वी.डी.सी., प्रधानी, स्कूल, ईंट का भट्टा, और राशन-तेल का कोटा भी उन्ही के पास है! उनकी कई गाड़ियाँ चलती है! कंधें पर दू-नाली लाइसेंसी बन्दूक लटकाए उनके आदमी हाट-बाजार के दुकानदारों से जबरन चुंगी वसूलने के लिए आते हंै! अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए बाजार में घुसने से पहले वो हवाई फायर भी करते है! सब कुछ वो ब्लैक कर देते है! घर में बेटी की शादी हो तो भी हमें हर जरूरी सामान ब्लैक में ही खरीदना पड़ता है! साहब हमें आज तक कभी न तो राशन कार्ड के मुताबिक न तो पूरा राशन मिला और न ही कभी मिटटी का तेल ! वो कुछ भी कर सकते है! हम गरीब-दुखिया की कौन सुनेगा? पुलिस वाले भी उन्हें सलाम ठोंकते है! थानेदार और दरोगा साहब तो हर महीने उनके घर पर मेहमान की तरह आते रहते है! साहब उनके खिलाफ अदालत में गवाही देने की बात तो दूर की है साहब,पूरे गाँव में किसी की क्या मजाल जो उनके खिलाफ कुछ बोल दे? अगर किसी ने हिम्मत जुटाई तो उसका या तो राम-नाम सत्य हो गया या तो गवाही देने वाला ही जेल चला गया! साहब वो पैसे वाले है! जज साहब को भी वो फीस देकर उल्टा उसे ही फंसवा कर जेल भिजवा देते है! अन्ना साहब ने यह कसम खायी है कि वो कचहरी के भ्रष्ट जजों के खिलाफ करवाई करवाने के लिए कानून बनवायेगे! इसलिए उनके समर्थन में मै अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को घर पर अकेले छोड़कर अपनी पत्नी के साथ यहाँ रामलीला मैदान में अपनी खेती को भगवान-भरोसे छोड़कर आया हूँ , बिना किसी बिछौने के भीगी हुई घास पर लेटे हुए, रात्रि लगभग 2 बजे, भिंड जिले के खरका गाँव के मिजाजी लाल जी ने अपनी व्यथा बताते हुए रामलीला मैदान में आने का कारण बताया! आप सब शहर के लोग पढ़े-लिखे हैं, और यहाँ शहर में रहते है आप सब भी कुछ दिन की छुट्टी लेकर हमारे साथ तपस्या कीजिये क्या पता आप सब की सरकार जल्दी सुन ले! साहब आप लोगों की तपस्या से हम बेचारे गरीब-दुखिया को गाँव में सताया नहीं जायेगा, हमें भी पूरा राशन मिलेगा, हमारे बच्चे भूखे नहीं सोयेगे कहते हुए उनकी धर्म पत्नी ने हमसे रामलीला मैदान में आने का आग्रह किया! साहब! हमें पूरी मजदूरी मिलेगी, ठेकेदार और प्रधान को हिस्सा नहीं देना पड़ेगा, पीला-लाल राशन-कार्ड बनवाने के लिए पैसा नहीं देना पड़ेगा! एक बात और बताऊ साहब जी बड़े अस्पताल में ( सरकारी अस्पताल ) डाक्टर को भर्ती करने के लिए पैसा नहीं देना पड़ेगा! साहब हमारी एक ही बहु थी, गर्भवती थी, भर्ती कराने के लिए बड़े अस्पताल ले गया, डाक्टर साहब ने भर्ती करने के लिए मोटी रकम मांगी, मैं नहीं दे पाया तो डाक्टर साहब ने मेरी बहु को भर्ती नहीं किया! अस्पताल के बाहर ही दर्द के मारे छटपटाते हुए बहु ने पोते को जन्म देकर हमसे रूठ कर भगवान् के पास चली गयी! अब आप ही बताइए साहब हम गाँव के किसान मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट भरते है, घूस देने के लिए इतना पैसा कहा से लायें! 'भालत माता ती-तय', कहते हुए एक करीब पांच साल का बच्चा हाथ में तिरंगा लिए हुए और 'मै अन्ना हूँ' की टोपी लगाये हुए यूं.पी. के एक खालौर गाँव के रामावतार जी की गोद में आकर बैठ गया! यही हमारा पोता है साहब! आप स्कूल जाते हो? मैंने उस बच्चे पूंछा! वो बच्चा हमारी तरफ देखने लगा शायद उसको समझ नहीं आया! अभी ये तो बहुत छोटा है ये 5 कि.मी. दूर स्कूल कैसे जायेगा? रात्रि लगभग 3 बजे बीडी पीते हुए, उस बच्चे की तरफ से जबाब रामावतार जी ने दिया! हम नेत्रहीनों को आज भी भीख मांग कर अपना पेट भरना पड़ता है, और तो और सरकारी सहायता पाने के लिए रकम का लगभग आधा हिस्सा घूस देना पड़ता है ! इसलिए मै अपनी नेत्रहीन पत्नी के साथ अन्ना जी के समर्थन आया हूँ, रात्रि करीब 4 बजे फरीदाबाद के सच्चिदानंद जी ने हमें अपने रामलीला मैदान में आने का करण बताया! हमारे बहुत आग्रह करने पर सच्चिदानद एक देशभक्ति गीत 'ये मेरे वतन के लोगों...' सुनाया! इसके बाद मेरी किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई !
अन्ना जी के ऊपर सरकार द्वारा किये गए चार जून की रात्रि का जलियांवाला बाग-सा अपना घनघोर कुकृत्य दोहराना चाहती थी परन्तु समय रहते जनता ने सरकार के मंसूबों को भांप लिया और अन्ना जी की समर्थन में सड़क पर आ गयी! जहां एक तरफ अन्ना समर्थन में छत्रसाल स्टेडियम में आम लोगों के द्वारा दी गयी स्वतः गिरफ्तारी हो रही थी तो दूसरी तरफ सरकार के दांव-पेंचों से दिल्ली की सड़कों पर अन्ना जी भ्रमण कर रहे थे! अंत में सात दिन के लिए सरकार के वकील-मंत्रियों ने अन्ना जी को सरकारी आवास अर्थात तिहाड़ जेल मुहैया करवा दी और अगले ही कुछ पलों में उन्हें छोड़ दिया गया! बस यही से भारत का भोला जनमानस सरकार की इस क्रूरता के खिलाफ और भारत के संविधान द्वारा नागरिको को प्रदत्त मौलिक अधिकार के हनन के मुद्दे पर सारी जनता अर्थात सड़क से लेकर संसद तक अन्ना जी के समर्थन में आ गयी! परिणामतः दिल्ली में अनशन न करने देने की जिद पर अड़ी सरकार को मजबूरी में रामलीला मैदान देना पड़ा! मेरे मन में यह प्रश्न लगातार उठ रहा था की इतने लोग दिल्ली जैसे शहर में आये कैसे? कौन थे ये लोग? इन प्रश्नों का उत्तर जब मै स्वयं रामलीला मैदान गया तो मुझे स्वयं ही मिल गया!
बहरहाल, भारत की जनता के बारे में प्रायः ऐसा कहा जाता है कि यहाँ की जनता समझदार के साथ -साथ बहुत भोली है! जनता के बीच जाकर उनसे बात करने के बाद लगा मुझे लगा कि लोग सच ही कहते है, मै इस बात से पूर्णतः सहमत भी हूँ! परन्तु 16 अगस्त, 2011 को जिन मांगों को लेकर अन्ना जी ने अपने साथियों के साथ भारत से लगभग 65: भ्रष्टाचार खघ्त्म करने कि बात कही थी, क्या अन्ना जी की वो मांगे 27 अगस्त ,2011 तक सरकार द्वारा मान ली गयी? मसलन-सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले। नतीजा-सरकार ने बिल वापस नहीं लिया। सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये। नतीजा रू सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया। अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं। लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों नतीजा सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया। अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र नहीं।
तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो। नतीजा- तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक नहीं तय की कि वह बिल कब तक पास करवाएगी। बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए। नतीजा-स्टैंडिंग कमिटी के पास एक की बजाए पांच बिल भेजे गए हैं। लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो। नतीजा- सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया। अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं। जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 184 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए। नतीजा रू चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना ही वोटिंग हुई। उपरोक्त के अतिरिक्त तीन अन्य वह मांगें जिनका जिक्र सरकार ने अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में किया है वह हैं-सिटिजन चार्टर लागू करना, निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना, राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति करना। प्रणब मुखर्जी द्वारा स्पष्ट कहा गया कि इन तीनों मांगों के सन्दर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान कि सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें। मुझे ऐसा लगता है कि 15 अगस्त 1947 देश जहां खड़ा था आज भी वही खड़ा है ! कही टीम अन्ना द्वारा किए गए समझौते ने देश को उसी बिंदु पर लाकर तो नहीं खड़ा कर दिया? जनता के विश्वास की सनसनीखेज सरेआम लूट को विजय के नारों की आड़ में छुपाया तो नहीं जा रहा है ? क्या एक बार फिर भोली जनता के विश्वास का चीर-हरण होगा ? ....फैसला आप करें।
एक था अन्ना आंदोलन