हे राजन्
एक बार
ऋ षि काल देवल
हिमालय से कपिलवस्तु आये
राजकुमार सिद्धार्थ को
देखकर
पहले हंसे फिर रोये
राजा ने कारण पूछा
बोले
यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा
यह भरी जवानी में सन्यास लेगा
तो 'सिद्धार्थ'
तुम गौतम से बुद्ध बन गये
नाम बदला
और सार्थक कर गये
तुमने अज्ञानता को
दुःख का कारण बताया
और अंकित कर गये
अपना नाम
समय के शिला लेख पर
लेकिन
हे, पार्थ तुमने क्यों नाम बदला
क्या सत्ता के वट वृक्ष के नीचे
तुम भी बुद्ध की तरह आत्मज्ञानी हो गये
क्यों उत्तरांचल की जगह उत्तराखण्डी हो गये
क्या उत्तरांचल ही सब दुखों का कारण बना
जिसका परित्याग करना आवश्यक हो गया
तो हे, आर्य पुत्र
सच-सच बोलो
क्या उत्तराखण्ड
प्यासों को पानी देगा
भूखों को अन्न देगा
जिनके पास नहीं छत
उनको मकान देगा
क्या पनपता भ्रष्टाचार
मिट जायेगा
औरा सारा राज्य
गाँधी का सेवाग्राम हो जायेगा
क्या नये नाम संस्कार से
हम विकास के पथ पर
दौड़ते चल जायेंगे
सारे निरीक्षक, साक्षर हो जायेंगे
यदि हमारी नीति और नियत बदल जाएगी
हमारा दैवीत्व भाग जग जायेगा
तब तो उत्तराखण्ड नाम सार्थक हो जायेगा
तो राजन्
तुम तत्व ज्ञानी हो
ऋषि काल देवता की आत्मा
तुम में समा गयी है
तो आर्य पुत्र
बताओ
भविष्य के गर्भ में
इन प्रश्नों का क्या उत्तर होगा
जब पहाड़ का जनमानस
अभाव की उकाल पर हांपता हुआ
सुनहरे भविष्य की ओर निहारता
जब उत्तराखण्ड की काण्ठी का जाप करेगा
तो दरिद्रता के टाट पर बैठा
शून्य की ओर
ताकता रह जायेगा
हे राजन् (उत्तराँचल से उत्तराखंड )