यह समस्या कम महत्वूपर्ण नहीं कि भारतीयों की जीवनशैली, दर्शन, सोच, विचार और बाजार में पाश्चात्य भौतिकवादी उपभोगवाद का जो घालमेल हो गया है उसने सेंसेक्स की उछाल देखकर कुछ रईसों और अरबपतियों, खरबपतियों को विश्व के मानचित्रा पर दिखाकर बेशक हमारे देश को प्रगतिशील की श्रेणी में लाकर खड़ा करने का यत्न किया है किंतु यह पूरा सत्य नहीं है। कुछ गिने चुने लोगों की अमीरी या शेयर बाजार का उछाल पूरे देश के विकास की सही तस्वीर नहीं पेश कर सकता। भारत की दिखाई देने वाली समृ(ि संपूर्ण भारत का सत्य नहीं है। क्योंकि कुछ लोगों की अमीरी में अधिसंख्यों की गरीबी छिपी होती है। दो जून रोटी के लिए यत्रा तत्रा हाथ पैर मारती अधिसंख्य मेहनतकश जनता कर्ज के बोझ से आहत हो आत्महत्या करने को विवश क्यों है? संपन्न युवाओं में रोजी रोटी के लिए नहीं बल्कि ऐशोआराम के लिए अपराध की दलदल में भटकने की सोच विकसित होने के पीछे कारण क्या? अवश्य व्यवस्था में ही ऐसी कमियाँ रह गई हैं जो जनहित में जारी की गई। )णयोजनायें अमीरों के लिए वरदान, निम्न और मध्यम वर्ग के लिए अभिशाप हो रही हैं।
हम बीते समय की महाजनी प्रथा में )ण लेने वाले किसानों के बेगार की समस्या की बुराई करते नहीं थकते थे। हमने उसके समाधान के रूप में ही संभवतः नई रोजगार और )ण योजनायें चलाई थी किंतु भ्रष्टाचार के दैत्य के कारण वे भी असपफल ही रही हैं। मौके-बेमौके ग्राहकों को पफोन के माध्यम से अपने-अपने बैंक की )ण सुविधाओं का बखान कर उन्हें आकर्षित करने वाले नये-नये निजी बैंक महाजनों से भी अधिक भयावह और क्रूर साबित हो रहे हैं। जो समाधान समस्या का निदान करने के स्थान पर उससे भी बड़ी बुराई ले आये वह समाधान समाधान नहीं कहला सकता। कर्ज के बोझ से आज किसान ही पीड़ित नहीं है आम आदमी और व्यसायियों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती दिखाई दे रही है।
यद्यपि बैंक एक सामुहिक अमूर्त संस्था है किंतु है व्यावसायिक ही, जो लाभ के कुछ नियमों के आधार पर ही चलती है। मानवता या इंसान की मजबूरी से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता, पफसल बर्बाद हो जाये या परिवार पर कोई विपदा आ जाये, बैंक इन मानवीय पहलुओं पर विचार नहीं करता, उसे नियमों के आधार पर कर्ज देना और अपना भुगतान लेना होता है। यदि किसी कारणवश वह चुकाया न गया तो वह द्रोपदी की चीर की भाँति बढ़ता ही जाता है। परेशानी तब आती है जब बैंक भुगतान के लिए भी अमीर गरीब में अंतर कर गरीब को निचोड़ने में कमर नहीं छोड़ते।
सरकार की अधिकांश योजनायें निम्न वर्ग, दलित, निर्धन किसानों के कल्याण के नाम पर बनायी जाती हैं किंतु इनके पीछे भी भ्रष्टाचार के माध्यम से ऊपरी कमाई की राह खोल निर्धनता का उपहास उड़ाया जाता है। कोई इसे स्वीकारे या न स्वीकारे किंतु यह निश्चित है बिना ऊपरी अमले की सहमति के भ्रष्टाचारी घपले हो नहीं सकते। रिश्वतखोरों को यह सुनते भी लज्जा नहीं आती कि भ्रष्टाचारी घोटालों की माया ने भारत को विश्व के भ्रष्टतम देशों की सूची में पहुँचा दिया है। आम जन सोचते हैं कि पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाकर, जीवन निर्वाह की वस्तुयें महंगी करना सरकार की मजबूरी है, नहीं सच यह नहीं जनता पर जबरदस्ती का टैक्स को बोझ लाद जनता को महंगाई से सौ-सौ आँसूे रुलाकर सताया जाता है। पिछले साढ़े तीन साल से दाल, सब्जी, गैस, पेट्रोल, डीजल अनायास कैसे सब महंगे हो गये। चुनाव की आहट आई नहीं कि सोनिया की हंुकार का नाम ले एक ही दिन में पेट्रोल डीजल सस्ते हो गये बिना कुछ किये ही अचानक सब घाटे पूरे हो गये।
सच तो यह है कि सत्ताधारी जान चुके हैं कि सत्ता की चाबी जब तक उनके हाथ में है जनता कुछ नहीं कर सकती। हमारी सरकारों ने भारत की जनता को जिस राह पर डाला है, उससे उनके विरोध करे की हिम्मत चूक गई है। वह उनके अन्याय सहने के आदि हो गयी है, पिफर चाहे सरकार यह अन्याय पुलिस के माध्यम से करवाये या पिफर टैक्स के माध्यम से। यदि कहीं कुछ विरोध के स्वर आवाज उठाने को तत्पर होते हैं, तो अराजकता का नाम दे सरकारी चाबुक से कुचल उन्हें अपनी सत्ता की शक्ति का अहसास करवाने में वह देर नहीं लगाती। व्यापारिक कंपनियों की भाँति अपने लाभ हानि देख कुछ गिरोह की भाँति यहाँ नियम कानून बनाये जाने लगे हैं, वोट में आरक्षण की नीति भी उसी का एक हिस्सा है जिसके कुपफल हम पिछली आधी सदी से भुगतते आ रहे हैं। जिन नियमों पर वे स्वयं कभी नहीं चलते, जनता पर बलपूर्वक वे लादते आ रहे हैं। यहाँ की जनता आज भी इतनी अज्ञानी और भोली है कि देश में घटने वाली हर घटना के पीछे के सच को जानना पहचानना नहीं चाहती। जिन नेताओं से वह सतायी जाती है, उन्हें ही पुनः सत्ता सौंप देश के लूट की राह आसान बना देती है। भ्रष्टाचार के ये जनक हाथ में आयी सत्ता का निज हित में मनचाहा प्रयोग कर देश का जितना अधिक दोहन कर सकते हैं, करने से नहीं चूकते। जनसेवा के नाम पर इस देश में कब से यही होता देखा जा रहा है। ु
अनुत्तरित प्रश्न