बेटी


बेटी को न्यामत समझ, बेटी को तकदीर।
बेटी बिन बनती नहीं, दुनियां की तसवीर।।


बेटी बिन खामोश था, ब्रह्म का प्रकाश।
बेटी का सृजन हुआ, जीवन का उल्लास।।


मात, भगिनी और बहू, बेटी के ही रूप।
बेटी ही से छांव है, बेटी से ही धूप।।


बेटी घर की प्राण है, बेटी घर की शान।
बिन बेटी का घर हुआ, केवल सराय समान।।


बेटी की खामोशियां, बेटी के मन मीत।
बेटी की किल्कारियां, जीवन का संगीत।।


बेटी है शीतल हवा, बेटी है मकरंद।
बेटी ही तो गा सके, जीवन के सब छंद।।


पीहर की मुस्कान है, ससुरालों की जान।
दोनों ही घर मे बसे, बेटी के दो प्रान।।


बेटा जेठ की धूप तो, बेटी सावन मास।
बेटी पीपल छांव है, बेटी है मधुमास।।


ईश्वर का वरदान है, करूणा की है खान।
निर्झरणी है प्रेम की, बेटी सब की बान।।


बेटी पत्नी-भगिनी, बेटी बहू-अम्मीजान।
'सायर' जी नित ही करो, बेटी के गुणगान।।