लीग और उसके नेता 1906 से 1947 तक नहीं कर पाये वह काम नेहरू और कांग्रेस ने विगत छः दशकों में पूरा कर दिखाया। पाकिस्तान शासक धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने अपने दारूल इसलाम में काफिरों को 27 प्रतिशत से 0.01 प्रतिशत पर ला दिया है। और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस धन्यवाद की पात्र है कि उसने अपनी अल्पसंख्यक आबादी में 800 प्रतिशत की वृद्धि करा दी। आजादी के बाद नेहरू सरकार ने पहला मुख्य काम स्मारक संरक्षण का किया जिसके तहत आजादी पूर्व के मस्जिद, मजारें केवल यथास्थिति में ही नहीं रखी गई बल्कि पुरातत्व विभाग द्वारा उनका संरक्षण -संवर्द्धन भी किया गया और इस पुनीत कार्य का खर्चा हिन्दुओं के बचे-खुचे मंदिरों की आमदनी से पूरा किया जाता रहा। हिन्दुओं के सहस्त्रों भू-लंुठित किये मंदिरों का जीर्णोद्धार तो दूर अयोध्या, काशी और मथुरा के प्रमुख पुरियों के मंदिरों की विध्वंश स्थिति को यथावत रखा गया। इफ्तार की सरकारी दावतें, हज यात्रायें, मजारों पर राष्ट्र पुरूषों द्वारा चादरों के चढ़ाने और मौलवियों के वेतन के अलावा प्रतिवर्ष अल्पसंख्यक कल्याण पर अरबों रूपयों के सरकारी  धन व्यय के बाद भी महामहिम उप राष्ट्रपति बिरादरी की सुरक्षा और पहचान का रोना रोते हैं, अतः भारत को भारी दुर्दशा से बचाने के लिये इस कांग्रेसी अष्टपाद का खात्मा प्रथम आवश्यकता है। सर्वधर्म समभाव या धर्मनिरपेक्षिता की क्या सार्थकता है इस्लाम की दृष्टि में? इसके लिये कांग्रेस चाहे अपने बड़बोले प्रिय दिग्गी बाबू को संयुक्त अरब अमीरात में केवल एक वाक्य बोलने के लिये भेज सकती है। उन्हें वहां इतना भर कहना है कि महान इस्लाम की भांति कुछ अन्य धर्म भी महान हैं। इस सूक्ति का पुरस्कार होगा सिर कलम। जैसा सिकन्दर लोदी के समय बोधन ब्राह्मण का किया गया था। जब उसने इतना भर कहा था कि इस्लाम और हिन्दु दोनों ही धर्म सच्चे हैं...या उस दरोगा नवाहन का जिसने शेख की रूग्णता को सुनकर श्रद्धावश कह दिया...आप अन्तिम संत हैं जैसे मुहम्मद साब अंतिम नबी थे, इतने ही अपराध पर फिरोज शाह ने उसे कत्ल करवा दिया।
कांग्रेस ही नहीं लगभग सारे ही हिन्दु इस्लाम के प्रति अपनी अनभिज्ञता के लिये अक्षम्य अपराधी हंै। तेरह सौ वर्षों के परिचय और प्रथम परिचय से ही उत्पीड़ित हिन्दु आज तक इस महान    धर्म के प्रति बिल्कुल अज्ञानी हैं। संसार भर में शायद हिन्दु ही एकमात्र कौम है जो पूरी तरह नेस्तनाबूद किये जाने के बाद भी अपने काले अतीत को बिल्कुल भूल चुके हैं। हिन्दु राजनीतिक पुरोधा ही नहीं ये संत, महात्मा, सदगुरू, ये भक्तिमयी माईयां, महामण्डलेश्वर और प्रकाण्ड कथावाचक आज तक सभी का खून एक जैसा है, सभी धर्म मानवता की शिक्षा देते हैं...आदि कहकर जनता को गुमराह करते रहे हैं। वे इतना तक नहीं करते कि हमारे यहां 33 करोड़ देवता, हजारों देवियां, शैव-वैष्णव, गाणपत, सौर और शाक्त पथ हंै। कितने उपदेवता, लोकदेवता, स्थान देवता, यक्ष, गंधर्व, राक्षस और विविध प्रकार के दार्शनिक पंथ हैं, आप  इन्हीं तक सीमित रहो, उन विधर्मी सूफियों, फकीरों, पीर बाबाओं की मजारों पर मत्था मत टेको जिनमें से कई गाजी, कत्ताल, शेख, औलिया आदि नामों से आज भी जाने जाते हंै। चरित्रभ्रष्ट, कुनबेवादी और वोटों के भूखे नेता भले ही गंगा-जमुनी संस्कृति के तथा कथित प्रतीक इन सूफियों की मजारों पर बाजे-गाजे के साथ चादर चढ़ाते रहें किंतु हकीकत यही है कि ये सूफी भी हृदय भक्तों के रूप में भारत के विशाल भू-भागों में ठौर-ठौर इसीलिये बैठा दिये गये थे कि हिन्दु बहुल समाज के बीच इस्लाम की पहुंच को आसान बनाया जा सके।
हिन्दु तुम धन्य हो! तुम्हारी स्मरण शक्ति को नमन है। तुम्हारे अद्वितीय क्षमाभाव को भी कोटिशः नमन है। तुम अपने हत्यारों को भी कितने प्रेम से पूजते हो। आपका अज्ञान भी वंदनीय है। अपने दीर्घ पड़ोसी के बारे में तुम सिर्फ इतना जानते हो कि वह सप्ताह में हर जुम्मे पर सामुहिक नमाज पढ़ने पास की मस्जिद में जाता है और घर में शायद पांच बार की नमाज पढ़ता है। रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखता है, उसके बाद कुछ त्योहार होते हैं। वह मांसाहारी भी है, वह जकात देता है, हज यात्रा की कामना करता है, परिवार बड़ा करता है, मूंछ रहित चेहरा, लम्बा सफेद कुर्ता, छोटा पायजामा, और और औरत की पोशाक काला बुर्का है। वह आजीविका के लिये हर काम कर लेता हैं, अपने मुसलमान भाई के प्रति एक ग्रामीण या उपनगरीय क्षेत्र के हिन्दु की जानकारी इतनी तक ही सीमित है। जब कि महा नगरीय व प्रगतिशील शिक्षित हिन्दु और उसके नेताओं का स्वानुभूत अनुभव कुछ और बढ़ा होता है। उनके अनुसार मुसलमान असहिष्णु और उग्र होता है इसको भारत की धरती से कोई लगाव नहीं है। (गांधी और अंबेडकर भी यही मानते थे)। वह खेलों में भी पाकिस्तान का पक्ष लेता है, हमेशा तनाव में रहकर धौंस दिखाता है। भारत की समस्या पर चुप रहता है, वह सांप्रदायिक है, वह भारतीय संविधान को नहीं मानता, वह भारत में रहकर भी अजनबी है। उसको न गंगा से प्रेम है और न ही हिमालय से। यहां तक कि तिरंगे और राष्ट्रगान से भी उसे लगाव नहीं, वह छिपा जिहादी है...आदि। जहां सामान्य हिन्दु का ज्ञान सीमित तो है पर भ्रामक नहीं, वहीं प्रबुद्ध भारतीय का ज्ञान इस्लाम को न समझने और मुस्लिमों की मजबूरी के अज्ञान से उद्भूत है।
इस्लाम संसार के सभी धर्मों से इसलिये अद्वितीय है कि उसमें मनुष्य के सामाजिक जीवन को परिचालित करने की वैश्विक शक्ति है। शेष धर्मों के महापुरूषांे ने मात्र नैतिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया। युगधर्म के अनुसार नियम बनाने का भार तत्कालीन समाज पर छोड़ दिया किन्तु इस्लाम ने अपने अनुयायियों के लिये एक ध्येय निश्चित कर दिया और उसका अनुसरण कैसे किया जाय इसके लिये उलेमा, मौलवी, मुफ्ती, काजी आदि धर्माचार्यों का एक नियंत्रक व्यवस्था बना दी। इस्लाम का ध्येय वाक्य है...'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल हैं'। उन्हीं के लिये फरिश्ते जिवराइल द्वारा कुरान का पवित्र संदेश भेजा गया। और धर्मों में अपने शरीर को यातना देकर राग-द्वेष रहित होकर ईश्वर की प्राप्ति को जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। अपने समान सब जीवों को मानना, पर स्त्री को माता और पर   धन को मिट्टी सा तुच्छ मानना, हिन्दु   धर्म का सार-संक्षेप है। गीता धर्मयुद्ध की अनुमति रागद्वेष रहित होकर सब जीवों के कल्याण के लिये ही देती है। वह स्वर्ग-सुख को भी तुच्छ भौतिक सुख से अधिक नहीं मानती। किन्तु इस्लाम का जिहाद लड़ा जाने वाला रागद्वेष युक्त अनिवार्य युद्ध है। वह जिहादी को काफिरों की स्त्रि़यों और सम्पत्ति का पुरस्कार तो देता ही है, शहीद होने पर जन्नत में अधिक सुख की सुविधा भी देता है। जिहादी के दोनों हाथों में भोगों का लड्डू है जो उसकी जिजीविषा और जोश को आजीवन जीवन्त रखते हैं। इस्लाम में अपने धर्म के प्रति श्रद्धा-प्रेम के साथ- साथ पर धर्म के प्रति अपार घृणा भी है। इस्लाम का प्रणतत्व शरीया है जिसमें    धर्मग्रंथ के अलावा पैगम्बर के आदेश (हदीस), इजूतिहास (अतीत के मुस्लिम विद्वानों के निर्णय) और समाज की सामुहिक राय जा इमामों व उलेमाओं के फतवों द्वारा तय की जाती है, भी शामिल है।  इस्लाम एक क्षेत्र विशेष का धर्म नहीं है। हर मुसलमान दारूल इस्लाम में ही जीना चाहता है, दारूल हर्व में नहीं...अतः भारत के मुस्लिम युवा, खेल में जब पाकिस्तान का समर्थन करते दीखते हैं तो वह एक दारूल इस्लाम का ही समर्थन करते हैं, न कि पाकिस्तान का। यदि पाकिस्तान नर्क भी है तब भी वह दारूल हर्ब भारत से अच्छा है, इस्लाम के अनुसार यह बाजिब है। किसी भी मुसलमान के लिये उत्तरी धु्रव के समीप रहने वाले मुसलमान या अफ्रीका के अगम्य वन में रहने वाले किसी अपरिचित इस्लामी हब्सी को अपना सगा भाई मानना जितना स्वाभाविक है उतना ही अपने विधर्मी पिता, माता, भाई, मामा, चाचा, या फिर चिर शांत पड़ोसी किसी हिन्दु को काफिर या शत्रु मानना भी। भारत में जन्म लेकर बढ़े-पले मुसलमान की जितनी स्वाभाविक नागरिकता पांच दर्जन मुस्लिम देशों में हो सकती है उतनी जन्मदात्री भारत भूमि की नहीं। क्योंकि जब तक भारत दारूल हर्ब है वह नरक समान ही है। भारतीय संस्कृति से घृणा इसलिये है क्योंकि वह जहीलिया यानि शैतान की अज्ञान और अंधकार वाली संस्कृति है। युवा मुसलमान प्रायः उग्र व बेरूखे भी यह सोच कर होते हैं कि उनको समझाया गया है कि वे जन्म जात शासकों और विश्व विजेताओं की संताने हैं। जिन जिम्मियों को उन्होंने दास बनाकर रखा था वे आज उनके समकक्ष ही नहीं कई क्षेत्रों में आगे भी है। अल्लाह द्वारा दी गई उनकी पैतृक सम्पति और एक हजार वर्षों तक पराक्रम से अर्जित और मुक्त जायदाद को आज काफिर ले चुके हैं। इसलिये राज्य स्तर पर उन्हें कितना ही प्रोत्साहन और सहभागिता प्रदान की जाय उनको संतुष्ट नहीं किया जा सकता। क्योंकि सांप्रदायिक नेताओं की सीख और मदरसों की आरंभिक शिक्षा ने उन्हें हर प्रकार से वंचित समुदाय का हीनवोध करा दिया है। फिर छागला, एम.जे.अकबर, हामिद दलवई, मुजफ्फर हुसैन, सिकन्दर वख्त, जहूर वख्स जैसे विज्ञ पुरूष उनके भ्रम निवारण का कितना ही प्रयास क्यों न करे।  
दारूल इस्लाम भारत में एक हजार वर्षों तक जो कुछ हुआ उसका विवरण तत्कालीन मुस्लिम चश्मदीदों की डायरियों और अचानक आये विदेशी यात्रियों के विवरण में उपलब्ध है, वह इतना वीभत्स, नारकीय, और राक्षसी है कि उसका वर्णन करना भी यहां उचित नहीं है। स्वामी विवेकानंद विल डूरन्ट और कोवार्ड एल्स्ट जैसे उद्भट विद्वानों की कृतियों के मात्र तीन उद्धरण, जो जयदीप सेन की अमेरिका से प्रकाशित विश्वविख्यात पुसतक के हिन्दी संस्करण 'भारत मंे जिहाद' के अंतिम आवरण पृष्ठ से सभार उद्धृत किया जा रहा है-'उनके ही अपने लेखों के अनुसार जब पहली बार मुसलमान भारत आये तो भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या साठ करोड़ थी। इस कथन में न्यून वर्णन का दोष हो सकता है किन्तु अतिशयोक्ति का नहीं। क्योंकि मुसलमानों के अत्याचारों के कारण असंख्य हिन्दुओं का बध हो गया। किन्तु अब वे हिन्दु घटकर बीस करोड़ रह गये हैं।... स्वामी  विवेकानंद (कम्पलीट वक्र्स, खण्ड 4, पृष्ठ-233)। 'इतिहास में इस्लाम द्वारा भारत की विजय के इतिहास कर कहानी संभवतः सर्वाधिक रक्तरंजित है। यह एक निराशाजनक कहानी है, क्योंकि इसका प्रत्यक्ष आदर्श या निष्कर्ष यही है कि सीता जो एक इतनी बहुमल्य और महान है जिसमें शांति और स्वतंत्रता, संस्कृति और शान्ति का कोमल मिश्रण है, उसे भी कोई विदेशी, बर्बर, आक्रमण कारी अथवा भीतर ही बढ़ जाने वाले आततायी किसी भी क्षण नष्ट, भ्रष्ट अथवा समाप्त कर सकते हैं। विल डूरन्ट (दि स्टोरी आफ सिविलाइजेशन)।
बलात् मुस्लिम विजयें हिन्दुओं के लिये सोलहवीं सदी तक जीवन-मरण के संघर्ष का ही प्रश्न बनी रहीं। सम्पूर्ण शहर जला दिये गये थे, संपूर्ण जनसंख्या का वध कर दिया गया था। एक हजार ईस्वी में अफगानिस्तान की बलात् विजय के बाद हिन्दुओं का बध कर सम्पूर्ण सफाया कर दिया गया था। उस स्थान को अभी भी हिन्दुकुश यानि हिन्दुओं के कत्लेआम का स्थान कहा जाता है। -कोनार्ड एल्स्ट (निगेश्नििज्म इन इंडिया, पृष्ठ-33,34)।
अन्तर्राष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी ने भारत में सशस्त्र जिहाद के लिये 20 करोड़ की संख्या निर्धारित की है, जो कि उसके पास पहुंच चुकी है। अतः भारत को एक शक्तिप्रिय और सर्वसमावेशी राष्ट्र के रूप में जीवित रखने हेतु हर भारतवासी को प्रयत्न करने हांेगे। अपनी आयु के अंतिम पड़ाव में जब मेरा शरीर रोगाक्रांत है, भविष्य की चिंता ने नींद उड़ा दी है। मैं अपनी प्रतिदिन क्षीयमान टिमटिमाती दृष्टि से एक कष्टसाध्य अवस्था में बसीयत रूप में देश को बचाने के एक क्षुद्र प्रयास के रूप में यह सब लिख रहा हूं। ब्रिटिश पार्लियामेंट में मि0 वेजवुड के कहे गये ये शब्द भी स्मरणीय हैं कि मुसलमान सदैव आक्रामक कौम रही है, हिन्दु उतना आक्रामक नहीं होता। इसका इलाज है हिन्दु आक्रामक बने। मुसलमान के आक्रामक चरित्र के प्रति हमारे मन में स्वाभाविक आदर है, हिन्दुओं के इससे पाठ सीखना चाहिये, जो हम सीख चुके हैं। जो अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकते, सदा कष्ट भोगते हैं।
आज हिन्दु अपने स्वर्णिम अतीत से कट चुका है। ईसाई लेखकों ने ईसा मसीह के जन्म से पूर्व के सारे भारतीय इतिहास को मिथ सिद्ध करने का प्रयास किया। आज भी राष्ट्रीय पुस्तकों में वैदिक काल के अत्यल्प वर्णन के बाद सीधे बौद्ध व मौर्यकाल से भारत का अतीत आंका जाता है। वामपंथियों ने मुगलकाल को ही भारत का स्वर्णकाल सिद्ध किया है। कांग्रेस ने स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती पर पर प्रकाशित भारत का गौरवमयी इतिहास पानीपत की हार से (1757) और बहादुरशाह जफर के देश निकाले से आरंभ किया है। रामायण, महाभारत तो छोड़िये पृथ्वीराज, प्रताप, गुरू गोविन्द सिंह ही नहीं लक्ष्मीबाई को भी बहिष्कृत कर दिया है। कांग्रेस, नेहरू परिवार और मौलाना आजाद जैसे नेताओं के पुण्य स्मरण को ही राष्ट्रीय धरोहर मानती है। भारत की सीमा से हिन्दु शब्द गायब हो चुका है। इस स्वर्ण जयन्ती ग्रंथ में भारत के धर्मों में हिन्दु या वैदिक धर्म का उल्लेख भी नहीं है। संस्कृतिवेत्ता इस्लामी, बौद्ध, ईसाई संस्कृति के साथ इण्डिक नाम से हिन्दु संस्कृति की ओर अंगुलिनिर्देश करते हैं संस्कृति मंत्रालय में हिन्दु संस्कृति के अध्ययन के लिये परियोजना नहीं है। भारत सरकार की शब्दावलि में हिन्दु शब्द का उल्लेख मात्र हिन्दु कोड बिल व हिन्दु संयुक्त परिवार पर लगने वाले सम्पत्ति कर के लिये ही प्रयुक्त होता है। हिन्दु मंदिर शैली को ब्राह्मण परंपरा व कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीरी पंडित नाम से, वह भी डरते हुये पुकारा जाता है। यहां तक कि स्वामी विवेकानंद का भी कांग्रेसीकरण हो चुका है। डेढ़ सौवीं जयन्ती से पूर्व उनके वांगमय से हिन्दु शब्द हटाकर भारतीय कर दिया गया था। हिन्दु यदि अब भी नहीं जागेंगे तो फिर कभी नहीं जागेंगे। अन्ततः जब तक यह सरकार केन्द्र में विराजमान है, उसके कर्णधारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि चीन पर कभी विश्वास न करें, भारत के इस्लामी करण के 68 वर्ष पुराने इस बेस कैम्प के तम्बू उखाड़ें, सीमापार व देश के भीतरी आतंकवादी अड्डों का खात्मा करें। पृथ्वीराज, विजयनगर के राम राजा तथा अन्य हिन्दु राजाओं की शत्रु को क्षमादान की नीति को तिलांजलि दें। सन् 65 व 71 के युद्धों की लाहौर तक की 5000 किमी विजित भूमि की वापसी तथा 93 हजार सैनिकों व 2000 अधिकारियों को युद्धबंदी बना कर फिर क्षमादान न करें। कांग्रेस की विषबेल मंें भरपूर मट्ठा डालें, सभी के लिये समान नागरिक कानून व एक पत्नी, एक संतान कर नीति लागू करें। भगवान रामचन्द्र, श्रीकृष्ण और काशी विश्वनाथ की पावन पुरियों पर पददलित मंदिरों का जीर्णोद्धार करें। गोहत्या पर पूर्ण पाबन्दी लगायें, बलात्कारियों व राष्ट्रद्रोही अपराधियों को एक सप्ताह में मृत्युदण्ड दिया जाये। धर्मस्थलों से ध्वनि प्रदूषण पर पूरी पाबन्दी लगायें, व्यवसायीकरण बन्द करा का सबको निःशुल्क शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें प्रदान करंे। 
और अब यह अंतिम भरत वाक्य-जो कौम अपने इतिहास से कोई सबक नहीं लेती, वह इतिहास दुहराने को बाध्य होती है।