राजनीति का राजहंस


पूरा विश्व मोदी के रानीतिक कौशल से अचंभित है। पर भारत के लोग इसे सहज लेते हैं। भारत के लोग जानते हैं कि मोदी वही कर रहे हैं जिनके लिये उन्होंने मतदान किया था। लोगों ने गांधी के आभामंडल से बाहर निकलने में सत्तर साल लगा दिये, जिस पार्टी को समाप्त करने की वकालत गंाधी ने की थी, उसे जिंदा रखने, और भारत का एकमात्र सत्तादल बनाने में ब्रिटिश मीडिया के साथ भारत के कुछ बिके हुये लोग भी थे, पर यह भी सच है कि भारत के लोग नेहरू को गांधी का उत्तराधिकारी मानते हुये इस कुनबे को इतने वर्षों तक ढोते रहे। देश का अधिकांश मुसलमान मतदाता अब भी कांग्रेस को सहज सत्ता भोगने का अधिकारी मानता रहा है। इस मानसिकता का फायदा उठाकर कांग्रेस ने देश को चारों ओर से न सिर्फ लूटा, बल्कि राष्ट्रीय हितों को भी अपनी पार्टी के लिये कुर्बान कर दिया। मोदी का आकर्षण उनके भाषण नहीं हैं, मोदी एक पारदर्शी व्यक्ति हैं, वे  सत्ता के भोगी बनकर नहीं, एक  हंस की तरह इस कुर्सी पर बैठ े हैं। उन्होंने भी हमारे महापुरूषों की तरह अपने मुकुट को कभी स्वार्थों के पानी से गीला नहीं होने दिया, उनके कारण ही पूरी पार्टी के नेता अपने पंख चैबीसों घंटे धो-पोंछ कर ही अपने आॅफीसों में बैठते हैं। हमारे अधिकतर भगवान राजाओं के ही पुत्र थे। गौतम, महावीर, राम, कृष्ण...सबको अपने-अपने समय में लोकनीति से दो-चार होना पड़ा। पर सबने सिंहासन पर बैठकर वही किया जिसका अनुसरण आज मोदी कर रहे हैं। देश में कुछ मीडिया घराने अैार एनजीओ, जिनकी मुफ्त की रोटियां मोदी ने बंद कर दी हैं, एक समानान्तर वाकयु( छेड़े हुये हैं। पर ये लोग मोदी का कुछ नहीं हिला पायेंगे। इन लोगों को असल में इस देश के जनमानस के मूल स्वभाव का पता नहीं है।  हमारे देश में आरम्भ से ही त्याग और शुचिता का स्थान सर्वोपरि रहा है। इसी त्याग के कारण एक )षि का रूतबा सम्राट से कहीं अधिक था। एक अकिंचन ब्राह्मण का सम्मान किसी श्रेष्ठि  से अधिक था।  आप गांधी का उदाहरण लीजिये...गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के केन्द्र में रहकर जितनी राजनीतिक भूलें कीं, नेहरू से स्नेह के कारण उन्होंने जिस तरह सुभाष, पटेल और अन्य नेताओं को पार्टी में नेहरू से बड़ा नहीं होने दिया, पर जनता गांधी की दीवानी थी, गांधी मनमानी करते रहे, लोग अपना समर्थन देते रहे...ऐसे हजारों उदाहरण हैं जब गांधी ने बहुसंख्यक समाज की इच्छा के विरू( जाकर राष्ट्रीय और एतिहासिक निर्णय लिये...पर इतना सब होने के बाद भी आम आदमी गांधी की लंगोट-लाठी और उनके त्यगमय जीवन से उन फिदा था। गांधी के इस त्याग की कीमत भारत की भावी पीढ़ियों को चुकानी पड़ रही है। मोदी इन्हीं राजनीतिक भूलों के लिये इतने देशों की चैखट नाप रहे हैं। मैं ये नहीं कहता कि भारत में कभी भ्रष्टाचार नहीं था, या लोग झूठ नहीं बोलते थे...सब कुछ आज की ही तरह था, पर सत्ता पर त्यागियों का अंकुश होने के कारण राजनीति कभी भी इतनी अराजक और निद्र्वन्द्व नहीं थी जितनी कांग्रेस के शासनकाल में रही। हर पांच साल जनता सोचती रही कि कंाग्रेसी सुधरेंगे, हमें यदा-यदा रटते हुये सात दशक हो गये और भाई लोग पूरा देश ही पी गये। मोदी को उनके हिस्से की कूटनीति भी करनी पड़ रही है। जिस शासन में अपने ही देश के उपराष्ट्रपति पर देश की गुप्तचर संस्था को फंसाने के आरोप हों, जिसका वित्तमंत्री सारी दुनिया में अपने परिवार की अर्थव्यवस्था मजबूत करने में लगा रहा हो, अब उसी पार्टी के गुमाश्ते कह रहे हैं कि मोदी विदेश क्यों घूम रहे हैं। मोदी सत्तर साल के कुशासन की सड़ी व्यवस्था की रिपेयरिंग में लगे हैं। यदि भारत एक मजबूत बाजार बनकर नहीं उभरेगा, तो एक मजबूत नेतृत्व भी किसी काम का नहीं है, राजीव गांधी के पास जितना जनाधार था वे उतने ही पोंगा नेता निकले। मोदी ने दुबारा लौटकर क्या निर्णय लिये उसे दुहराने से अधिक आगे देखने कर आवश्यकता है। इस देश के पास मेधा है, पर वह दूर देशों की प्रगति का हिस्सा बनी हुई है। मोदी इस प्रतिभा का वापिस तो नहीं ला सकते पर  इन जीनियसों का उपयोग वे कूटनीतिक दवाब बनाने के लिये कर रहे हैं। यदि अमरीका के बाजार और तकनीक को पंख लगाने में हम भारतीयों की मेधा का हाथ है तो इन धन्ना सेठ देशों को हमे भी उसका कुछ हिस्सा देना होगा, मोदी इस लाभांश को जिस रूप में वसूलना चाहते हैं, असल में वही उनकी राजनीतिक बिसात भी है। आरक्षण इस देश में अंग्रेजों का बोया हुआ बिषैला बीज है। इसे उखाड़ने का जोखिम कोई पार्टी नहीं ले सकती। पर आरक्षण के कारण जिस तरह षडयंत्र से देश की मेधाओं को ब्रिटेन और अमरीका ने उनके देश में आकर सस्ते दामों पर अपना श्रम बेचने के लिये बाध्य किया, मोदी के ये कार्यक्रम उसी षडयंत्र के उत्तर हैं। न आरक्षण को खत्म किया जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस ने इन विदेशी ताकतों के साथ मिलकर सत्ता की चैसर पर जिस तरह झूठे इतिहास, फिल्म और पुस्तकों के माध्यम से समाज के बीचोंबीच जैसी खाई बनाई, उसको पाटने के लिये अभी सौ साल लगने हैं, मोदी भी इसको छेड़ेंगे तो कांग्रेस सत्ता में वापसी कर लेगी। इसलिये मोदी अभी मुख्यद्वारों की सुरक्षा में लगे हैं, अन्दर के शत्रुओं, मुद्राराक्षसों से निपट रहे हैं, और विदेशियों ने जो षडयंत्र कांग्रेस के साथ मिलकर किये हैं, उनको मोदी रेखाकिंत कर रहे हैं। ट्रंप हों  टोरी,  मोदी के राजनीतिक कौशल की तोड़ ढूंढ नहीं पा रहे हैं। बाजार के क्रूर खेल से भारतीय अर्थव्यवस्था की रक्षा का दायित्व मोदी के कंधों पर है। विश्व बाजार मे सत्तर सालों से रूग्ण आर्थिक व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करना सबसे टेढ़ी खीर है, खासकर तब जब अन्दर और बाहर अनेक शक्तियां मोदी सरकार को घेरने के लिये तत्पर खड़ी हों। पर आखिर इन्हीं चुनौतियों से निकलकर राष्ट्र को एक अभेद्य सुरक्षा कवच बनाने के लिये ही लोगों ने दुबारा मोदी को चुना है। यह हंस साफ भी है, और सरोवर को भी साफ करेगा।