मानसखण्ड


सद्य प्रकाशित 'मानसखण्ड' नामक ग्रंथ उत्तराखण्ड की विदुषी सुपुत्री हेमा उनियाल का तीसरा महत्वपूर्ण साहित्यिक अवदान है। इससे पूर्व 'कुमाऊँ के प्रसिद्ध मंदिर' व 'केदार खण्ड' नाम से दो अति उपयोगी उत्तराखण्ड विषयक ग्रंथ वह प्रदान कर चुकी हैं। ये पूर्ववर्ती रचनाएँ काफी लोकप्रिय रही हैं और मानसखण्ड जो कहीं अधिक प्रौढ़ कृति है, भी उत्तराखण्ड- जिज्ञासुओं का कंठहार बनेगा। ऐसी रचनाएँ आरामकुर्सी में बैठ कर नहीं लिखी गयी हैं। इनके पीछे दर्जनों शोध यात्राओं का कष्ट साध्य स्वानुभूत अनुभव है। ये रचनाएँ न तो किन्हीं वित्त पोषित परियोजनाओं की परिणति हैं और न किसी के द्वारा अनुदान देकर लिखाई गयी। उत्तराखण्ड का शायद ही कोई धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल हो जहां वह न पहुंची हांे। इसलिए उसकी ये रचनाएँ 'कागज बहोकर आंखिन की देखी' के दस्तावेज हैं। मेरी जानकारी में। हमारे समय में हेमा के अलावा ऐसा कोई धार्मिक अभिरूचि वाला लेखक नहीं है जो सगर्व कर सके, 'हाँ मैंने समग्र उत्तराखण्ड' को अपने पगों से नापा है, एकबार नहीं, कई-कई बार। हेमा जन्मतः कुमाऊंनी बाला है और गढ़देश की बहूरानी। इसी लिए अपनी शोध यात्राओं में जब भी मेरे आवास गीताधाम में प्रकट हुई.. मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा, 'पुत्री पवित्र लिए कुल दोऊ।' मुझे संदेह है कि भविष्य में लोग विश्वास करेंगे भी या नहीं कि महानगर-प्रवासिनी एक सैन्य अधिकारी की सामान्य गृहणी ने ऐसा जीवट कार्य कभी किया था, उसने उत्तराखण्ड के 14,000 फीट तक के दुर्गम स्थानों में स्थित सभी धार्मिक स्थलों में जाकर उनकी सद्यतम स्थिति का विवरण, छायांकन और प्रलेखन कार्य किया, वह उन स्थलों से जुड़े अलौकिक  साधु संतों का सत्य विवरण प्राप्त कर सकी, पंडितों, पुरोहितों से स्वतः मिली, उन तीर्थों का पुरातत्व, इतिहास, धार्मिक आधार और लोक विश्वासों का सटीक विवरण लिपिबद्ध कर पायीं।
हेमा की कुमाऊँ क्षेत्र की आरंभिक शोध यात्राओं का नवनीत हैं...'कुमाऊं के प्रसिद्ध मंदिर' जिसमें उन्होंने गढ़वाल क्षेत्र की परवर्ती डेढ़ दर्जन शोध यात्राओं का दिव्य सार आध्यात्म निचोड़ कर रख दिया है। आप चाहे व्यास पट्टी के सूसा ग्रामवर्ती श्री नारायण आश्रम का विवरण चाहें या पश्चिमी रामगंगा घाटी के सनणा स्थित रूद्रेश्वर महोदव का, आपको इनकी सटीक जानकारी तो विस्तार से मिलेगी ही। इनके संस्थापक, संतप्रवर श्री नारायण स्वामी का पूरा जीवनवृत और रूद्रेश्वर को              आधुनिक सज्जा युक्त तीर्थ बनाने वाले प्रशासनिक अधिकारी अलोलिया जी का अद्भुत योगदान भी ज्ञात हो जाएगा। हेमा ने वाचिक और लिखित दोनों विधाओं का विद्वतापूर्वक उपयोग किया है वह भी इतने अल्प समय में।
कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों के धार्मिक व्यक्तियों के परिचायक इन दो ग्रंथों के शीर्षक-'मानसखण्ड' और 'केदारखण्ड' संज्ञक दो प्राचीन संस्कृत ग्रंथों  के आधार पर रखे गये हैं जिनका विषय भी यही रहा है। उत्तराखण्ड का पूर्वी भाग, जिसका पसारा कभी मानसरोवर तक था, के आधार पर कुमाऊँ का पौराणिक नाम 'मानसखण्ड'  भी था और केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की दिव्य उपस्थिति के कारण, गढ़वाल को 'केदारखण्ड'  के नाम से जाना जाता था। साम्पुत विवेच्य हिन्दी के 'मानसखण्ड' में 512 पृष्ठ, 367 श्वेत/श्याम व 128 रंगीन छाया चित्र तथा सात रेखाचित्र हैं।  विषय वस्तु को आठ खण्डों में बांटा गया है जिनमें पुनः 463 उप शीर्षक दिए हुए हैं। शोध कार्य की गुरूता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लेखिका ने क्षेत्र कार्य में सहायता हेतु 176 लोगों  का आभार जताया है। इनके अलावा 35 अन्य विद्वानों  के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन किया है। आरंभिक 20 पृष्ठों में लेखकीय निवेदन के अंतर्गत तीनों तीर्थों; स्थावर, जंगम व मानस, धर्म धारणा, परिभ्रमण का महत्व, मानव के कत्र्तव्य, आधात्मिक प्रगति, बौद्ध, दर्शन के अष्ट तत्व, परोपकार, वैदिक जीवन पद्धति, समाज व राष्ट्रधर्म पर अपने वेबाक विचार दार्शनिकों के उद्धरणों के साथ प्रस्तुत किए हैं। प्रथम अध्याय में मानसखण्ड का पौराणिक अवलोकन करते हुए यहां की भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सम्यक् विवेचन किया गया है। अगामी छः            अध्यायों में छः जनपदों का पृथक -पृथक परिचय दिया गया है तथा कुल 150 प्रमुख तीर्थों व महत्वपूर्ण स्थलों का विस्तृत वर्णन किया गया है। अंतिम अध्याय पर्यावरण-चेतना को समर्पित है। इसके बाद संदर्भ ग्रंथ सूची दी गयी है। इस प्रकार यह एक सर्वतोभद्र रचना बन गयी है। 
अंततः जो कार्य, उत्तराखण्ड राज्य के संस्कृति, पुरातत्व व पर्यटन विभाग, दो विश्वविद्यालय, साधन व अधिकार संपन्न प्रशासन, नाना विद्वमंडलियां, अखाडे़, साधु समाज और सहस्त्रों  स्वयं सेवी संस्थाएं नहीं कर पाए वह एक जीवट महिला ने कर दिखाया, जन्मभूमि के प्रति अपने उत्कट प्रेम-पाथेय के द्वारा। हेमा के स्वयं के शब्दों में 'अपने समस्त पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों के उचित निर्वहन के साथ माता-पिता, आदरणीय जन व पितृजनों के आशीर्वाद स्वरूप एक साधिका की सम्पूर्ण निष्ठा, श्रम एवं आनन्दमय उत्कर्ष की सुखद परिणति है यह 'मानसखण्ड' ग्रंथ।


पुस्तक - मानसखण्ड; 
(कुमाऊँ-इतिहास, धर्म, संस्कृति, वास्तुशिल्प एवं पर्यटन)
लेखिका- हेमा उनियाल
प्रकाशन वर्ष - 2014
प्रकाशक - उत्तराबुक्स, केशवपुरम् दिल्ली