(वक्रतुण्डोपनिषद )
लोक आस्था के मुकुट धर
धनुर्धर श्री राम जी
सुख-दु खों के नाट्य करने
मनुष्य बनते राम जी
स्वर्ण मृगों की कथा को
मान बैठे राम जी
अश्रुपूरित हुए खंडित
लोक सदृश राम जी
धर्म-भ्रमण जयकथा बन
गणमंच पर आसीन हो
एक नामी धुन सहस्त्रों
वांग्मय की बीन हो