सावधान आदमी!
हिमालय जैसा मत बनो
हिमालय के सिर पर मत चढ़ो
हिमालय से आगे मत बढ़ो
आत्मघात की इस
नादान कहानी को
इतनी तत्परता से मत गढ़ो
समय के निर्मम
संकेतों को पढ़ो
और 'भीतर' की ओर मुड़ो-
असली हिमालय भीतर है
असली शिवालय भीतर है
भीतर के हिमालय को
पाकर ही
तुम बाहर के
हिमालय को समझोगे...
सावधान आदमी!
हिमालय के सिर पर मत चढ़ो
हिमालय को सिर पर संवारो
जीवन को गंगा सा निखारो
मन को मन्दिर सा बनाओ
विचारों में लाओ-
हिमालय के निष्पाप
समीर सी ताजगी
मन को बनाओ-
उतुंग, उदात्त मानसरोवर
जीवन की कठिनाइयों का दर्शन
हिमालय मे दरकती...
चट्टानांे को देखकर समझोे-
'यहाँ कुछ नहीं टिकता...'
दुख-सुख के सारे सबक
त्याग, तपस्या, संयम और
धैर्य की सारी देशनाएं
मुस्कुराते हिमालय से सीखो
हिमालय के संन्यासी शिखरों
को देखकर सीखो-
कि सूरज का सानिध्य पाकर
किस तरह हर चीज
सोने में बदलनी चाहिए...
पहाड़ के लोगांे!
'तुम्हारी' आपदा पर
अगर सचमुच कोई रोया है
तो हिमालय रोया है...
तुम्हारी नादानियों पर
पहली बार उसने
अपना संयम खोया है...
आदमी तुम कब समझोगे-
हिमालय की निश्छलता में
सिर्फ 'हिमालय' ही टिकता है
'गन्दगी' को गंगा
बहा ले जाती है
प्रशान्त की निर्मम गहराइयांे तक...
आहत हिमालय को
मनाओ लोगों!
हिमालय राहत ही नहीं,
राह भी है, रूह भी है
रूद्र भी है...रमणीय भी है
हिमालय के इस रमणीय रूप को
अन्तर्मन में बसाकर
तुम जिस भी 'एवरेस्ट' पर चढ़ोगे
तुम्हे 'उतरना' नहीं पडेगा...