1. नारी की अस्मत लुटे दे दो दो-दो लाख।
अपनी बेटी-बहन के लोगे कितने लाख।।
2. पन्द्रह का आटा हुआ, औ' सत्तर की दाल।
अब घी-तेल सुलभ कहाँ, जीना हुआ मुहाल।।
3. गर्मी लोहा पीटता, बर्तन धोता शीत।
मुंह से रोटी छीनता, शासन बनकर मीत।।
4. इसी बालश्रम से जले, चूल्हे लाख हजार।
हुआ बन्द, होगा उदर पर यह तीक्ष्ण प्रहार।।
5. देशभक्त जन सह रहे पल-पल अत्याचार।
देशद्रोहियों को मिले नित्य नये उपहार।।
6. अपहृत शिशु-कंकाल का लगा हुआ अम्बार।
शिशु-कुकर्म-कुत्सा प्रबल, सतत लगा बाजार।।
7. भारत के दो मात्रा पफल रहे बैर औ' पूफट।
नहीं एकता भाव था, शत्राु रहे नित लूट।।
8. मिली भूमि क्या चीन से बीते चालीस साल।
अरुणांचल पर गिद्ध सी दृष्टि रहा है डाल।।
9. नित प्रति घटता जा रहा भारत का भूगोल।
नेता खीस निपोरते, होते गोल-मटोल।।
10. कुर्सी की रक्षा सतत, हैं सारे उद्योग।
क्या करना है देश का, पदहित सकल प्रयोग।। ु
दोहा-दशक