भ्रष्टाचार

बेचारे भारतवासियों,
         आशीर्वाद! अल्पायु होने को अभिशप्त बन्धु! तुम्हारा विनाश अपेक्षित ही है। पहली बार तुम लोगों के सामने खुलकर आने की चेष्टा कर रहा हूँ। इस बिलम्ब को  क्षमा करना। दरअसल आज तक अपनी तैयारियों की पूर्ति में लगा था मगर अब वो सम्पन्न हो चुकी हैं इसलिये मुझे अब खुलकर सामने आने में कोई भय नहीं है। आज मैं सर्वव्यापी हूँ, मैंने अपनी पैठ जमा ली है, घर-घर तक पहुँच चुका हूँ और अब तो तुम्हारा सारा भारत मैं ही चला रहा हूँ। अरे! नासमझों! अब भी नहीं समझे कि मैं कौन हूँ? मैं इस युग की सबसे बड़ी ताकत हूँ। सबसे महान धर्म, सबसे बड़ा कर्म, स्वयंभू शक्तिपीठ, ज्ञाताओं का ज्ञान, कलयुगी ऋषियों का ध्यान, मैं हूँ आज की आस्था, मैं सफलता का रास्ता, मैं ही सत्य का ज्ञान हूँ, मैं श्रेष्ठ हूँ महान हूँ, ब्रह्मास्त्र से भी प्रभावी, चक्र-सुदर्शन पर भी हावी, कण-कण में अब बसता हूँ, बिकता भी खूब सस्ता हूँ, मैं हूँ आज का विचार, आपका अपना 'भ्रष्टाचार'।
सर्वप्रथम सभी भारतवासियों को मेरा हार्दिक धन्यवाद,मुझे अपना समझ कर अपनाने के लिये। मेरी कल्पना से भी परे मेरा सत्कार करने के लिये। वैसे मैंने सुना तो था कि 'अतिथि देवो भवः' भारतीय परम्परा है परन्तु न जाने क्यों मुझे एक डर भी था कि कहीं मेरी हकीकत भांपकर तुम मुझे पनपने का मौका ही न दो। परन्तु मुझे अपने लाडले की तरह पोषित करने के लिये पुनः धन्यवाद। अब तुमने मुझसे इतना कुछ सीखा है, मुझे पूर्ण रूप से स्वीकार कर अपना एक अभिन्न अंग बनाया है, तो मैंने भी तुम्हारी लुप्त होती इन्सानियत, नीयत, संस्कार, संवेदनाओं और सदगुणों से अपने को एडजस्ट कर लिया है। हाँ आज मैं जब तुम्हारी सारी भावनाओं और गुणों को खत्म करने में सक्षम हुआ हूँ और तुमने भी मेरा पूरा समर्थन किया है तो उन्हीं मरे हुये गुणों और संस्कारों को श्रद्धांजलि देने हेतु मैं तुम्हें चेताने चला आया। वैसे तो मुझे ज्ञात है कि तुम्हें इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं, तुम सभी खुद ही समझदार हो और तुम स्वयं ही रोज पूरे दिल से मेरी पूजा-अर्चना करते रहे हो परन्तु सुना है कि कुछ नासमझ लोग आज भी मुझे इस देश से निकाल फेंकने का स्वप्न पाल बैठे है, बस उन्हीे को संबोधित करने आया हूँ। अरे नासमझों.! क्यों यूँ ही दूर बैठकर तड़फते हो। आओ.! और तुम भी अपने सभी भाई-बहनों के साथ मेरे अन्धकार में खो जाओ! आज तुम्हारे देश में सिर्फ वो ही लोग धनी हैं और सुखी हैं जो मुझमें पूर्णतः समा चुके हैं। पर मैंने इसके लिये कोई कम प्रयत्न नहीं किये हैं। कई युगों से मेरा स्वप्न था इस देश में पूर्ण से छा जाने का जो कि अब जाकर साकार हुआ है। हाँ शुरू में मेरी कुछ नादानियां रहीं जिनकी वजह से मैं पहले पनप नहीं पाया। रावण, कुम्भकरण, कंस, भस्मासुर और कई दैत्यों और असुरों केे रूप में मेरे अवतारों ने जन्म लिया परन्तु मीडिया के अभाव के कारण उस समय वो समय रहते अपना संदेश जनता जक पहुँचा नहीं पाये परन्तु आज मैं तुम्हारे इस मीडिया का भी शुक्रगुजार हूँ जिसने मेरी पूरी मदद की और हर घर में मेरे अवतार पैदा किये। आज मैं हर भारतीय को सिर्फ स्वयं तक ही सीमित कर अपनी सक्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण दे चुका हूँ और मैंने ऐसी परिस्थियां पैदा कर दी हैं कि मेरे बिना उनका गुजारा हो ही नहीं सकता। आज मैं सारे समाज को इतना व्यस्त रखता हूँ कि देश के बारे में सोचने की किसी को फुर्सत ही नहीं है। अब तो मधु कोड़ा जैसे सबसे अनुभवी और विश्वसनीय खिलाड़ी खुले आम मेरा प्रचार-प्रसार कर लेते हैं और तुम बेचारे उसे सिर्फ चुपचाप देखते रह जाते हो बल्कि तुम्हारे अधिकतर देशवासी तो उससे प्रेरित होकर उसके जैसा ही बनने की चाह में दोगुनी तेजी से मेरी राह पर दौड़ने लगते हैं। हाँ एक और महत्वपूर्ण बात सुनो,,मूर्ख बनने वालों कि आज की सारी जनता को तो मेरी सास-बहू, लाडो, बालिका-बधू और कुमकुम खूब व्यस्त रखे हुये हैं तो तुम जितना जी भर के चिल्लाते रहो, तुम्हें सुनने वाला कोई नहीं। तुम्हें शायद कोई सुन भी लेता लेकिन मेरे धर्म-गुरूओं, बाबाओं और व्यास रूपी अवतारों ने बाकी समाज को अपनी झूठी मगर मीठी लच्छेदार बातों से बाँधा हुआ है और यदि कभी तुम देश के किसी कोने में मेरा भाण्डाफोड़ कर भी देते हो तो तुम्हारी जनता के लिये वह खबर शाम के सास-बहू के धारावाहिक से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती । ऐसे में जब तुम्हारा खून खौलता है तो तुम्हारी लाचारी देखकर मैं तृप्त हो उठता हूँ। तुमने भी अतीत में मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार किया है। मेरे ही अवतारों के नाश पर तुम सदियों से होली-दिवाली जैसे त्योहार मनाते आ रहे हो, मुझे भी बड़ी तकलीफ होती थी,जब तुम मेरी मौत पर खुशियाँ मनाते थे परन्तु मैंनंे अपनी उसी टीस को अपनी ताकत बनाया। आज दिवाली के दियों और पटाखों के साथ कई गरीबों का खून जलता है। मेरे कई नुमाइन्दे तुम्हारे बीच रहकर ही इन पटाखों के साथ बम भी फोड़ते हैं और लाखों की जान ले लेते हैं, उन्हीं के खून से मेरे अतीत को शांति मिलती है। आज मैं तुम्हारे देश के हर विभाग में बहुमत से पारित हो चुका हूँ। जोंक की तरह तुम सबका खून चूस रहा हूँ और तुम्हें अहसास भी नहीं होने दे रहा। सिर्फ तुम जैसे ही चन्द पागल मुझे  ऐसे देख पाते हो और मैं चाहता भी नहीं कि तुम भी इन सब लोगों में सम्मिलित हो जाओ और मेरा आचरण करने लगो वरना मेरा रचा ये तमाशा कौन देख पायेगा? तुम्हारे तड़फने से ही तो मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है। इस देश को तो मैं वैसे भी बेच खाऊँगा परन्तु यदि तुम भी मुझमें लिप्त हो गये और मैं तुम्हारी तड़फन न देख पाया तो मुझे मेरी ताकत का एहसास कैसे होगा? सिर्फ तुम लोगों को ही तो और ज्यादा तड़फाने के लिये मैं इस तरह से तुम्हारे सामने आया हूँ। मेरे नुमाइन्दों को तो इतनी भी फुर्सत नहीं कि मेरा यह संबोधन सुन-समझ सकें, मैं उनको इतना मदमस्त और व्यस्त रखता हूँ कि अपने ही संबोधन सुनने की भी इजाजत नहीं देता। अब सिर्फ तुम्हीं गिने-चुने लोग शेष हो जिन्हें अपनी वीरगाथा सुनाकर मैं तुम्हारे तड़फने और जलने का आनंद उठा सकता हूँ और आज तो मुझे अपनी ताकत पर इतना विश्वास है कि मैं तुम्हें खुलेआम ललकारता हूँ कि हिम्मत है तो आओ और मुझे अपनी माँ समान धरती को लूटने से रोक कर दिखाओ अन्यथा ऐसे ही तड़फते मरते रहो और मुझे आनन्दित करते रहो। तुम्हारे गौरव के डूब मरने की आस में तुम्हारा प्यारा-भ्रष्टाचार