हाइकु (पर्यावरण )

नई-नवेली
दुल्हन सी धरती
सजने लगी


पोषण कर
सुख-समृद्धि देती
पावन धरा


अलसाई सी
गुनगुनी धूप में
ओंस की बूंद


पूछ रही है
धरती मदहोश
बंधन खोल


हवाओं से तो
पूछकर बताओ
जाती हैं कहाँ


टूटते पत्ते
मादकता का राग
बसंत आया


प्रकृति बंधी
नियमों से अटल
ललकारो ना


पर्यावरण
प्रदूषित हो रहा
रोकिये इसे


स्वच्छ जल 
कहाँ से मिले अब
दूषित पानी