“मेरी लाडो“ (कहानी)

                       


  चंदर अस्पताल के बैड पर पड़ा कराह रहा था। डांक्टर ने उसके हाथ पर तीन सुईयां ठूंस रखी थी , एक सिरिंच पर ग्लूकोज लगा था, बाकी की दो सिरिंच असहाय सी पड़ी, जैसे की नयी दवाई लीलने का इंतजार सा कर रही हो। चंदर का वजन इन दिनों में बीस किग्रा घट गया था। शरीर धीरे धीरे रक्त के अभाव में श्वेत रंग धर रहा था। आंखों के नीचे स्याह धब्बे पड़ चुकेे थे। चंदर बैड पर लेटे लेटे छत पर लगे पुराने हो चुके पंखे को देख रहा था, मकड़ी के जाले से घिरा यह पंखा दीन हीन अवस्था में डरते डरते अहसान स्वरूप गर्म हवा फैंक रहा था। चंदर कभी पंखे के खड़खड़ाते पंखों को घूर रहा था, तो कभी ग्लूकोज की बोतल से टप टप गिरते बूंदों को।


   सामने बैड पर उदास बैठे मां बाप से चंदर नजरें नहीं मिला पा रहा था। मां कभी बदहवास सी अपने सुबकते पति को देख रही थी , तो कभी अस्पताल के बैड पर निढाल पड़े चंदर को।   अब ब्लड तत्काल कौन देगा , बस यही सवाल मां बाप के कलेजी को निचोड़ रहा था। इकलौता बेटा था, चंदर। कितनी मिन्नतों से प्राप्त हुआ था। मां काली के थान में सिर झुकाने, बकरी की बलि देने, मजार पर हरी चादर चढ़ाने के साथ साथ ना जाने कितने मठ, मंदिरों , ईष्टों का सुमिरन किया था। मां तो सप्ताह में चार व्रत रखती थी। कितने नीम हकीमांे के पास जाकर ईलाज करवाये थे, सभी कहते थे कि शर्तिया ईलाज होगा ...बहरहाल उम्र के लगभग अंतिम पड़ाव में दोनों की प्रभु ने सुन ली । चंदर का जन्म हुआ। कितना खुश था परिवार। चंदर से पहले दो बेटियां जन्म ले चुकी थी, उसके बाद चार बार तो मां ने अबार्शन करा  दिये थे, निरभाग डांक्टर हर बार बोलता कि बेटी है। और हर बात अर्बाशन कराने के हजारों रूपये बसूल लेता। इन डांक्टरों के लिये भू्रण हत्या चेकअप करना कानूनी अपराध है, ये स्लोगन भी कहीं कारगर सिद्ध नहीं हुआ। रात के अंधेरे में मां के गर्भ से तीन या चार माह का बेटी का भ्रूण धरती पर आने से पूर्व कुचला और मसला जाता रहा। वो बेटी गर्भ में चीखती रही, चिल्लाती रही, दर्द से बिलबिलाती रही, लेकिन ना ही अभागी मां पर कोई असर पड़ता ना बदजात डंाक्टर पर । पुत्र चाहत की लालसा और तथाकथित समाज के वंश बढ़ाने जैसे ताने बाने ने इन दर्दनाक चीखों को भी हमेशा के लिये शांत कर दिया।


   तब लाला अमरनाथ की बड़ी बेटी का जन्म हुआ, तो लोगोें की बधाईयां आने लगी थी,  चलो, घर में लक्ष्मी का प्रवेश हो गया। कोई कहता कि बड़ी किस्मत वाले हैं आप, जो घर में सुंदर बेटी ने जन्म लिया है। प्रत्युत्तर में दोनों फीकी हंसी जरूर हंसते। लेकिन मन ही मन दोनों को बेटी के जन्म को लेकर कोई उत्साह नही था। कुछ सालों बाद एक बार फिर लाला के घर में बेटी की किलकारी गूंज गई। लगा जैसे कि कश्मीर की शांत वादियो में बम फूट गया हो। दूसरी बेटी के जन्म पर बधाई देने वालों की संख्या घट गयी। कोई कहता कि क्या हुआ तो, बेटी  हुयी है, बेटे और बेटी मंे कोई अंतर नही है, कोई कहता कि बेटियां मधुर स्वभाव की होती हैं, बेटे क्रूर होते हैं। लाला समझ जाता, कि बस ये तो केवल मन रखने वाली बातें हैं। दो बेटियों के होने के बाद लाला कई बार अपनी पत्नी से पिटाई भी कर लेते। जिस लाला ने कभी भी नशे के नाम पर सुपारी तक ना चबाई हो, वा आये दिन शराब के नशे में ही धुत्त रहता। नशा जब समझ पर तारी होता , तो अपनी दोनों बेटियों को भी पीटने लगता। कई बार तो लड़कियों को घर से धक्के मारकर निकाल देता।


    रात रात भर दोनों बेटियां डर के मारे बरामदे में ही एक दूसरे के सहारे रात्रि गुजारते, पिता के सोने के बाद जरूर मां उन्हें अंदर बुलाती, बच्चियां मां के सीने पर चिपटकर सो जाती। मासूम बच्चियों को ज्ञात ही नही था, कि उसके पिता को गुस्सा किस बात का आया है। जब थोड़ा समझदार होने लगी , तब ज्ञात हुआ कि बेटे और बेटी में फर्क होता है, बहू के लिये लड़की तो चाहिये, लेकिन पैदा करने के लिये बेटा ही चाहिये। नवरात्रों में मां काली को प्रसन्न करने और कन्या जमाने के लिये नौ बेटियां चाहिये, लेकिन गर्भ में भ्रूण केवल बेटे का चाहिये। पाणिग्रहण संस्कार के महासंकल्प में ठाकुर के शंकोदकेन स्नान के लिये बेटी का अंगूठा चाहिये, लेकिन मां के गर्भ में बीज बेटे का ही रोपित होना चाहिये। हल्दीहाथ में ओखली में हल्दी और अक्षत कूटने के लिये कन्यायें चाहिये, लेकिन घर में बेटों की किलकारी गूंजनी चाहिये, ये वंश बढ़ाने का शुभ संकेत है। दोनों बेटियां समझ नहीं पा रही थी, कि आखिरकार बेटियां तो सबको चाहिये, लेकिन अपने घर में उनकी किलकारी हलाहल सदृश क्यों होने लगी हैं। क्या लोग महान गार्गी, शकुंतला, माता अनुसूया को विस्मृत कर चुके हैं। आधुनिक युग की बछेन्द्री पाल, हिमा दास , सुषमा स्वराज कितने नाम गिनायें क्या इन्हें भी विस्मृत किया जायेगा।


    लाला की दोनों बेटियांे पढ़ने में अव्वल थी। हाईस्कूल की परीक्षा में एक बेटी ने तो राज्य में मैरिट में अच्छा स्थान प्राप्त किया था। दूसरी अभी आठवीं में अध्ययनरत थी। इस दौरान लाला अमरनाथ ने अपनी पत्नी के चार बार आंबर्शन करवा दिये, चारों ही बार बेटियां गर्भ में पल रही थी ।  लाला की पत्नी सूख कर कांटा हो गयी थी, हड्डियां देह को फाड़कर बाहर आने लगी थी। चार चार बार का आंप्रेशन उसके गर्भाशय को संकुचित कर चुका था, लेकिन  हर बार लाला की जिद के आगे मां बेसहारा सी झुक जाती। आखिरकार कई दवाईयां निगलने के बाद कई मिन्नतें मांगने के बाद लाला के गर्भ में बेटे का बीज रोपित हो गया। लाला मारे खुशी से जैसे पागल हो गया।


   आखिरकार पापी धरा पर लाला के बेटे का जन्म हो गया। बेटे के जन्म के बाद बेटियों की स्थिति अधिक खराब होने लगी। लाला बात बात पर अब बेटियों का डंाट देता था। बेटे को कोई तकलीफ ना हो, इसके लिये दोनों बेटियों की तैनाती कर दी थी। भूलवश कभी अगर बेटा रोने लगा तो दोनों बेटियों की शामत आ जाती। अपने भाई के आने पर दोनों बेटियों प्रसन्न तो थी, लेकिन तब उन्हें अकारण डांट पड़ती तो वो सोचती थी, कि सभी फसाद की जड़ यही है। बेहतर होता कि इसका प्रार्दुभाव ही ना होता।


   दिन बीतने लगे। लाला की एक बेटी ने महज अट्ठारह साल की उम्र में एवरेस्ट चढ़कर इतिहास में नाम दर्ज कर दिया, तो दूसरी लड़की एसिस्टेंड कमांडेट बन गयी। लाला प्रसन्न तो बहुत था। इधर बेटे की राजसी परवरिश के कारण वो कुसंगति में फंस गया। छोटी सी उम्र में नशे की गिरफ्त में आ गया। कई बार प्रधानाचार्य ने लाला को बुलाकर उसकी शिकायत भी कर दी। लेकिन बाजी हाथ से निकल गयी थी, कई बार समझाने के बाद भी बेटा समझ  नहीं पा रहा था। अधिक डंाटने पर घर से भागने की धमकी भी बराबर मिल रही थी। पुत्र मोह के कारण लाला उसकी गलती को नजर अंदाज कर रहा था। लेकिन नशे के कारण धीरे धीरे बेटा हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया था। कई बीमारियां घेरने लगी थी। आज हालात यह रह गयी कि इकलौता बेटा अस्पताल पर दो माह से बैड में निढाल पड़ा , मरने का इंतजार कर रहा था। अपने बेटे को तिल तिल मरता देख दोनों का हृदय विदीर्ण हो चला। इधर डांक्टर ने उन्हें जल्द ही खून का इंतजाम करने को कहा। दोनों बदहवास से कभी इधर भागते कभी उधर भागते लेकिन खून नसीब नही हुआ, कई रिश्तेदारोें से तत्काल खून की मांग की , लेकिन कोई भी तैयार नही हुआ। लाला ने कभी भी किसी रिश्तेदार को निराश नहीं किया था, जब जब भी उन्हांेने किसी चीज मी मांग की, लाला तत्काल भेंट कर देता, लेकिन दुख की इस घड़ी मंे कोई भी उसके इकलौते  चिराग की धड़कन में निरंतरता कायम रखने के लिये बूंद भर खून नहीं दे रहा था। दोनों की आंखें निराशा से भर गयी। आंखों की कोरों से आंसू अनवरत बहने लगे।


   कोई भी पथ दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। चंदर के हाथ पंाव कांपने लगे , उसकी आंखों की पुतलियंा लगातार चैड़ी होती जा रही थी, चेहरे का रक्त ना जाने कहां गायब होने लगा था, श्वेत वर्ण सम्पूर्ण शरीर में जैसे कि पांव पसारने लगा था, लाखों रूपये लाला बेटे को बचाने में गंवा चुका था। लाला सोच रहा था, कि कभी भी उसकी दोनों बेटियों ने किसी भी चीज की जिद नहीं की, चाहे बाल्यकाल में हो या फिर जवानी में। और बेटे की जिद के आगे वे हमेशा नतमस्तक रहते। सूक्ष्म संसाधनों में दोनों बेटियो में अध्ययन किया था, और आज उस मुकाम पर पहुंची हैं, जिन्हें पाने के लिये हजारों हजार बेटियों प्रतिदिन मेहनत करती हैं। लाला के दिमाग ने कार्य करना बंद कर दिया था। लाला की पत्नी तो अपने बेटे के कभी पंाव तो कभी हाथ दबाने लगती, लेकिन बेटे की स्थिति गंभीर बनी थी। इधर चिकित्सकों तथा नर्सों की टीम बेटे के इर्द गिर्द जमा होने लगे।


   चंदर की अस्वस्थता की सूचना पाकर कुछ देर बाद लाला की दोनों बेटियां बदहवास सी अस्पताल में पहुंची, जैसे ही ज्ञात हुआ कि खून की जरूरत है, तो तत्काल उन्हांेने खून देने का मन बनाया । संयोग से एक बेटी का खून बेटे के खून से मैच कर गया। लाला और उसकी पत्नी कभी बेटियों को देखते तो कभी धीरे धीरे मौत की आगोश में जाते बेटे को देखते। चिकित्सकों ने बेटे के ग्लूकोज के स्थान पर खून की बोतल चढ़ा दी, बूंद बूंद रक्त जैसे ही उसके शरीर में प्रवेश होता रहा, उसकी आंखें सिकुड़ने लगी। सांसे धीरे धीरे स्थिर अवस्था में आने लगी। एक घंटे बाद चंदर की आंखों में खुशी के अंासू थे। वो एकटक अपनी दोनों बहिनों को देख रहा था। लाला और उसकी पत्नी को तो जैसे अपनी बेटियों में साक्षात भगवान का अवतरण दिखाई देने लगा। जब शब्द औठों से नहीं फूटे तो आंखों से जलधारा बहने लगी। लाला को आज बेटियों पर की गयी प्रताढ़नायें याद आने लगी। शब्द जब निर्मित नही होते हैं, तो व्यक्ति भावनों की अभिव्यक्ति के लिये किसी का सहारा लेता है। कमोबेश लाला की स्थिति भी ऐसी ही थी। जब कोई सहारा नहीं मिला तो खिड़की के लगकर फूट फूट कर रोने लगा। इधर डांक्टर की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग कर दी, डांक्टर ने कहा कि खुशी की बात है, कि आपके बेटे को होश आ गया। अब वो खतरे से बाहर आ गया है। दोनों बेटियां अपने भाई के माथे को चूम रही थी। और भाई की आंखों से अश्रुधारा फूटने लगी, जैसे कि प्रण ले रहा हो कि आज के बाद कभी भी नशे की चीजों का हाथ नहीं लगायेगा। लाला और उसकी पत्नी के मुंह से बोल नही फूट रहे थे। कितनी बार लाला बेटे की चाह में बेटियों को गालियां बक चुंका था। लेकिन आज बेटियों ने अपने भाई को बचाकर जैसे कि उन्हें पुर्नजन्म दे दिया हो। लाला ने आज पहली बार दोनों बेटियों के माथे पर चुंबन  अंकित कर कहा मेरी लाडो आज तुम नही होती तो अब तक वो पुत्र शोक से व्यथित होते। इधर चंदर को छत पर रींगता पंखा नर्म और ठंडी हवायें देने लगा था, तो लाला को अपनी बेटियों में साक्षात देवी नजर आने लगी थी।