मन की बात


वर्तमान में देश के लोक प्रिय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जहां विश्व की अनेक उन सेलिब्रिटिज प्रतिभाओं को बौ(िक और क्रियात्त्मक धरातल पर देश के साथ जोड़ रहे हैं, वहीं 'मन की बात' द्वारा जनता के दिल में रचनात्मक चेतना के बीज भी बोक रहे हैं।  उनकी प्रत्येक सोच और कार्य के केन्द्र में'देश' होता है। वे स्व-साधन के बल पर स्व-स्फूर्त हाईकमाण्ड अपने अन्दर विकसित करते जाते हैं। उनके लिये राजनीति साधन है, साध्य देशहित और जनहित है। वे युवावर्ग में एक नई आशा की किरण स्फूर्त करते जा रहे हैं। स्थितिप्रज्ञता उनके व्यक्तित्व की विशेषता है। किस प्रतिभा और शक्ति का कब और कहां उपयोग करना है, उसे विवेक के धरातल और कसौटी पर परखने के बाद ही निर्णायक रूप देते हैं। उनके संकल्प और आदर्श हैं-उठो जागो, और ध्येय प्राप्ति तक रूको ही नहीं।
कतिपय मोदी जी की पहचान स्वप्नदृष्टा, क्रांतिकारी और प्रेरणास्रोत के रूप में देते हैं। कुछ उन्हें विकासपुरूष, विचक्षण राजनीतिज्ञ, सफल नेतृत्वकार आक्र संवेदनशील के रूप में देखते हैं। विरोधी उनसे घबराते हैं। सामान्य जनता उनके साथ जुड़ती जा रही है। उनका व्यक्तित्व निजि अन्तर्निहित प्रातिभ चेतना का सम्बल ले विविध आयामों में एक स्वतंत्र पहचान देता जा रहा है। 'मन की बात' उसी प्रातिभ चेतना का सुपरिणाम है। जिसके धरातल के मूल में मानवीय संवेदना है। वे साहित्यकार और कवि भी हैं।उनकी काव्य पंक्ति है-'मेरे गुजरात को प्रेम करे वो मेरी आत्मा' सड़सठ काव्यों में कवि की अन्तर्चेतना का सारतत्व है...मेरे देश को प्रेम करे, वो मेरा परमात्मा...वे अपनी अभिव्यक्ति को आत्मचैतन्य में डुबकी लगाना मानते हैं...इससे सि( होता है कि नरेन्द्र मोदी एक अन्तर्दृष्टा भी हैं।
ऐसा व्यक्तित्व मन की बात करेगा तो वह ऐ मेधावी यज्ञ देश के रोम-रोम में रचनात्मक चैतन्य पनपाना चाहता है। जन-जन तक पहुंचनाविकास और रचनात्मक यज्ञ में जोड़ने का अभियान असाधारण प्रतिभा का प्रतिफल है। ऐसे कम्युनिकेशन करने में उनकी अलौकिक शक्ति प्रेरणा के बीज बोने लगी है।यदि आप मोदी जी को मिलेंगे तो मिलने वाले व्यक्ति की आंखों मेंदेख वे उसके हृदय तक पहुंच जाते हैं। उनकी बात एक स्पार्क के साथ अन्तस का स्पर्श कर लेती है। उनकी वाणी का ओज विशाल सभाओं में करोड़ों लागों के अनुभव और आकांक्षाओं को व्यक्त करता है। यह वाणी का वरदान अचानक या नाटकीय व होकर गहन साधना का सुफल है। प्रत्येक शब्द अन्तस की साधना से भीगा हुआ और निखरा हुआ होता है।
'मन की बात' भी गहन चिंतन का सुपरिपाक है। इसलिये देश के अनेक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों को मन की बात सही चिंतन और दिशा दे रही है। लोकनायक के मन की बात देश की बात बनती जा रही है। युवा हृदय में चेतना चिंतन की चिनगारी मस्तिष्क में रचनात्मकता का अंकुरण करेगी, स्वाभाविक है। अतः मोदी के मन की बात के आयामों का मूल्यांकन यथार्थ के धरातल पर भी करना आवश्यक है। युगीन संकल्प और परिश्रम के मोटिवेशनल केश-स्टडी के संदर्भ में इस पर गहन चिंतन होना आवश्यक है।भारत के राष्ट्रीय रेडियो-आकाशवाणी केन्द्र से अमरीका के राष्ट्रपति बराक तथा मोदी का एक साथ युवकों को संवोधित करना भी एक एकतहासिक संयोग कहा जायेगा।
लोकतंत्र का सबसे बड़ा संकट है-प्रजा विमुखता, प्रजा से डिसकनेक्ट होना, मतदाता अथवा नागरिकों से कटना माना जाता है। मोदी अति सतर्क हैं। जनमानस एवं ओपिनियन लीडर्स अथवा सूक्ष्म अवलोकनकर्ताओं के साथसतत संवाद बनाये रखने की कला में उनका व्यक्तित्व निखरा हुआ है। कम्युनिकेशन के युग में मन की बात क्रांतिकारी कदम है। दूरदर्शन की लोकप्रियता ने रेडियों को हासिये पे डाल दिया था, मोदी ने उसे प्राणवान बनाया। रेडियों से जुड़े समाज को लोकतांत्रिक धारा में लाने का यह यशस्वी प्रयास भी है। इससे लोकतांत्रिक सजगता भी बढ़ी है। जिन विषयों को गौण माना जाता था उन्हें मुख्यधारा से जोड़ दिया। गंभीर विषयों को एक पर्सनल टोन दिया जिस से शील और शैली का सौंदर्य अन्तस को छू जाता है। रेडियो वातौलाप की क्षमता अद्भुत है। लोकतंत्र हेतु एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बात कर रहा हो, ऐसी निजता रेडियो में है। और एक व्यक्ति विराट जनसभा को संबोधित कर रहा हो, उतनी विशाल बनाने की क्षमता भी रखती है।
'आंखें ये धन्य हैं' मोदी जी की कविताओं का संग्रह है। वे कहते हैं-पारदर्शी मन के अभाव में मन में गांठे बंधती जाती हैं। मन की गांठे प्रगतिपथ अवरोधक होती हैं। मन की गांठ कुत्सित मानसिकता को जन्म देती है जो स्वयं के लिये और सबके लियेघातक सि( होती है। अतः वे कहते हैं-गाठकें उगाना बंद करो मुझे गति-प्रगति का गीत गाना है ;पृष्ठ-44द्ध। मोदी जी की मन की बात मेंगहन चिंतन और मनन है। राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ने से मानसिक स्वच्छता, बाह्य स्वच्छता और प्रेम-संस्कार संस्कृति के बीज बाने से र्मिाण की मानसिकता का अंकुरण जन-जन में होता जा रहा है। 
मोदी जी के लिये राजनीति साधन है। साध्य तो राष्ट्र कल्याण है। मोदी जी ने भूतकाल में डायरी लिखी थी। वे लिखते थे और पन्ने फाड़ डाल देते थे। तब भी कुछ पन्ने बचे थे जिनका संपादन गुजरात के वरिष्ठ कवि श्री सुरेश भाई दलाल ने किया और यह 'साक्षीभाव' से प्रकाशित हुई।डायरी के प्रत्येक उदगार में उनका अन्तर संवाद है। उन संवादों में 'भूमा' शक्ति से प्रार्थना, अनुभूति, संवेदना, अन्तर्दृष्टि राष्ट्रदर्शन एवं सामाजिक अभिगम पारदर्शी रूप में व्यक्त है। अन्तर में मानवता अंकुरित होने से अहं का ओऽम में रूपान्तरण हो जाता है।मोदी 'भूमाशक्ति' से कहते हैं-मां तू ही मुझे शक्ति दे जिससे कि मैं किसी के भी साथ अन्याय न कर बैठूं। आगे वे कहतक हैं- मुझे तो जगत की भावनाओं से जुड़ना है, मुझे तो सबकी वेदना की अनुभूति करनी है।' ऐसे ही अन्तर संवाद 'मन की बात' में अन्तस को छूते हैं, मन को पारदर्शिता देते हैं और चित्त को मैं और तू  से ईपर उठने को प्रेरित करते हैं। 
श्री मोदी व्यक्तिगत रूप से हर नागरिक से जुड़ते हैं। उनकी आवाज में मंत्रमुग्ध करने की क्षमता है। देश का प्रधानमंत्री राजस्थान अलवर के पवन आचार्य के अभिप्राय को सितम्बर 2015 में रेखांकित किया तो देश में अधिकांश जन मिट्टीके दीपों का प्रयोग कर पर्यावरण सजगता और स्व-स्फूर्त कर्तव्य पालन करने लगे। साथ ही एक युवक के रचनात्मक अभिगम को राष्ट्रीय फलक पर रख मोदी ने 'मन की बात' द्वारा उसे श्रेय- प्रेय का अधिकारी बनाया। जिससे देश के युवा वर्ग का संकल्प बल बढ़ना स्वाभाविक है। इससे युवावर्ग की रचनात्मक दिशा महा शक्तिकरण की ओर उन्मुख हो रही है।
सरकारी योजनायें जन चेतना प्राण बनने से पूर्व सरकारी कार्यवाही के कारण फाइलों में ही सिमट कर रह जाती हैं। जब कि मन की बातके उदगाता योजनाओं को सरकारी जामा पहनाने की अपेक्षा जन जागृति दायित्व के रूप में विकसित करते जा रहे हैं। सामाजिक जागृति और देश के प्रति दायित्व बोध से मन-हृदय और मस्तिष्क संलग्न होने लगे हैं। मन की बात स्वच्छता आन्दोलन, ड्रग की लड़ाई, टूरिज्म अथवा सड़क सुरक्षा जैसे विषय मन से मन और मस्तिष्क को वैयक्तिक स्तर पर जोड़ने से संकल्प और सजगता दायित्वबोध चेतना दे रही है। रेडियो स्रोता मन ही मन में कार्यक्रमों से निजि स्तर पर अपने को जोड़ने लगे हैं। मन की बात में खादी की बात तीन बार उठाई गई। जिसमें छोटे से छोटे श्रमिक के कल्याण की गहन चिंता और चिंता से कैसे निजात पाई जा सकती है, एक लोकशिक्षक की उदात्त भावना स्वयंभू जन-जन को स्पर्श करती जा रही है अन्यथा खादी हासिये में चली जा रही थी, उसे मुख्य प्रवाह में लाने का यह साहसिक प्रयास है। मोदी का अभिगम उत्सवप्रिय है। उत्सव कर्मकाण्ड के रूप में न होकर वे जनशक्ति को सांस्कृतिक धारा से जोड़ते है। संस्कृति अपने आप में गंगा है। मन की बात का उत्स भी संस्कृति के स्रोत से फूटा है। असहिष्णु मानसिकता के संदर्भ में वे दो टूक बात करते हुये कहत हैं-ऐसा देश कभी भी विकास नहीं कर सकता, जहां बीस करोड़ लोग लगातार असुरक्षा महसूस करें। असुरक्षा गलत कार्यों को प्रेरित करेगी। हमें विकास के लिये चुना गया है। हमे विकास की राह पर चलने दीजिये।
हिंदी के प्रसि( कवि मुक्तिबोध का काव्य है-'देना ही होगा, पूरा हिसाब, अपना-सबका मन का/ जन का' लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में जन एवं जनतंत्र, सबका कल्याण है जिसकी उन्मेषक सांस्कृतिक चेतना है।
यही सांस्कृतिक चेतना व्यक्ति को संकीर्णता के कीचड़ से ऊपर उठने और रचनात्मक अभियान के जुड़ने की शक्ति प्रदान करती है। अन्यथा सत्ता के परब्रह्मा ईश्वर के आसपास अनेक घृणित दांव-पेच हंै। क्रांकतकारी कवि मुक्तिबोध ने उसका नग्न चित्र प्रस्तुत किया है- जन-जन के जीवन का/ मांस काट/...नोच खसोट, लूटपाट' निरन्तर चल रही है। जहां 'सज्जन की आत्मा तब/ निधवा बन जाती है' तथापि भरतीय जनमानस में गहन अग्नि परीक्षाओं के अनुभव विद्यमान हैं। उन्हें स्व स्फूर्तता के धरातल से जोड़ने से क्रियाशीलता आयेगी। मन की गात में धुंधली सी चेतना है, कोरी राजनीति की उपज न होकर उसकी तह में एक जीवन दर्शन से उपजी विचार   धारा की सुगंध भी है।