नारी


भोर सी आशावान, सूर्य रश्मि के समान
नारी, संस्कृति की, प्राणवायु होती है
ऋतुएं परिधान में, शील उसका कमल पुष्प
वाणी उसकी मन्त्र सी, वेद-ऋचा होती है
निर्मात्री पुरूष की वह, शिल्पी समाज की
स्त्री, परिवार की, धर्म ध्वजा होती है..