कवि


क्रांति का आ“वान कर कवि,
भ्रांति का अवसान कर कवि,
त्रस्त होकर अस्त होते,
मनुज का उत्थान कर कवि।
 शांति है, श्मशान सदृश
 आँधियाँ भी सुप्त हैं ये,
 संभल, सम्बल सत्य का ले,
 चाहती निर्देश हैं ये,
 युग पुरुष तू सद्य हो/युग
 का पुनः निर्माण कर कवि।
रूढ़ियाँ घातक मिटा दे,
जागरण जग में जगा दे,
अभावों से ग्रसित मानव को
कमर कस कर उठा दे,
संगठन की शंखध्वनि कर,
स्वर्ग का निर्माण कर कवि।
 विगत का सब ज्ञान ले तू,
 विषमता को जान ले तू,
 और थोथी प्रगति से,
 संघर्ष करना ठान ले तू,
 पथ दिखा ओ विश्व के शिव,
 जगत् का कल्याण कर कवि। ु
 ;रचना काल- 1951द्ध