सामाजिक सरोकार ही है राजनीति


कुछ वर्ष पूर्व नारद जयंती के अवसर पर देहरादून के सभागृह में आर.एस.एस के प्रखर प्रवक्ता श्री राममाधव ने विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित 'पत्रकार सम्मान समारोह' में मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखे। पत्रकारों का धन्यवाद करते हुये उन्होंने आम चुनावों में पत्रकारों की रचनात्मक भूमिका का स्मरण करते हुये नारद जयंती के इस समारोह को पूरी पत्रकार बिरादरी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर बताया। भाषण की शुरूआत करते हुये उन्होंने अंग्रेजी के एक मुहावरे 'जहां देवता भी जाने से डरते हैं, मूर्ख वहीं भागता है' को उद्धृत करते हुये कहा कि पत्रकार तो बुद्धिमान है पर उसे भी उन्हीं जगहों पर जाना पड़ता है जहां सबसे अधिक खतरा होता है। जहां दंगा हो, तो लोग वहां से डर कर भागते हैं पर पत्रकार को जान जोखिम में डालकर वहीं जाना पड़ता है। उन्होंने नारद का स्मरण करते हुये कहा कि नारद के समय में पत्र-पत्रिकायें तो नहीं थीं पर नारद एक कुशल वार्ताकार थे...उसी परम्परा का निर्वाह एक पत्रकार करता है...वह समाचार का संकलन कर जनता को देता है और उस जानकारी के निर्णय का अधिकार जनता को सौंपता है। उन्होंने कहा कि इस तरह जब भी समाज अपने कालखण्ड का कोई बहुत बड़ा निर्णय लेता है तो मीडिया बहुत ही रचनात्मक भूमिका में होता है..और जिसके चलते समाज में बहुत विस्मयकारी परिवर्तन आते हैं...जैसा कि इस आम चुनाव में हुआ जिसमें कि मीडिया ने दिन-रात एक करके इस राजनीतिक परिवर्तन की नींव रखी...इसके लिये माधव ने समस्त छोटे-बड़े मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस बार के चुनाव में संघ ने भी मीडियाकर्मी की भूमिका निभाते हुये घर-घर जाकर इस राष्ट्र जागरण में हिस्सा लिया क्योंकि यदि इस बार राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन नहीं हुआ तो देश औंधे मुंह गिर सकता है। 
माधव ने चिन्ता व्यक्त की कि आज राष्ट्र की सीमायें सुरक्षित नहीं है...पाकिस्तान की सीमा पर तो फिर भी चैकसी है पर चीन ने कई जगहों पर तो पच्चीस किमी तक घुसपैठ कर ली है परन्तु जिस तरह सन बासठ से पहले नेहरू की सरकार ने चीन के मामले में देश को गुमराह किया, उसी तरह कुछ घन्टे की मेहमान यह सरकार भी पिछले कई वर्षों से गुमराह कर रही है। यह तो पिछले साल अप्रैल माह में कुछ पत्र-पत्रिकाओं के कारण देश को पता लगा कि चीन ने लद्दाख और अरूणंाचल प्रदेश के कुछ भूभाग पर कब्जा कर लिया है जबकि सरकार ने उल्टे, संसद में कहा कि मीडिया अतिशयोक्ति कर रहा है...और तुर्रा देखिये कि इस निकम्मी सरकार का विदेशमंत्री जब चीन के दौरे पर जाता है तो कहता है कि 'हमने चीन से बात कर ली है कहीं कोई गड़बड़ नहीं है, चीन ने मान लिया है कि अब वह आगे कुछ नहीं करेगा' माधव न कहा कि देश की सीमाओं को लेकर यह गैर जिम्मेदाराना दृष्टिकोण सहन नहीं किया जा सकता। नेहरू की तरह ही यह सरकार भी देश की सीमाओं की सुरक्षा में नाकाम रही।
माधव ने पीड़ा व्यक्त करते हुये कहा कि देश की आन्तरिक सुरक्षा भी बहुत खराब है। माओवाद, आतंकवाद और महिला सुरक्षा जैसे विषयों में पिछले दस सालों में हालत और बदतर हुई है। आर्थिक मोर्चे पर भी यह सरकार विफल रही है..आर्थिक विषमता निरन्तर बढ़ रही है और जिसके कारण यह शान्त समाज उबल रहा है, देश के युवाओं में इस कारण हिंसक वृत्ति जन्म ले रही है। राजनीतिक स्वार्थों के चलते अराजक प्रलोभन देकर सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ा जा रहा है। आतंकवाद से लड़ने के बजाय यह सरकार आतंक- वादियों की पैरवीकार बन गई है। माधव ने    आन्ध्र के एक मंत्री का उदाहरण दिया जो आतंकवादी के पकड़े जाने पर उसके घर सांत्वना देने गये...इस सरकार के लोग आजमगढ़ जाकर आतंक की पीठ सहलाते हैं, उनके साथ खड़े होते हैं और आतंकियों के विरोध में लड़ने वाले हमारे सिपाहियों की शहादत का अनादर करते हैं। देश का पूरा प्रशासन तंत्र भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा है, जिसमें पीएमओ तक लिप्त है। हम दुनिया के भ्रष्टतम राष्ट्रों की सूची में हमेशा बने हुये हैं...क्यों हो रहा है ये सब? माधव ने युवाओं का उद्बोधन करते कहा कि बेशक यह देश एक प्रचीन राष्ट्र है लेकिन भारत आज दुनिया का सबसे युवा राष्ट्र भी है...देश की साठ प्रतिशत आबादी पंैतीस साल से कम है। उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसा कि भले ही वह पंैतालिस साल के नेतृत्व को युवा कह रही हो पर अविवाहित होने से ही कोई युवा नहीं होता, पंैतीस साल से कम के इस देश के युवाओं में जैसी ऊर्जा, जैसी रचनात्मकता है, अपनी प्रतिभा का जैसा डंका आज भारत के युवा विदेशों में बजा रहे हैं वह अपने देश में भी हो सकता था यदि इन युवाओं को मौका मिलता पर सरकार और प्रशासन ने जैसा माहौल विगत कई वर्षों से देश में बना रखा है उसमें यह संभव नहीं है। इस कारण संघ जैसे अराजनीतिक संगठन को सड़कों पर उतर कर यह बात इन चुनावों में जन-जन तक पहुंचाने की काशिश करनी पड़ी है कि आज अच्छाई के लिये परिवर्तन की परम आवश्यकता है...माधव ने कहा कि आज चाहे आंकड़े कुछ भी निकलंे पर यह तय है कि इस बार लोगों ने परिवर्तन के लिये वोट किया है जिसमें कि मीडिया की भी बहुत बड़ी भूमिका है। मीडिया ने जनता को परिपक्व बनाया और इस परिपक्व जनता की अनदेखी अब कोई भी दल नहीं कर सकता। बीजेपी के ऊपर पैसा बांटने का आरोप लगाने वाले नेताओं की भत्र्सना करते हुये माधव ने कहा कि यह भारत की परिपक्व जनता का अपमान है, यदि पैसा ही राजनीति में निर्णायक होता तो कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता है। माधव ने हास्य करते हुये कहा कि पैसा भी चुनाव की एक सच्चाई है पर जनता अब पैसा खाकर भी वोट अपने विवेक से ही करती है और इस तरह एक दिन भारत की राजनीति में पैसा नहीं बल्कि राजनीतिक दल के कार्यक्रम उसकी नीतियां ही चुनाव जीतने की गारंटी बनेंगे, जनता सभी पार्टियों को जनहित के कार्य करने के लिये बाध्य करेगी, यह तय है।
संघ पर विभिन्न दलों द्वारा लगाये जाने वाले आरोपों का माधव ने सिलसिलेवार उत्तर दिया। संघ को साम्प्रदायिक संगठन कहने वालों को जवाब देते हुये उन्होंनेे कहा कि देश की एकता की बात करना, भ्रष्टाचार के विरोध में मुंह खोलना, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की राजनीति के गंदे खेल का विरोध करना यदि साम्प्रदायिकता है तो...हां...हम साम्प्रदायिक हैं। अखण्ड भारत की कल्पना करने वाले गोलवरकर, हेडगेवार और सावरकर को साम्प्रदायिक कहा जाता है? कश्मीर भारत का अंग है, धारा 370 गलत है, कहने वाले मुखर्जी को साम्प्रदायिक कहा जाता है? और देश को तोड़ने वाले, कश्मीर को आग का गोला बनाने वाले सेकुलर? इन परिभाषाओं को अब देश में बदलना होगा...और इन्हीं विचारों के साथ संघ जनता के बीच इन चुनावों में खड़ा हुआ। माधव ने कहा कि संघ एक अराजनीतिक, सामाजिक संगठन है पर राजनीति भी समाज का अभिन्न अंग है इसलिये राजनीति ठीक चले, इसकी चिन्ता प्रत्येक सामाजिक संगठन को करनी होगी। 
अन्त अपने भाषण को समाप्त करते हुये माधव ने उपस्थित पत्रकारों से कहा कि जहां तक चुनावी राजनीति का प्रश्न है तो संघ की भूमिका समाप्त हो गई है...हमारा यही प्रयास था कि जनता सुविचारित मत करे और दूसरा यह कि जनता वोट जरूर करेे, यही हमारा प्रयास था...हमने किसी दल के लिये नहीं बल्कि अच्छे प्रतिनिधियों के पक्ष में कार्य किया। हम भावी सरकार के क्रियाकलाप से अब बाहर आकर अपने सामाजिक कार्यों में लौट गये हैं, वही हमारी प्रथमिकतायें हैं। और सरकार की ओर देखने की इसलिये भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे लोग भी संघ के हैं और उन्हें पता है कि संघ के विचार क्या हैं। नई सरकार को समझना होगा कि देश ने परिवर्तन और भ्रष्टाचार के विरोध में वोट देकर उन्हें गद्दी पर बैठाया है...अतः वे जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरें...यही नई सरकार से अपेक्षा है। इस अवसर पर कई पहुंचे हुये पत्रकारों को सम्मानित किया गया।