चन्द्रगुप्त और सोलर (व्यंग्य )


यमराज राहत में व्यस्त, प्रेत, फैशन टीवी मंे मस्त। आकाशवाणी के नजीबाबाद केन्द्र से इतिहास को भी झकझोर करने वाला एक ंफुकान समाचार सुनने को मिला। नरक में आजकल आत्मायें खासी प्रसन्नचित्त हंै, प्रेत लोग पूरी भाईगिरी पर उतर गये हैं, भाई लोग वी टीवी, फैशन टीवी से फेवीकाॅल के मजबूत जोड़ से ऐसे चिपके हुये हैं, इन्हें खाने पीने की सुध तक नहीं। हो भी क्यों, आखिरकार कई दिन हो गये, इन्हें ना तो तेल की कड़ाई में डाला जा रहा है, ना ही चित्रगुप्त इन्हें इनके किये की सजा मुकर्रर कर रहा है। प्रेतों ने सारा नरक छान मारा लेकिन उन्हें ना तो यमराज के राक्षसी दर्शन हुये ना ही श्रवण श्रावणी भावभीनी दर्शन। चित्रगुप्त भी गधे के सींग की तरह से पूरे दृष्टिपटल से स्यूं सुलार गायब हो गये। प्रेत लोग प्रसन्न भये। काफी खोजबीन करने के बाद ज्ञात हुआ कि जब से केदारनाथ धाम में उथल-पुथल हुयी है, यमराज भी खासे व्यस्त हो गये हैं। इनकी व्यस्तता की वजह केदारनाथ धाम में मृत आत्मायें नहीं है, बल्कि ये आजकल उत्तराखंड मंे बंट रही राहत सामग्री पर गिद्ध दृष्टि जमाये हुये हैं, चित्रगुप्त द्वार-म्वौर बंद करके आंखे फाड़कर पृथ्वी पर देखकर उत्तराखंड त्रासदी में प्रभावित लोगांे को मिल रहे राहत को निहारकर औंठ चबा रहे हैं। लोगों को सोलर, तिरपाल मिलते देख यमराज किल -किला उठे, उनकी आंखो में अजीब सी चमक उत्पन्न हो गयी। आपदा सम्बन्धित अधिकारी कितने सेालरों को सपोड़ रहे हंै, अपनों को बांट रहे हैंै। गरीबों के लिये राशन कार्ड पर राशन वितरित हो रही है। सोलर तो फिर भी उन्हें नहीं मिल रही है। बिचारे कितनी दूर से लोग राशन के लिये आये हैं, सोलर के लिये हाथ-पंाव मार मारकर थक गये हैं। सुनने में आया है कि आपदा प्रभावित केन्द्रों में तीन तालों के अंदर सोलर बंद किये हैं। इतना तो काले पानी की सजा पाये व्यक्ति को भी नहीं रखा जाता है। 
बिचारा, पानी इतना आया कि केन्द्रांे के बाहर बने मैदानों में रखे भोग सड़ते जा रहे हैं, कम्बख्त इन बोतलों को कोई नहीं निहार रहा है, बच्चे बोतलों के उपर उछल कूद कर रहे हंै, एक दूसरे पर स्यूं जोर बोतल फेंक रहे  हैं। कुछ व्यवसायियों ने रात के घुप्प अंधेरे में बोरों में भरकर इन बोतलों को ठिकाने लगा दिया है। नरक में भी बिजली विभाग की लापरवाही उजागर हो गयी है, जगह-जगह खंभे उखड़ गये हैं, प्रेतांे को दंड भी अंधेरे में दिया जा रहा है, ज्ञात ही नहीं हो रहा है किस व्यक्ति को कौन सा दंड दिया जा रहा है। नरक में कुछ नहीं तो सोलर व्यवस्था तो होनी ही चाहिये। यमराज पशोपेश में पड़ गये। राशन पानी न सही, पर सोलर की फुल जुगाड़ तो होना ही चाहिये था। यमराज और चित्रगुप्त माथापच्चीसी करने लगे। अन्ततः डिसाइड हुआ कि चित्रगुप्त गरीब पीड़ित बनकर पृथ्वी पर जायेगा, और वहां से कम से कम एक सोलर लेकर आयेगा, सोलर आते ही उसका राज्याभिषेक भी किया जा सकता है। लो भाई, अपना चित्रगुप्त गरीब आदमी बनकर राहत केन्द्र जा पहुंचा। घंटो लाईन में रहकर आखिरकार उसका नम्बर आया। आपदा में नियुक्त नोडल अधिकारी ने पूछा। क्या नाम है...जी...धनपाल। कहां के हो भाई....जी, कालीमठ घाटी का। गांव का नाम नहीं है भैया।...जी है...क्या छौं हो रही है नाम बताने में।...ऐसा नहीं है...तो बता! टाइम खोटी मत कर।...जी चैमासी..। अच्छा बाप का नाम...बचनदास। क्या करता है..जी बुरे आदमियों की लिस्ट बनाता है....नहीं...नहीं...कुछ नहीं। परिवार में कोई मरा है?...जी..../कौन.../पड़दादा, दादा, पड़नानी, नानी...ससुर जी,..../अरे भाई किस काल की बात कर रहा है, केदारनाथ त्रासदी में कोई गायब.../जी नहीं.../चल फूट यहां से। चित्रगुप्त झल्ला पड़े । मृतक आश्रितों को ही मिलेगा क्या...मैं देख रहा हूं तुम सबको बांट रहे हो। हल्ला कर रहा है? तुझे पता किससे बात कर रहा है? नौडल अधिकारी हूं मैं, इस पूरे राहत सामाग्री का मालिक। समझा! ज्यादा बकबक की तो जेल भेज दूंगा। चल बोल क्या चाहिये...चित्रगुप्त संयत हो गया। जी सोलर! नोडल अधिकारी अपनी कुर्सी से ऐसा बिदका जैसे 440 वोल्ट का करेंट लगा हो। सोलर चाहिये...मुंह देखा है कभी आइने में? पच्चीस सौ रूपये का सोलर है, पांच रूपये का नहीं। सोलर ऐसे ही बांटने लग गया तो लोगांे को क्या दूंगा?/किन लोगों को सर...?/ फिर से मुंह चला रहा है, तुझे कुछ नहीं मिलेगा।/क्यों सर...!/नोडल अधिकारी बिदक गया, उसने निकट खड़े पुलिसकर्मी को पुकारा, पुलिस भी सटाक से वहां आ गयी, और बक-बक कर रहे चित्रगुप्त को पकड़ कर धुनने लगी। आधे घंटे तक पुलिस कस्टडी में रहने के बाद आखिरकार चित्रगुप्त को आजाद किया गया। चित्रगुप्त ने नोडल अधिकारी तथा उस पुलिस कर्मी की फोटो अपने मन मंे अच्छी तरह से छाप दी, एक बार बेटे....उपर तो आओ...रेत के दरिया में नहीं खदेड़ा तो मेरा नाम भी.....हां....। 
वहां से भागकर चित्रगुप्त ने दूसरे राहत केन्द्र की ओर रूख किया। वहां पर खासी भीड़ लगी थी। राशन कार्ड के जरिये लोगों को राशन बांटा जा रहा था, ट्रक में बैठा एक शख्स प्रत्येक पैकेट से सोलर निकाल रहा था, और लोगों के साथ फोटो खिंचवा रहा था। उसने एक व्यक्ति को राशन के साथ सोलर देकर दांत फाड़ू एक फोंटो ली, और उसके हाथ से सोलर निकालकर उसे विदा किया। चित्रगुप्त से रहा ना गया, उसने उस व्यक्ति से पंगा ले लिया। जब तुम्हें इसे सोलर देना ही नहीं था, तो फोटो क्यों लिया? ...अखबार में छपवाने के लिये। बाकी भैया.. पच्चीस सौ रूपये का सोलर इतनी आसानी से कैसे दे दें। बता तू ही, होता तो दे देता फ्री में। वापसी में हरिद्वार में आधी कीमत पर बेच देंगे। फिर लेना पच्चीस सौ रूपये में। बड़ा महंगा है, चित्रगुप्त चिल्ला पड़ा। तो निकाल हजार रूपये....रख ले ऐ मां कसम किसी को मत बताना...दो चार ग्राहक और पटा ले...तेरे को फ्री में दे दूंगा। चित्रगुप्त पशोपेश में पड़ गये, यह तो ज्यादाती है, राहत के नाम पर सामान फ्री में आया है, और तू बेचने की बात कर रहा है। ट्रक मालिक चिल्ला पड़ा, गुस्से में आकर दो घूंसे भी चित्रगुप्त को जमा दिये। चित्रगुप्त ने खीशे से पेन निकालकर एक कागज में उसका स्कैच बना दिया। क्या कर रहा है....स्कैच बना रहा हूं तेरे को तो बाद में देख लूंगा।...चल निकल इससे पहले की तेरा कीमा बनाकर ट्रक के पहिये के नीचे डाल दूं। चल निकल। चित्रगुप्त निकल पड़ा, तीसरे राहत केन्द्र पर पहंुचकर उसे लगा कि यहां पर सोलर मिल जायेगा। सभी लोग एक कागज दिखाकर सोलर ले जा रहे थे। पूछने पर पता चला कि आपदा कमिश्नर द्वारा लिखित कागज में यदि सेालर दिया जाये लिखा हो तो सोलर मिल जायेगा। 
चित्रगुप्त प्रसन्नचित होकर कमिश्नर के आंफिस के बाहर पहुंचे। अंदर विभिन्न विभागों के संड मुंसंड अधिकारी कमिश्नर को घेरे थे। बामुश्किल तीन घंटे की खड़ी मशक्कत के बाद चित्रगुप्त कमिश्नर के दरबार में आ पहुंचे। सर नवाकर इससे पहले कि कुछ कह पाता, कमिश्नर ने लोनिवि की फाइल मंगा दी। और उसे देखने लगे। काफी देर तक फाइलों में खोने के बाद चित्रगुप्त से मुखातिब होकर बोले। तो अभी तक केदारनाथ तक सड़क नहीं पहुंची है, और तुम दांत निपोड़ रहे हो, तुम्हारे वश का नहीं है तो दूसरे अधिकारी को बुलाउं.... इससे पहले कि चित्रगुप्त कुछ कहता, कमिश्नर ने उसे चुप बैठने का इशारा किया, चित्रगुप्त मुह पर अंगुली लगाकर चुप बैठ गया। तुम्हारे जैसे लोग विभागों में पड़े हंै, इसलिये देश तरक्की नहीं कर रहा है। चित्रगुप्त को अब लगने लगा था, कि वाकई सोलर देना कोई अधिकारी नहीं चाहता है। आखिरकार इन सोलरों में क्या ऐसी बात है, जिसके लिये उसे हर जगह लताड़ लग रही है। वह कुछ सोच ही रहा था, कि अचानक कमिश्नर चिल्ला उठा अब क्यों सांप सूंघ गया है, मुंह पर ताला क्यों लटका है, अब बक-बक क्यों नहीं कर रहा। चित्रगुप्त सहमे स्वर में बोला,  महोदय मुझे सोलर चाहिये....क्या बोला, सोलर! जो काम करना हो दिन मंे करो... रात में काम करना छोड़ दो। सोलर से तुम्हारा मार्ग बन जायेगा? उसके लिये हिम्मत चाहिये कुछ कर गुजरने का जज्बा चाहिये। सोलर से काम नहीं चलेगा। जी महोदय..., कहकर चित्रगुप्त चुपचाप कमिश्नर का मंुह ताकने लगा। मुझे रिपोर्ट चार दिन में चाहिये। यदि ऐसा नहीं होगा तो तुम्हारा डिमोशन करवा दूंगा मैं...इतना कहकर कमिश्नर ने फाइल चित्रगुप्त के आगे पटक दी, और मुंह बिचकाकर बाहर निकल गया। चित्रगुप्त कभी फाइलों को तो कभी आंफिस की घूमती चेयर को देख रहा था। उसने सिर झुकाकर बाहर का रूख किया। वह अब समझ गया था कि सोलर प्राप्त करने के लिये मर्डर तक हो सकते हैं। उसने चुपचाप से जेब से पेन निकालकर कमिश्नर का फीगर बनाया, और सरपट नरक की दौड़ लगायी। 
यमराज के सामने पहुंचकर चित्रगुप्त ने यम राज के पांव पकड़ लिये। और अपनी व्यथा कथा सुनाई। यमराज को क्रोध आ गया, और सभी लोगों की तस्वीर को मन में बसाकर तेल की कड़ाई को गर्म करने में लग गये। चित्रगुप्त घेंता पड़ गये। उनकी संास फूलने लगी। यमराज ने पुन सोलर के लिये श्रवण श्रावणी को पृथ्वी पर भेजने का प्रावधान बनाया....
सोलर का नाम सुनते ही चित्रगुप्त बेहोश हो गये। यमराज सोलर की लालसा में पुनः यकटक पृथ्वी की ओर निहारने लगे। श्रवण श्रावणी कभी चित्रगुप्त को तो कभी पृथ्वी राहत केन्द्रांे की ओर निहारने लगे। उनके मन में कुछ शंकाये जन्म ले रही थीं।