मिथ्या मकर संक्रांति

हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति का एक अति महत्वपूर्ण पर्व है मकर संक्रान्ति, यह दिवस चार मुख्य कारणों से एक अति महत्व का दिन है। इस दिन सूर्य एक ही साथ चार विशेष कार्य करता है। इन कार्यों को जानने के लिये जानना जरूरी है-1) पृथ्वी का अपनी धुरी पर सूर्य के सम्मुख पूरा-पूरा घूम जाना और -2) सूर्य के चारों ओर एक अण्डाकार वृत्तीय पथ (क्रान्तिवृत्त) में पूरी यात्रा करते हुये पूरे एक वर्ष बाद फिर इस ही विन्दु पर पहुंच जाना। इस दिन पृथ्वी की तिर्यकता अधिकतम हो जाया करती है और इस कारण से ही सूर्य का उत्तर पथ पर प्रस्थान अर्थात उत्तरायण अनिवार्य हो जाता है। अयन का अर्थ होता है मार्ग अस्तु उत्तरायण अथवा दक्षिणायण का अर्थ हुआ उत्तर अथवा दक्षिण मार्ग पर। जिस बिन्दु से यह उत्तरायण घटना घटित होती है ठीक उसी बिन्दु पर मकर संक्रान्ति होती है। इसमें बहुत से शास्त्रीय एवं प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। संक्रान्ति का अर्थ है संचरित या प्रसरित होना अथवा एक नये आयाम में अग्रेसित हो जाना और मकर से तात्पर्य है पृथ्वी पर अवस्थित मकर रेखा और भचक्र पर अवस्थित क्रान्तिवृत्त का वह भाग जो पृथ्वी के मूल प्रस्थान बिन्दु से ९/१२ या २७० अंश की दूरी पर है। सूर्य उपस्थिति का इस बिन्दु पर  बढ़ना और मकर रेखा पर लम्बवत परस्थिति में आ जाना। 30 अंश के ज्यामितीय कोण को राशि के नाम से जाना जाता है अर्थात ३०गुणा९ =२७० अंश पूरे करके सूर्य को अगली अर्थात २७०-३०० अंश वाले भाग (राशि) में प्रविष्ट होना होता है। यही घटना है मकर संक्रान्ति। पृथ्वी का ठीक इस स्थिति में हो जाना कि वहाॅं से-ऽ सूर्य ठीक मकर रेखा पर लम्बवत हो जाये एवं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि यदि उस क्षेत्र में कोई व्यक्ति खडा हो तो उसका छाया लोप होगा अर्थात उसकी छाया नहीं दिखेगी।
1-सूर्य का क्रान्ति वृत्त पर अधिकतम क्रान्ति प्राप्त करके उत्तराभिमुख चलना दिखने लगे, यही घटना है उत्तरायण होना। अधिकतम तिर्यक स्थिति के कारण सूर्य के सम्मुख पृथ्वी का एक हिस्सा    अधिकतम होता है। जिधर अधिकतम हिस्सा होता है उस हिस्से में दिन अधिकतम बड़ा और दूसरे हिस्से की तरफ अधिकतम बड़ी रात होनी चाहिये। 2-देवव्रत, भीष्म पितामह का “माघोऽअयम सम्प्राप्तो मासः श्रेष्ठः युधिष्ठरः“ यह वचन इसी घटना से प्राप्त माघ मास से है। 3-अस्तु सूर्य इसी दिन के बाद माघ मास या वैदिक तपस मास प्रारम्भ करता है। यह माह उत्तरायण का ही नहीं शिशिर ऋतु का भी प्रथम मास होता है, अर्थात इस दिन शुरू होते हैं उत्तरायण, शिशिर ऋतु और माघ अथवा वैदिक तपस मास। 4-मकर संक्रान्ति माघ या वैदिक तपस मास, शिशिर ऋतु और उत्तरायण का शुभारम्भ यही हैं वे पूर्वोक्त चार कार्य जिनको आज सूर्य एक ही दिन सम्पन्न्ा करता है और यह दिन आज की तारीख में २२ दिसम्बर का बनता है। १४, १५ अथवा १ से लेकर ३१ जनवरी तक के किसी भी दिन में नहीं।
कुछ लोग मकर संक्रान्ति के प्रति भ्रम में हैं और अन्य को भी भ्रम में बनाये रखना चाहते हैं। उनका कहना है कि उत्तरायण तो २२ दिसम्बर को ठीक है परन्तु मकर संक्रान्ति तो १४ जनवरी को ही होती है। यह बात शास्त्र प्रमाणों, गणितीय तथ्यों और दृग्गणित सिद्धान्तों के विपरीत है। उस कल्पना प्रसूत अवधारण पर आधारित है कि राशियां मेष, वृषभादि भेड़, बैल, केकड़ा, मटका, मछली आदि जैसी आकृतियाॅं बनाये हुये हैं और यह भी की प्रत्येक राशि निश्चित नक्षत्रमान (सवा दो नक्षत्र) के अनुसार हैं। प्रत्यक्ष और दृग्ग (अर्थात देखने से) प्रमाण है कि कोई भी नक्षत्र समान क्षेत्र में नहीं है १३ अंश २०कला का तो एक भी नक्षत्र नहीं है। जो विद्वान प्रत्येक नक्षत्र को १३ अंश २० कला के परिमाप से जानता है वह वास्तव में खगोलिकी (एस्ट्रोनोमी अथवा खगोल विद्या) के ज्ञान से शून्य है। वैदिक ही नहीं बहुत-बहुत बाद के पौराणिक रचनाकारों ने भी अपने-अपने तरीके से इस सत्य को लोक पहुचॅं में रखने का प्रयास किया है कि नक्षत्र समान नहीं हैं। पौराणिक कथाओं में प्रजापति की २८ कन्याओं से चन्द्रमा के विवाह का प्रसंग है और चन्द्रमा पर यह अभियोग स्पष्ट किया गया है कि वह सभी पत्नियों को समान रूप से समय नहीं देते। इस प्रसंग में प्रजापति की २८ कन्यायें २८ नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करती लगती हैं। स्पष्ट किया गया है कि चन्द्रमा सभी नक्षत्रों में समान रूप से समय व्यतीत नहीं करता है। यह प्रसंग जटिल ज्योतिषीय तथ्य को सरल कहानी में प्रस्तुत करने के सिवा और कुछ नहीं है। राशियां अवैदिक तो हैं ही परन्तु राशियों का नक्षत्रों से एक ही तरह का सर्वकालिक सम्बन्ध तो असम्भव है। इसीलिये भेड़, बैल, केकड़ा, मटका, मछली आदि की पहचान से राशियों को नियत करना गलत ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से पाप है। वेद में २८ नक्षत्र स्पष्ट हैं (अथर्ववेद १९/७) लेकिन फलितज्योतिष की सिद्धि के लिये ३६० की सम विभाजक संख्या २७ को जबरन लिया गया है, अस्तु ये राशियां नहीं अपितु क्रान्तिवृत्त की भ्रामक व्याख्या है। सूर्य सिद्धान्त मानाध्याय श्लोक १०- 
भानोर्मकरसंक्रातेः षण्मासा उत्तरायणम्।
कर्कादेस्तु तथैव च षण्मासा दक्षिणायणम्।।
अर्थ-भानोर्मकरसंक्रातेः (भानु अर्थात सूर्य की मकर संक्रान्ति से हैं) षण्मासा उत्तरायणम ( उत्तरायण के माघ, आषाढ़ आदि ६ महीने) कर्कादेस्तु तथैव च (ठीक उसी प्रकार कर्क संक्रान्ति से जानिये) षण्मासा दक्षिणायणम ( दक्षिणायण के ६ महीनों को)। ऐसे अन्य भी कई प्रमाण विष्णुपुराण, शिवमहापुराण और वराहमिहिरादि की कृतियों से दिये जा सकते हैं जो घोषणा पूर्वक स्पष्ट करते हैं कि सूर्य की मकर संक्रान्ति और उत्तरायण प्रारम्भ करने की तिथि एक ही है, दो अलग-अलग नहीं। इस सब के अतिरिक्त प्रत्यक्ष प्रमाण से भी, जो कि छायार्क साधन से देखने में आता है, कोई भी जिज्ञासु स्वयं जान सकता है कि दक्षिणायण या उत्तरायण सूर्य के ९० अंश या फिर २७० अंश की स्थिति पर ही संभव है और इसीलिये दृष्टव्य भी है। यही वास्तव में कर्क एवं मकर संक्रान्तियों का गणितीय अर्थ भी है। श्री मोहन कृति आर्ष तिथि पत्रक-२०६८ के पृ० २ पर यह गणित पूरी स्पष्टता से दी गई है।
शिवमहापुराण में भगवान शंकर ने जो उद्घोष किया है वही हिन्दुओं के लिये शिरोधार्य होना चाहिये और उसमें संक्रान्तियों के महत्व को तो उजागर किया ही गया है साथ ही उत्तरायण /दक्षिणायण अयनों (मकर एवं कर्क संक्रान्ति) तथा सम्पात तिथियों (मेष एवं तुला संक्रान्ति) को विषुव ( वसन्त एवं शरद विशुव ) से जोड़कर कहा गया है। प्रमाण के लिये देखें- 
 तस्माद् दश गुण ज्ञेयं रवि संक्रमणे बुधाः।
 विषुवेतद् दशगुणमयने तद् दशस्मश्तम।।
वराहमिहिर कृत पंचसिद्धान्तिका-३/२५ का कथन “उद्गयनम् मकरादौ ऋतवः शिशिरादयश्च सूर्य वशात् द्विभवनं कालसमानं दक्षिणमयनं च कर्कटकात।।“ भी उत्तरायण, मकर संक्रान्ति और शिशिर ऋतु के प्रारम्भ को एक ही दिन में घटित होना निरूपित करता है। इन श्लोकों की व्याख्या को समझने पर सभी को स्पष्ट हो जाना चाहिये कि मकर संक्रान्ति जनवरी में न कभी हुई है, न होगी और न हो सकती है। वह तो दिसम्बर में होती है, हो सकती है और होती रहेगी।