रंग राम का


'उत्तररामचरित' भवभूति द्वारा लिखित संस्कृत नाटक की कथावस्तु और संवादों के चारों ओर एक उत्तर-आधुनिक राम बनाने का प्रयत्न रंगकर्मी बौठियाल कर रहे हैं। सत्यनारायण कविरत्न द्वारा रूपान्तरित कथावस्तु भवभूति को नये रूप में प्रस्तुत करती है / पच्चीस मिनट के 'पायलट' को देखकर सम्पूर्ण नाटक पर निर्णय देना ठीक नहीं है / परन्तु नाटक के सर्वोत्कृष्ट संवाद, दृश्य देखकर कुछ फुट नोट्स दिये जा सकते हैं।
'रामकथा' एक स्थापित कथानक है, इसीलिये कथावस्तु को लेकर कोई उत्सुकता पैदा नहीं हो सकती / प्रस्तुत नाटक में राम एक साधारण संसारी की भूमिका में सामने आते हैं / उन्हें एक संवेदनशील मनुष्य, एक भावुक, प्रेमी पति के रूप में उतारकर प्रेक्षक से एक नया संवाद बनाने का प्रयत्न किया गया है / आज जबकि रामलीलाओं का सुनहरा दौर समाप्ति पर है उसमें रामकथा को नई वेशभूषा में उतारकर, नई पीढ़ी तक पहुँचाना, संस्कृति के इस प्रमुख स्तम्भ, इस रामकथा को एक आधुनिक रंगकर्मी, एक निर्देशक की दृष्टि से पुनः नये उपकरणों, नये संवादों, नई कविताओं, नये संगीत के साथ मंच पर उतारना एक चुनौती है / क्योंकि रामकथा जैसे विषय में प्रेक्षक हमेशा तुलनात्मक दृष्टि से मंच के सभी कोणों को नापेगा / बौंठियाल जी ऐसे कठिन दोलन वाले तराजू पर बैठ रहे हैं।
राम ने जिस कारण सीता को वनवास दिया... पायलट में स्पष्ट नहीं हुआ / पर उनका रुदन, विलाप, पश्चाताप ही नाटक का मुख्य विषय लगता है / एक सुर में रोना, प्रेक्षक को आतंकित कर रहा है / न्याय और संवेदना, स्वार्थ और दायित्व के बीच झूलते निर्णय पर सटीक टिप्पणी करता नाटक ही प्रासंगिक और कालजयी होता है, श्रम की बूंदें निर्देशक से पहले लेखक के माथे पर छलकती है / लोकोपवाद से उपजा भय और संवेदना के बीच राजा के दायित्व क्या हैं? / नैतिकता और न्याय का हस्तक्षेप जीवन मूल्यों को किस तरह परिभाषित करता है, इसी मानसिक द्वन्द्व, इसी संघर्ष को नाटक का मुख्य विषय होना चाहिये न कि प्रेम का एकालाप / सीता के निर्वासन पर बु(िजीवियों, जनता का प्रतिरोध भी दृष्टिगोचर होना चाहिये ताकि राम को अपने निर्णय देने के लिये तर्क देने पडे़ं.. दशरथि राम ने किस तरह सत्ता का चरित्रा गढ़ा, अपनी भावनाओं को राख करके कैसे एक राजा को चैबीस घण्टे अग्नि में जलना पड़ता है, यही संदेश आज प्रासंगिक है। सार्वजनिक रूप से निन्दा पाकर भी किस तरह राम ने यह कठिन निर्णय लिया / लोकमत के सम्मान के लिये राजा राम ने अपना मुकुट कभी आंसुओं से भीगने नहीं दिया / यही संदेश, ऐसे नाटकों द्वारा आज की राजनीति को दिया जा सकता है / छोटे स्वार्थों को अपने अभिनय / निदेशन के लैन्स से बड़ा करना, प्रेक्षकों में दृष्टिदोष उत्पन्न करना है / अपनी व्यथा पर रोना करुणा नहीं है / महापुरुष दूसरे के दुख पर रोते हैं / अपनी व्यथाओं को अपने ही पैरों से कुचलकर जनता के लिये मर्यादा स्थापित करने वाला वह पुरुषोत्तम... इस तरह नहीं रो सकता था / यह हम संसारियों की कल्पना है।
पिफर भी कथावस्तु आकृष्ट करती है / सूत्राधार बने अभिषेक, उत्कृष्ट संवादों को मदारियों की तरह बोल रहे थे / सीता, तुतलाकर बोलती हैं / रामलीलाओं के लल्लू निर्देशकों ने हमारो महापुरुषों की मंच पर जो दुर्गति की है उसी कारण आम कलाकार सीता के अन्दर का 'लोहा' नहीं देख पाता। सीता जैसी पात्रा को गढ़ने के लिये बाल्मिकी जैसी तेजस्विता चाहिये / नुक्कड़-नाटक के पात्रों को नाटक के 'काल' की गरिमा समझ कर मंच पर उतरना चाहिये।
स्वस्तिवाचन व संस्कृत भाषण करते बच्चे प्रतिब( लगते हैं। बौंठियाल जी की संवाद अदायगी, स्मित, उनका अभिनय सन्तुष्ट करता है। तमाम खामियों को एक ओर ठेलकर वे नाटक को अकेले ही उठा सकते हैं, उनमें क्षमता है... उनका अंग संचालन तक संवाद स्थापित करता है।
नाटक में काव्यात्मक संवाद आंचलिक प्रभाव ही छोड़ते हैं / मात्रा हिन्दी ही प्रेक्षकों को सतयुग में ले जाने में सक्षम है। शम्बूक कथा अनावश्यक है परन्तु प्रगतिशीलों द्वारा तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की गई प्रचलित शम्बूक कथा को पुनः मंच पर प्रस्तुत करके यह नाटक नई पीढ़ी को भारतीय समाज का सही चित्रा भी देगी / वामपंथियों की बु(ि धोने का यही सही उपाय है / संगीत पक्ष बहुत प्रबल है। संगीत, नृत्य, प्रकाश का प्रभाव.... प्रेक्षकों को उकताने से बचायेगा।
रोता हुआ, पछताता हुआ निरीह राम तो हम वर्षों से लोकनाटकों / रामलीलाओं में देख रहे हैं / यह पुराना राम आंसुओं से भीगा लगता है / खण्डित है / मित्रों पर आश्रित है / यहां तक कि रावण को मारने पर भी लगता है कि वह हारा हुआ मानव है, पराजित यो(ा है।
कहाँ है वह दृढ़निश्चयी राजा, कहाँ है वह चैदह वर्षीय निर्भीक राजपुत्रा जो भयावह वनों में सिंह विचरण करता है / कहाँ है न्याय के लिये समस्त बन्धनों को तोड़ता वह युवा सम्राट / कहाँ है वह महाचाप पर भीषण टंकार कर भूत-भविष्य को कंपाने वाला क्षत्रिय... उस राम की पुनस्र्थापना आज हो, तो बात बने। ु