दो कवितायेँ

बादल बरसे!
बादल बरसे
बरसे
अविरल बरसे
ऐसे बरसे, ऐसे बरसे
कि, मन कातर हो बोल उठा-
ऐसे ही बरसे, तो
कभी न बरसे-कभी न बरसे-कभी न बरसे
कि, मुठ्ठी दो मुठ्ठी जमीन
औ' टूटे छप्पर को भी, हम तरसे
बादल बरसे।
ठठाकर बरसे
बहुत-बहुत बेशरम होकर बरसे
कि, बच्चे से माँ, माँ से बच्चे
माँ से धरती, धरती से हरियाली
हरियाली से जीवन, कि
बादल फटने के आघात से हम
बिछड़-बिछड़
जीवन का तरसे, हाय, जीवन को तरसे
बादल बरसे।
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मोनाल
ओ, मेरी प्यारी मोनाल!
मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए
क्या कर सकूंगा तुम्हारे लिए
कर सकने की राह पर हँू
पर कह नहीं सकता
ओ, भाषा!
बहुत ही साहित्यिक किसम के बहेलिए
अपने-अपने पिंजरों में कैद कर देना चाहते हैं तुम्हें मिठ्ठू की तरह
... तुम, हमारी मस्त-प्यारी-खूबसूरत
मनहर मोनाल हो
तुम्हारा हिमालयी कंठ
हमारी आत्मा का संगीत है
तुम, हमारी आत्मा की भाषा हो
ओ, मेरी प्यारी मोनाल !!!...
ओ, मेरी प्यारी उत्तरा!!!...
स चिन्मय सायर