राजनीति


वक्रतुण्डोपनिषद 


राजनीति की चौपड़ में फिर 


पांसा फेंका जाता है 


केश खींचकर नग्न रूप में 


धर्म घसीटा जाता है. 



निर्लज्जों की जंघाओं में 


राजनीति निर्वस्त्र हुई 


भीष्म-विदुर की मौन नीति 


यह/ धरती पर सर्वत्र रही 


हर बार न आते वे उद्धारक 


अब न कृष्ण की आस करो 


लोक के रक्षक, ओ गण पालक !


तुम ही कुछ प्रयास करो