अतल के तल का तल


जीवन- 
एक बड़ी चैपाल है 
जिसमें कुछ लोग हैं 
जिनके पास कभी न सिमटनें वाली 
बड़ी-बड़ी बातें हैं...
नेपथ्य से आते 
और नेपथ्य में सिमट जाते 
इन बेहद मासूम लोगों की 
एक बड़ी भयानक जिज्ञासा है- 
'वह' है या नहीं?
नहीं है तो कोई बात नहीं 
पर है तो उसे बताना चाहिए 
कि उसकी इस दुनियाँ में 
फँसने के लिए हँसे 
या हँसने के लिए फँसे? 
ज्ंागली भालुओं में 
उबले हुए आलुओं की 
संभावना टटोलते 
भीड़ की बोरियों से 
एक आदमी ने कहा- 
'सब कुछ वही तो है 
(वासुदेव सर्वम्)' 
दूसरा चिल्लाया- 
'खाक! कहीं कुछ नहीं है'
तीसरे ने बुझाया- 
इस पार और 
उस पार के बीच 
मन, माया और 
मायावी का पुल है 
इधर हाऊसफुल है 
उधर बत्ती गुल है 
शायद अभी कलयुग है...
पर फिर भी 
यात्रा जारी रखनी होगी 
अन्धेरे के आभासी आवरण
का अनावरण कर 
तुम लोग उसे देखो 
जिसे नहीं देखनें के लिए 
तुमने बचकानी 
हरकतें की हैं- 
अपनी किताबों और 
कविताओं में 
नाम, रूप, रंग, 
शब्द और अर्थ 
के आत्माघाती 
सृजन स्वांग रचकर... 
सबसे कठिन रास्ता अकसर 
सबसे सरल रास्ते से 
दो गुना सरल होता है! 
मुस्कुराओ, तुम 
समझ गए हो- 
सबसे सरल रास्ता 
होता ही नहीं! 
मेरी मानो
ईश्वर को जानकर 
मत मानो 
मानकर जानो
और जानकर गंूगे का 
गुड़ बन जाओ 
वरना तुम्हारा जानना 
गुड़-गोबर हो जायेगा
'इस पार' को 
सचमुच समझना 
'उस पार' जाने जैसा है 
इसलिए पहले उसे 
हवा, पानी, आग, आकाश 
और मिट्टी में निहारो 
उस तरह जिस तरह 
एक बच्चा निहारता है 
सुनसान पहाड़ी रास्ते पर 
अपनी माँ को 
तभी तुम समझोगे कि- 
तल का अतल 
और अतल के तल का तल 
सब कुछ 'वही' है 
भाव-विभाव के भीतर 
ज्ञात अज्ञात के पार 
शब्द निःशब्द के ऊपर...
इन्द्रधनुषी पिचकारियाँ छोड़ता 
दही की मटकियाँ फोड़ता 
मन, माया और मायावी बन 
एक ही घड़ी में 
कंस की कमर 
और शिव के धनुष को तोड़ता
कालयवन के 
आगे-आगे दौड़ता 
-सब कुछ वही है 
सब कुछ उसी का है- 
चैपड़ भी, चाल भी, 
चौपाल भी
सहजो! 
अगर समझ गए हो 
तो हँसने के लिए फँसो
और अगर नहीं समझे 
तो यह समझकर हँसो 
कि नासमझी भी समझ ही है। 
सहजो! 
फकीर जितना अमीर बनना 
नासमझ जितनी समझ रखना 
अज्ञानी जितना ज्ञान रखना 
और पिंडारियों के इस बाजार से 
बंजारा बनकर सिर्फ गुजरना 
कुछ खरीदना मत 
वरना बिक जाओगे 
सहजो! 
इधर पाँव मत रखना 
इधर छाँव मत तकना
जिन्दगी कहारों का गाँव है 
पल-पल सजग रहना 
पल-पल सहज रहना 
अपना ख्याल रखना...