फिर एक बार :मोदी सरकार


मोदीजी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत दर्ज करते हुए पिछली बार से भी बड़ा बहुमत हासिल किया है।२३ मई २0१९ की इस भारी जीत से भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां के आर्थिक क्षेत्र से जुडी हस्तियों, संस्थाओं और व्यापारिक  घरानों में, भारतीय बाजारों में निवेश के लिए सकारात्मक धारणा बनी है।  इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्वभर में कार्यरत तमाम 'रेटिंग एजेंसी' और प्रसिद्ध  'ब्रोकरेज हाउसेज' भारत में निवेश के प्रति बेहद बुलिश दिखायी दे रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख ब्रोकरेज हाउसेस ने भारत में दुबारा मजबूत सरकार को लेकर अपने विचार भी व्यक्त किये हैं। 'मनी कंट्रोल डाट काॅम' के अनुसार, 'क्रेडिट सुइस' का कहना है कि फिर से मोदी सरकार के आने से डायरेक्ट टैक्स रिफाॅर्म तेज होगें।  डीए पीएसयू बैंकों के मर्जर और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में ग्रोथ की उम्मीद बढ़ गयी है। 'सीएलएसए. मानती है कि नई सरकार का विकास पर फोकस रहेगा और पूर्ण बहुमत की सरकार को लोकलुभावन नीतियों की जरूरत नहीं पड़ेगी। आगे मिडकैप शेयरों में खरीदारी दिख सकती है और घरेलू निवेश बढ़ सकता है। बैंकों के ऋण पर व्याज दरों में कटोती की भी उम्मीद है। 'नोमुरा' के मुताबिक, सरकार की पुरानी विकासशील नीतियों के जारी रहने की उम्मीद है। इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का जोर अधिक रहेगा। 'नोमुरा' का यह भी मानना है कि 'सबके लिए घर' की योजना के तहत सरकार द्वारा पांच लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश संभव है। 'माॅर्गन स्टैनली' भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट पर अति उत्सुक है। उसका मानना है कि सेंसेक्स यानि 'बाॅम्बे स्टाॅक एक्सचेंज' का सूचांक जो अभी ३९000 के करीब है, २0२0 तक ४५000 का स्तर देखने को मिल सकता है। २0२0 तक 'नेशनल स्टाॅक एक्सचेंज' का सूचकांक 'निफ्टी' भी १३५00 का स्तर छू सकता है। 'जेपी मार्गन' का कहना है कि राजनैतिक अनिश्चितता खत्म होने से बाजार में जोखिम कम हुआ है। 'फिलिप कैपिटल' का मत है कि सरकार का नई इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रामीण विकास पर फोकस होगा, साथ में रेलवे, डिफेंस, पोट्र्स आदि पर भी फोकस रहेगा। 'कोटक सिक्योरिटीज' ने नईई सरकार से कैपिटल गुड्स और कंस्ट्रक्शन सेक्टर को फायदा होने का अनुमान लगाया है। नई सरकार से ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को भी फायदा होने की उम्मीद है। इन्हें लार्ज कैप के मुकाबले मिड और स्माॅल कैप में बेहतर मौके दिखायी दे रहे हैं। नईई सरकार पर 'सिटी' का कथन है कि २0२0 तक राज्यसभा में सरकार को बहुमत मिल जाएगा। सरकार को आर्थिक चुनौतियों का मुकाबला भी करना पड़ सकता है क्योंकि वित्तीय घाटे के कारण रुपये पर दबाव मुमकिन है...। ये सभी ग्लोबल 'रेटिंग एजेंसी' हैं जो दुनियां में हो रहे आर्थिक गतिविधियों पर चैबीसों घंटे पैनी नजर गढाये रखती हैं। ये एजेंसियां धनाड्यों, कंपनियों, कार्पोरेट हाउसेस तथा हर देश में हो रहे आर्थिक उतार-चढ़ाव का आंकलन करने की क्षमता रखती हैं और इनका वक्तव्य आर्थिक जगत में बहुत महत्व रखता है।
२३ मईई को जब सारा देश मोदी जी को दुबारा मजबूत जनादेश के साथ अगले पांच साल का दायित्व देकर उत्सव मना रहा था और मिठाइयाँ बाँट रहा था तो उन सबके मन में स्वयं के और भारतवर्ष के भविष्य के लिए अनेकों सपने साकार होते नजर आ रहे थे। किसी में अपने देश की पांच हजार साल पुराणी सभ्यता और संस्कृति के पुनस्र्थापना की उम्मीद जागृत हुई तो किसी को एक सशक्त भारत के नवनिर्माण के सपने को पूरा होने की राह नजर आयी। किसी में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की उम्मीद जागी तो किसी के मन में देश में हिंदुत्व के गौरवशाली स्वरुप की परिकल्पना का अहसास हुआ। किसी को यह अवसर 'सेक्युलर और अपीजमेंट' वाली राजनीती के अंत के रूप में दिखा, तो किसी को यह पल तमाम गाली गलौज और वंशवाद पर आधारित राजनीति की समाप्ति की शुरआत लगी। इतना ही नहीं, अधिकांश लोगों को लगने लगा कि अब उन्हें सड़क, बिजली, पानी और 'कुकिंग गैस' उपलब्ध हो सकेगी। देश के नौजवानों को आने वाले समय के विकासशील भारत में उनके ख्वाबों को साकार करने का एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा...। लेकिन एक भावना ऐसी थी जो गाँव से शहर तक, गरीब से अमीर तक, साक्षर से निरक्षर तक सबके मन में समान रूप से छा रही थी कि अब दुनियां में अपने देश का नाम और भी इज्जत से लिया जायेगा। इन सबसे अलग एक बहुत छोटा मगर चालाक वर्ग इस बात से अत्यधिक खुश था कि मजबूत सरकार आने से विदेशी निवेश का रुख भारत की ओर मुड़ जायेगा और उनका निवेश सुरक्षित होने के साथ-साथ भविष्य में अत्यधिक लाभ कारी साबित होगा। जब सारा देश मोदी जी की वापसी में तालियों के गड़गड़ाहट में व्यस्त था तब यह आर्थिक दृष्टि से जागरूक वर्ग अपनी काक दृदृष्टि 'स्टाॅक मार्केट' पर गढ़ाए हुए था। मोदी जी की जीत की ख़ुशी से बाज़ार में भी जश्न का माहौल छा गया और एक ही दिन में स्टाॅक मार्केट में इतना निवेश आया कि सेंसेक्स १४00 अंक और निफ्टी चार सौ अंक से अधिक चढ़ते चले गए। ज्यों ही शेयर के भाव नयी उचाईयों को छूने लगे तो इस वर्ग ने अपनी बु(िमता से किये गए निवेश से अपनी एक पीढ़ी से लेकर सात पीढ़ियों तक की जरूरत से ज्यादा का धन अपनी झोली में भर दिया। जिस प्रकार सूर्य देव एक असीमित उर्जा स्रोत हैं, ठीक उसी तरह स्टाॅक मार्केट को भी कुबेर के खजाने के रूप में देखा जा सकता है। यहाँ प्रतिदिन अरबों-खरबों का व्यापार चलता है और इसमें तमाम देशों के निवेशक भाग लेते हैं। अभी हमारे देश का एक छोटा वर्ग, १३0 करोड़ जनसँख्या का दो या तीन प्रतिशत ही 'फाइनेंसियल लिटरेट' है और वही इससे फायदा उठाता है। हमारे देश के नवयुवकों को इस क्षेत्र में ज्ञान हासिल कर अपने आथर््िाक नजरिये को विकसित करने पर जोर देना होगा ताकि वह भी इन कुबेरों के खजानों अर्थात 'स्टाॅक मार्केट', 'कमोडिटी मार्केट' 'करेंसी मार्केट' आदि के चक्रव्यूह में प्रवेश भी करे और वहां से जीत कर आने की क्षमता भी हासिल कर सके। यह कार्य कठिन तो है और इसमें अत्यधिक परिश्रम की  भी जरूरत है मगर असंभव कदापि नहीं है। यह वक्त निवेश के लिए उपयुक्त है और सही भी है इसलिए इस दिशा में पहला कदम बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। एक कहावत है की बटुवे में धन आने से पहले व्यक्ति को मन से अमीर होना होगा। 
किसी भी व्यक्ति या देश की अर्थव्यवस्था आय, खपत, बचत और निवेश के बल बूते पर चलती है। जब आय का रास्ता खुलता है तो व्यक्ति खपत करता है। खपत के बाद जो बचत होती है, उसी को निवेश में लगाया जाता है। चुनाव जीतना और अर्थव्यवस्था को चलाना दोनों ही अलग काम होते हैं। नयी सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की है ताकि देश कम समय में ही एक आर्थिक शक्ति बन सके। हलंत के पिछले अंकों में 'स्टाॅक मार्केट' से सम्बन्धित कुछ लेख प्रकाशित हो चुके हैं और इससे संबंधित बारीकियों को जानने के लिए उन लेखों से मदद मिल सकती है या फिर अन्य सरल तौर पर उपलब्ध आर्टिकल्स को पढ़ कर अपना ज्ञानवर्धन किया जा सकता है। 
जो लोग उपरोक्त कुबेेर के खाजनों से भयभीत रहते हों और किसी भी तरह इसमें प्रवेश न करना चाहें तो उनके लिए प्राचीन काल से उपलब्ध साधनों में ही निवेशित रहना चाहिए। उदहारण के तौर पर, हमारे समाज में सोने की खरीद में, खासकर के ग्रामीण इलाकों में जबरदस्त रूचि देखी गयी है। यहां पर लोग बच्चों की शादी और भविष्य की जरूरतों के लिए निवेश के लिहाज से सोने की खरीद करते रहे हैं। आमतौर पर लोग दूसरे तरीकों से निवेश करने के बजाय ज्वैलरी खरीद लेते हैं परन्तु ज्वैलरी चोरी होने और उसके पुराने होने का डर हमेशा बना रहता है और इन्हें ज्यादातर 'बैंक लाॅकर' में रख दिया जाता है। इसलिए बदलते समय के साथ सोने में निवेश के लिए अन्य विकल्पों को भी अपनाया जा सकता है। जैसे, गहनों के बजाय सोने के सिक्कों को ख़रीदा जा सकता है जो कि ज्वेलर्स, बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में उपलब्ध रहते हैं। भारत सरकार ने भी अशोक चक्र वाले सोने के सिक्के बाजार में उतारे हैं। ये सिक्के 5 और 10 ग्राम में उपलब्ध हैं। इन सिक्कों को रजिस्टर्ड एमएमटीसी आउटलेट, बैंकों और पोस्ट आॅफिस से ख़रीदा जा सकते है। घर या 'बैंक लाॅकर' में सोने को न रखना चाहें तो निवेशक सोने की खरीद फरोख्त इलेक्ट्राॅनिक फाॅर्म में भी कर सकते हैं जिसे 'डी-मैट अकाउंट' में रखना होता है, इसे 'गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ)' कहते हैं। इसे जरूरत पड़ने पर स्टाॅक मार्केट में बेचेने की भी सुविधा होती है। 'ईटीएफ गोल्ड' की कीमत बाजार में असली सोने की कीमतों के अनुरूप ही घटती बढती रहती है। इसमें निवेश के लिए 'ट्रेडिंग' और 'डीमैट अकाउंट' होना जरूरी है जो शेयर की खरीद फरोख्त के लिए भी प्रयोग में लिया जाता है। बाजार में सोने का भाव कम रहने पर निवेशक अपनी क्षमता के अनुसार थोडा-थोडा 'गोल्ड ईटीएफ' अकाउंट में खरीद कर रख सकता है और बाजार में सोने के भाव चढ़ने पर बेचकर मुनाफा कमा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में सोना भी बेहतर रिटर्न दे सकता है। सोने में निवेश का एक और प्रभावशाली विकल्प है, जिसे 'साॅवरेन गोल्ड बाॅन्ड' कहते हैं। 'साॅवरेन गोल्ड बाॅन्ड्स' सरकारी सिक्योरिटीज़ होती हैं जिन्हें रिज़र्व बैंक जारी करता है। बाॅन्ड को एक ग्राम की मूल ईइकाईई के साथ सोने के वजन के गुणकों में दर्शाया जाता है। ये बाॅन्ड सरकार थोड़े-थोड़े समय बाद जारी करती है। सरकार २-३ महीने में इन्हें जारी करने के लिए विंडो ओपन करती है, जो एक हफ्ते तक खुली रहती है। इस दौरान बाॅन्ड खरीदे जा सकते हैं। इस स्कीम का मकसद घरों में पड़े सोने को मुख्य धारा में लाने का है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि हम सभी को देश में अपनी सरकार बनने पर अपार हर्ष होना ही चाहिए मगर एक अच्छी मजबूत सरकार के रहते हुए हम सभी को aarthikआथर््िाक लाभ भी उठाने चाहिए। देश के विकास के साथ अनेकों कंपनियों को फलने-फूलने का अवसर मिलता है और इसका असर सीधे उनके 'शेयर वैल्यू' पर पड़ता है। अतः 'फाइनेंसियल लिटरेसी' को आधार बनाकर आगे बढ़ने का मंत्र अपनाना ही वक्त की जरूरत है। देश के जीडीपी को गति और त्वरण देने में सरकारी योगदान के साथ हर देशवासी की आर्थिक जागरूकता की भागेदारी भी अति महत्वपूर्ण है।