हल-बैल गये,
पानी गया, जंगल गये
तुम गये/ तुम्हारे कल गये...
'धार' के नरसिंग,सड़कें खा गईं
सीढीनुमा खेतों से
मन के मंगल गये...
घुघुति के कण्ठ सुन रोती रही
पुरखों की कोख को बोती रही
संजो कर रखे हैं अपने स्वाद
इन बीजों को संभाल कर रखना
बेटे लौट आना...
अपनी जड़ों को देख जाना
मेरे सीने में भरभराती रही वर्षों
छोड़ कर जा रही हूँ वह आग
देखने आना...
इस वीरान घर की
चिमनी जलाना
देशी बोली में
अपने बच्चों को
मेरे बारे में बतलाना..
पलायन