डॉ यशोधर मठपाल

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने अपनी स्थापना के पच्चीस वर्ष पूर्ण करने पर शैलचित्रों पर आधारित विश्व सम्मेलन 6-13 दिसम्बर के बीच आई.जी.एन.जी.ए.के सभागार में आयोजित किया जिसमें बीस देशों के दर्जनों कला विशेषज्ञ और भारत के हर क्षेत्रके विद्वानों ने भागीदारी की। 6 दिस0 को सांय चार बजे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र जनपथ नई दिल्ली के सभागार में उपराष्ट्रपति मा0 अंसारी ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।इस उद्घाटन सत्र में भारत के प्रमुख शैलचित्र विशेषज्ञ डा0 यशोधर मठपाल को सम्मानित किया गया।मंच पर उपस्थित आई.जी.एन.सी. के अध्यक्षश्री चिन्मयानंद आर. गरेखान,उक्त संस्था की प्रमुख सदस्य डा0 कपिला वात्सायन, इन्टरनेशनल फेडरेशन आॅफ राॅक आर्ट आॅर्गनाइजेशन के संयोजक एवं सी.ई.ओ. प्रो0 राबर्ट बैडनारिक (आस्टेªलिया) ने शैलचित्रों पर अपने अनुभव एवं विचारों को रखा। प्रोफेसर राबर्ट द्वारा 'द वल्र्ड आॅफ राॅक आर्ट' पर एक स्लाइड शो प्रस्तुत किया गया। आस्टेªलिया में पहला शैलचित्र सन 1788 में संज्ञान में आया। वहीं अफ्रीका, भारत और यूरोप में शैलचित्र उन्नीसवीं शताब्दि में सर्वप्रथम प्रकाश में आयें सन 1867 में भारत में सर्वप्रथम स्कालर आर्चीवाल्ड कार्लायल को अपने शोध यात्रा के दौरान मिर्जापुर के पास सोहागीघाट में कुछ शिलाश्रयों में प्राचीन धुंधले चित्र दिखाई दिये। इन शिलाश्रयों के फर्शाें में उसे लघुपाषाण उपकरणों के के साथ गेरू के टुकड़े भी मिले। जिससे यह अनुमान लगा कि लाल रंग से बने यह चित्र उन्हीं की रचनायें हैं जिन्होंने लघुपाषाण उपकरण बनाये थे और गेरू के टुकड़े तब चित्र बनाने के लिये प्रयुक्त किये गये होंगें।यूरोप में स्पेन की अल्तामीरा गुफा के चित्रों को, जो भारत की खोज के बारह वर्षों बाद  प्रकाश में आये, अपनी प्राचीनता और सत्यता सिद्ध कराने में आगामी पच्चीस वर्षों तक वाकयुद्ध का सामना करना पड़ा। भारत में इस प्रथम खोज से एक बात सिद्ध हो गयी थी कि सवा सौ वर्ष पूर्व भी धुंधले चित्र शिलाश्रयों में विद्यमान थे और शैलचित्र कम से कम सवा सौ वर्ष प्रचीन तो हैं ही। प्राचीनतम शैलचित्र आज भी वनाच्छादित पर्वतांे की कंदराओं में छिपे हुये हैं जहां पहुंचना दुष्कर कार्य है। उल्लेखनीय है कि प्रागैतिहासिक काल में जब मनुष्य सभ्यता से दूर था उस समय उसने अपने रहने के स्थान उन जगहों पर बनाये जो प्राकृतिक रूप से समृद्ध और ऊंचे स्थानों पर अवस्थित थे।उस काल के मानव ने प्रकृति निर्मित गुफा आवासों को नाना रंगों से चित्रित कर सजाया। आदि मानव के कला प्रेम का ज्ञान यह चित्रित सौन्दर्याभिव्यक्तियां कराती हैं।
उत्तराखण्ड में चित्रित तथा उत्कीर्ण कला प्रतिमान अड़सठ स्थानों पर उपलब्ध हुये हैं। इनमें से चित्रित प्रतिमान शिलाश्रयों में-लाखु उड्यार, फडकानौली, पेटशाल, फलसीमा, कसारदेवी, ल्वेथाप, हथ्वाल घोड़ा,(जनपद अल्मोड़ा में) ग्वारख्या उड्यार, किमनी (चमोली) हुंडली, ठढुंगा (उत्तरकाशी) में तथा उत्कीर्ण आकृतियां व कपमाक्र्स शेष स्थानों पर खुली चट्टानों पर मिलते हैं। जिस प्रकार मध्यप्रदेश में  बेतवा का उद्गम क्षेत्र गुफाचित्रों का सबसे सघन क्षेत्र है, उसी प्रकार कुमाऊँ में सुयाल नदी का उद्गम भी शैलाश्रयी कला का प्रधान केन्द्र है। विश्व के एक सौ बीस देशों में लगभग एक लाख स्थानों पर शैलचित्र प्राप्त हुये है जिन्हें हजारों वर्ष पूर्प आदिमानव ने बनाया था। भारत में ही 650 स्थानों पर हजारों चित्रित शिलाश्रय हैं। भीमबेटका (म0प्र0) प्रागैतिहासिक शिलाचित्रों का प्रमुख स्थान है। संसार में एक स्थान पर इतने अधिक चित्रित शिलाश्रयों का विस्तार अन्यत्र नहीं पाया गया है।
कुमाऊँ में सन 1970 के आसपास शोध स्नातक श्री ताराचंद त्रिपाठी को सुयाल घाटी में अशोक के शिलालेखों की खोज यात्रा के दौरान दो चित्रित शैलाश्रय मिले। उनके अनुसार रक्तवर्णीय इन चित्रों का साम्य स्पेन के प्रागैतिहासिक गुफा चित्रों से था। सन 1973 में डा0 त्रिपाठी (नैनीताल) से ही इन गुफाचित्रों की विस्तृत जानकारी पुराविद  लेखक और प्रसिद्ध चित्रकार डा0 यशोधर मठपाल को मिली। डा0 मठपाल सहित इतिहासकार डा0 महेश्वर प्रसाद जोशी, श्री धर्मपाल अग्रवालआदि ने शैलचित्रों का विवरण प्रकाशित किया है। डा0 मठपाल जो पाषाणकालीन गुफाकला के विशेषज्ञ माने जाते हैं, ने ईमानदारी से इन चित्रों को प्रकाश में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। डा0 मठपाल ने विगत चालीस वर्षों में हिमालय, विद्यांचलतथा केरल राज्य में चार सौ से अधिक गुफाओं में प्रलेखन कार्य किया है तथा कई परियोजनाओं में विदेशी विद्वानों के साथ सहभागिता निभाई है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के शैलचित्रों पर आधारित विश्व सम्मेलन में डा0 मठपाल को सम्मानित किया जाना इस कला का भी सम्मान रहा। व्यक्तिगत स्तर पर डा0 मठपाल द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्तर के लोकसंस्कृति संग्रहालय, भीमताल की स्थापना भी उनके जीवटधर्मिता की परिचायक है। 
शैलचित्रों के इस विश्व सम्मेलन में दो चित्र प्रदशर््िनियों का आयोजन भी किया गया। कला केन्द्र के माटीघर में शैल चित्रों वाली गुफा का  त्रि- आयामी प्रदर्शन था, तो दूसरी प्रदर्शनी में डा0 मठपाल द्वारा भीम बेटका आदिक्षेत्र में विगत चालीस वर्षों में 400 गुुफाओं से अनुकृत जलरंगों की छवियां थीं। कुल मिला कर दोनों प्रदर्शनियां रोचक, महत्वपूर्ण एवं ज्ञान बर्द्धक रहीं।