ऋग्वैदिक सरस्वती


भारतवर्ष में वीणावादिनी सरस्वती की उपासना सदा से ही होती आई है, कवि कुलगुरू महाकवि कालीदास ने सरस्वती की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया था, उन्हीं की कृपा से वे महाकवि बने, कालीदास के अतिरिक्त भारवि, दंडी, माघ आदि संस्कृत के प्रतिष्ठित कवियों ने सरस्वती की आराधना की है। जिस उत्तर मीमांसा दर्शन (ब्रहमसूत्र) का विभिन्न आचार्यांे, जिनमें सर्वप्रथम आद्य जगदगुरू श्री शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य, श्री मध्वाचार्य, श्री निम्बकाचार्य और श्री वल्लभाचार्य ने अपने-अपने दृष्टिकोण से भाष्य कर उन भाष्यों के आधार पर सम्प्रदायों की स्थापना की है। उस ब्रह्मसूत्र के रचनाकार भगवान वेदव्यास ने भी अपने महान ग्रन्थ महाभारत के प्रारम्भ में भगवती सरस्वती की श्रद्धा-भक्ति से वन्दना की है। सरस्वती की महिमा और लीलाओं को धर्मग्रन्थों में यथेष्ट स्थान प्राप्त है। समस्त वांग्मय, समस्त कलाएं और सम्पूर्ण विज्ञान उन्हीं का वरदान है। माघ मास में पड़ने वाले पंचपर्वाे में से एक बसंतपंचमी मूल रूप से विद्या की अधिष्ठात्री देवी, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती का जन्मदिन है। स्कन्दपुराणान्र्गत मार्कण्डेयमुनि के अनुसार 'धर्मारण्य में सत्यलोक से सरस्वती देवी को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पुण्यमयी द्वादशी तिथि (श्री भुवनेश्वरी जयन्ती श्री वामन जयन्ती) को धर्मारण्य के अन्तर्गत द्वारावती तीर्थ में उतारा था।
नदी के रूप में सरस्वती आर्यो की देव नदी कही गई है। ऋग्वेद में गंगा, यमुना और सरस्वती के नाम आये हंै, यहां तक कि नदियों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए 'नदी-सूक्त' नाम से पृथक मण्डल दिया गया है। ऋग्वैदिक सरस्वती रहस्योपनिषद् की दसवीं ऋचा में श्रद्धापूर्वक सरस्वती को सर्वश्रेष्ठ माता, सर्वश्रेष्ठ नदी एवम् सर्वश्रेष्ठ उपास्य देवी के रूप में परम कल्याणकारी मानते हुए सम्बोधित किया गया है। मान्यता है कि सरस्वती हिमालय क्षेत्रवर्ती गन्धमादन क्षेत्रान्तर्गत बदरीकाश्रम (श्री बदरीनाथ) के समीपस्थ माणा ग्राम के ऊपरी शृंगों से निस्तुत है, सरस्वती के बायंे तट पर महर्षि वेदव्यास की वह गुफा भी है जहां उन्होंने महाभारत नामक ग्रन्थं की रचना सहित अष्टादश पुराणों का प्रणयन भी किया था। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर पुरातत्वविद्, भूगर्भ वैज्ञानिक और भू भौतिकी विशेषज्ञों का कहना है कि कैलाश मानसरोवर से कच्छ (गुजरात) तक बहने वाली सरस्वती नदी लगभग चार हजार साल पहले लुप्त हुई। वैज्ञानिकों ने नदी के बहाव क्षेत्र एवं सहायक नदियों की बेसिन से चीन मूल की सायप्रिनिड मछलियों के जीवाश्म के अध्ययन से यह बताया है कि लुप्त सरस्वती का जन्म 1.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ। अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि चीन मूल की मछली का कच्छ में मिलना यह संकेत देता है कि ऐसी नदी निश्चित तौर पर रही होगी जो मानसरोवर से कच्छ को जोड़ती थी, अध्यनानुसार मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ (गल्फ आफ कच्छ- अरब सागर) पहंुचती थी। इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर (दिल्ली) में 'सरस्वती रिसर्च एण्ड एजुकेशन ट्रस्ट' द्वारा दी गई पूर्व में एक जानकारी के मुताबिक विलुप्त मानी जाती रही वैदिक सरस्वती नदी कुछ ही समय में फिर पूरे वेग से बहेगी। शोध के अनुसार यह नदी उत्तर भारत में (सप्तसिंधु क्षेत्र) बहती थी और हिमालय से निकलकर अरब सागर में मिल जाती थी। इसकी एक धारा उत्तर-पश्चिम में और दूसरी प्रयाग में गंगा-यमुना में मिलकर विलुप्त हो गयी। भूगर्भीय उथल-पुथल से सरस्वती जमीन केे काफी नीचे चली गई है। राजस्थान में इसके प्रवाह मार्ग की 52 किमी. की खुदाई हो चुकी है। इसे वैज्ञानिक तरीके से पुनर्जीवित कर सतह पर लाया जाएगा। राजस्व अभिलेखों के आधार पर हरियाणा सरकार ने भी सरस्वती के प्रवाह मार्ग की 50 किमी0 तक खुदाई की है। शोध वक्ताओं का दावा है कि सरस्वती के पुनजीर्वित होने से उत्तर-पश्चिम भारत के 20 करोड़ लोगों को लाभ होेगा।