हिंदी ( १४ सितम्बर )


वक्रतुण्डोपनिषद 


देवनागरी याचक वाणी 


गणिका हर सम्मलेन की 


घुंघरू बांधे पेट पालती 


ध्वजा, वाक -आंदोलन की


आप्तनाद, उन शिव शब्दों से


 क्षेत्र स्वार्थ व्यभिचार करें 


ज्ञान अहम्  के भारोत्तोलन 


भाषागत व्यापार करें 


"श्री गणेश" ही ढोंग बने हैं 


राज्य भ्रमो को ढोता है 


आक्रांता भाषा के सम्मुख 


देशज आखर रोता  है