ईसा के देश में
ईश्वर अपने सृजन पर
शमिन्दा है...
ईसा, मूसा और मुहम्मद
खामोश. खौफजदा और बेवस हैं-
आग उगलती मिसाइलों के सामनें
रोती विलखती माताओं के सामनें
डरी-सहमी औरतों के सामनें
सिसकियों का शोर...चारों ओर
निगल जाएगा उन सबको
जो खामोश हैं, खुश हो रहे हैं...
या सिर्फ रोने के लिए रो रहे हैं
देखो उस खौफ
और उस गुस्से को
उन बच्चों की बरसती आँखो में
जिन्होेंने खोया है-
तोप-टेंकों, मिसाइलों, राॅकेटों
और मशीमनगनों की आग में
अपने आँगन को, अपनों को
किसलय के सपनों को
धारीदार गेंदोें को, रंगीन गुब्बारों को
उलझी पतंगों को, उड़ते परिंदों को...
खून की नदियाँ
रेगिस्तान से ज्यादा प्यासी हैं
गजा की गलियाँ आजकल
और कब्रिस्तान से ज्यादा उदास हैं
इब्राहिम-इस्माइल के
जीते जागते बच्चों के चेहरे!
कोई क्या करे, क्या कहे-
जहाँ भाग में आग हो
वहाँ दंगल बढकर
अक्सर दावानल हो जाता है...
जिन्होंने आदमी को गिरते देखा है
उन्हें गिरिजाघरों के गिरने का
कोईं अफसोस नहीं होगा
और इबादतखानों में
तब तक रहेगा सन्नाटा
जब तक आदम का खौफ
आदमी के सन्नाटे का उत्तर है...।
सुनो लोगो...
संभावना के शोर को सुनो...
पश्चिमी तट पर
सरहद के दोनो ओर
कुछ बच्चे खिलखिला रहे हैं!
यानी, उम्मीद अभी बाकी है!
उत्सव और उजाले की
'पूरब' की ओर टकटकी लगाए
वे निहार रहे हैं
नीले आकाश को
अपने हिस्से के प्रकाश को
अब सुबह जरूर होगी,
उजाला जरूर होगा-
खुलेंगें बंद स्कूलों के फाटक
अंधेरे कारखानों की खिड़कियाँ
उडें़गे बेखौफ परिंदे
सरहद के दोनो ओर...
पढेंगें कभी न कभी लोग
'पहाड़ी के उपदेश' को
हंसते-मुस्कुराते बच्चो!
बमो की, गमों की,
खौफ की, खामोशी की
वेदना की, वेवशी की
और वीरानेपन की
इन कहानियों को भूला देना
लेकिन हमेशा याद रखना
उस दरियादिल आदमी
की कहानी को
जिसने आखिरी समय में
कातिलों के लिए
ईश्वर से दुआ की-
...'इन्हें माफ कर देना'
बिलखते बच्चों की कहानियां